दांत पीसते गोरा बोला, गढ़वाली 3 राउंड फायर /
शांत खड़ा था वीर चंद्र सिंह, बोला,गढ़वाली सीजफायर।
यह विद्रोह था या वीरता या सैनिक का स्वाभिमान /
निहत्थों पर नहीं वार किया,वीर गढ़वाली नायक महान।
बना लिया बंदी वीर को, सजा कठोर सुनाई/
अविचल स्थिर खड़ा वीर वह,सत्ता डिगा नहीं पाई।
निरपराध पर गोली मारे ,कैसी यह अतुराई !
कप्तान रिकेट की आज्ञा, चंद्र सिंह ने नहीं मानी।
किस्साखानी के बाजार में ,विशाल जन सभा थी भाई ।
30 अप्रैल सन 30 की घटना, पेशावर कांड कहलाई ।
मर मिटने को सैन्य शक्ति है ,न कि निरपराध को मारे /
देख रहे थे लोग तमाशा , कुछ तो डर के मारे थे भागे।
विश्वयुद्ध का वीर सिपाही, वीर चंद्र सिंह गढ़वाली ।
क्षत्रिय वंश का वीर सूरमा ,था वीर महा वह भंडारी,
पेशावर सैन्य छावनी,थी जहां रॉयल रेजीमेंट गढ़वाली।
निहत्थों को जो मारे , वह है केवल कायर अभिमानी ।
नहीं चलाने दी गोलियां ,फांसी हो या कालापानी।
क्यों नागरिकों को मारूं ,मैं हूं वीर शूरमा बलिदानी ।
आजादी का था उपासक ,वह गांधी सुभाष का भाई ।
उसकी प्रेरणा से बाद में,आजाद हिंद फौज बन पाई।
[su_highlight background=”#091688″ color=”#ffffff”]कवि : सोमवारी लाल सकलानी , निशांत[/su_highlight]