किसी इंजीनियर को अगर निर्माण शैली का प्रैक्टिकल करना हो तो गुणवत्ता के लिए रा0 संस्कृत महाविद्यालय चंबा का फर्श अवश्य देख लें !

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    किसी इंजीनियर को अगर निर्माण शैली का प्रैक्टिकल करना हो तो गुणवत्ता के लिए रा0 संस्कृत महाविद्यालय चंबा का फर्श अवश्य देख लें !
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    निर्माण शैली और गुणवत्ता की बेजोड़ मिसाल राजकीय संस्कृत महाविद्यालय भवन चंबा

    आजादी के समय से पूर्व या उसके कुछ समय बाद तक जो भी घर, भवन या राजकीय प्रतिष्ठान बनते थे, वे सात पीढ़ियों को ध्यान में रखकर बनाये जाते थे। ताजमहल, लाल किला या राजा- रजवाड़ों के महलों के उदाहरण आज भी हम प्रस्तुत करते हैं लेकिन अपने परिवेश में झांकने की कोशिश भी नहीं करते हैं।

    अनुकरण करना तो दूर की बात है लेकिन तात्कालिक शैली, संसाधनों तथा गुणवत्ता का आदर भी नहीं करते हैं। लगभग छ दशकों से भी ज्यादा समय से बना हुआ तल्ला चंबा स्थित राजकीय संस्कृत महाविद्यालय भवन यदि चंबा का शक्ति स्थल कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।

    [su_highlight background=”#091688″ color=”#ffffff”]सरहद का साक्षी @कवि सोमवारी लाल सकलानी, निशांत[/su_highlight]

    अधी शताब्दी से भी अधिक समय से मैं समय-समय पर यह भवन का साक्षी रहा हूं। भले ही आज अंग्रेजी शिक्षा के दौर में इस विद्यालय में छात्र संख्या ना के बराबर हो लेकिन कहीं न कहीं या भवन एक मिसाल के रूप में है। लंबे समय तक यहां पूर्व मध्यमा और उत्तर मध्यमा की कक्षाएं संचालित होती थी। बाद में इसे संस्कृत महाविद्यालय का दर्जा दिया गया। संस्कृत शिक्षा के प्रति बच्चों का रुझान कम होने के कारण या अधिकांश छात्र ऋषिकेश और हरिद्वार को संस्कृत शिक्षा को उपयुक्त मानते हुए आज भी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं।

    80 के दशक में जब चंबा में राजकीय महाविद्यालय की स्थापना हुई तो कॉलेज भवन न होने के कारण अनेक वर्षों तक इसे संस्कृत विद्यालय भवन में डिग्री कॉलेज की कक्षाएं संचालित हुई। स्थिर भूमि पर स्थापित यह विद्यालय सड़क सुविधा से युक्त है। ढांचागत प्रत्येक सुविधाएं यहां पर उपलब्ध है।अब इस के अगल-बगल में ठेकेदारी के वर्तमान उदाहरण स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं। कुछ वर्षों पूर्व हुए निर्माण कार्य किस रूप में है, यहां आकर कोई भी अवलोकन कर सकता है लेकिन 60 वर्ष पूर्व बना हुआ यह भवन, इसका फर्श, कक्षा- कक्ष, विद्यालय की छत, सीलिंग, दरवाजे- खिड़कियां आदि आज भी हू-ब-हू बरकरार हैं।

    विद्यालय की पूर्व निर्मित नंगी फर्श पर कोई भी व्यक्ति भात खा सकता है। इतना साफ सुथरा,सुदृढ़ कि बाल के बराबर भी कहीं खरोंच नहीं। काश ! इसी प्रकार गुणवत्तापूर्ण कार्य तथाकथित विकासवादी भारत में होते तो भारत आज अपनी सदियों की सभ्यता के शिखर पर होता। राजनीति, ठेकेदारी और भ्रष्टाचार देश में व्याप्त हैं। सरकारें कोई भी रही हों लेकिन गुणवत्ता की उपेक्षा विगत 50 वर्षों में सर्वाधिक हुई है। इसका कारण जो भी हो, यह सभी जानते हैं। विवेचना करना निरर्थक है।

    पैसे कमाने की होड़ में सरकारों से लेकर आम जनता तक अपना ध्येय मान चुकी है। हम केवल एक- दूसरे पर आक्षेप लगाने के लिए आज के समय पैदा हुए हैं। अपने गिरेबान में झांक कर कोई नहीं देखता कि हम कितने ईमानदारी पूर्वक कार्य करते हैं। यह देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है।

    पुराने समय में हमारे राज में स्त्रियों के द्वारा जो कोठार बनाए गए हैं, उनके भीतर अगर पानी भर दिया जाए तो पानी का एक बूंद भी बाहर नहीं टपक सकता। पुराने समय के भवन, नहरे, पुल, यहां तक कि हमारे निजी और सरकारी भवन आदि भी आज उदाहरण के रूप में खड़े हैं। हमारी विकृत मानसिकता का परिणाम यह है कि हम कोई भी कार्य केवल तत्कालिक लाभ के लिए कर रहे हैं। 10 -15 वर्षों में कोई भी इमारत या भवन ध्वस्त नहीं होते है या कोई भी फर्श टूट-फूट नहीं जाता है। अप्राकृतिक,अनियोजित और अनियंत्रित रूप से हमारा विकास कार्य चलने के कारण आज यही स्थिति उत्पन्न हो चुकी है।

    चंबा स्थित संस्कृत महाविद्यालय का फर्श एक नजीर के रूप में पेश कर रहा हूं। जिस किसी भी इंजीनियर को अगर असली प्रैक्टिकल कार्य देखना है तो चंबा स्थित संस्कृत महाविद्यालय के फर्श को देख ले। जो छह दशकों से भी अधिक समय से एकरूपता की एक मिसाल है।