आज सुबह एक घंटा सुमनन कॉलोनी-तल्ला चंबा मार्ग के बीच में पड़ने वाले कूड़े की सफाई की। तल्ला चंबा से सुमन कॉलोनी को जोड़ने वाले संपर्क मार्ग सैकड़ों लोगों के आवागमन का रास्ता है लेकिन क्या कहें! वहां कूड़ा डालने के अलावा, गंदगी करने के अलावा कोई भी व्यक्ति अपना सफाई करना नैतिक कर्तव्य नहीं समझता है।
सरहद का साक्षी @कवि:सोमवारी लाल सकलानी, निशांत
तल्ला चंबा और सुमन कालोनी में अस्थाई रूप से रहने वाले मजदूर वर्ग के लोगों को, स्थानीय दुकानदारों से, हर समय विनम्र निवेदन करता आया हूं कि महाराजा नरेंद्र शाह का घोड़ा जिस रास्ते से चलता था और आज भी वह रास्ता सैकड़ों लोगों के संपर्क मार्ग है, मंजूड़ गांव और छोटा बड़ा स्यूटा गांव की अधिकांश महिलाएं इसी मार्ग से अपनी छानियों से संपर्क बनाए रखती है।
सुमन कॉलोनी और तल्ला चंबा क्षेत्र में सैकड़ों मजदूर रहते हैं। सस्ते आवास पाने के कारण लोगों के लिए यह स्थान उपयुक्त है लेकिन यह मजदूर भी गंदगी करने के अलावा शायद कभी सफाई में हाथ उठाते हों। यहां तक कि मकान मालिक भी कभी उनको आगाह नहीं करते। किराएदारों की तो बात ही क्या करनी है।
मजदूर वर्ग को सुबह उनको काम पर जाने की देरी होती है और देर रात तक वो काम से लौटते हैं। इसलिए कूड़ा वाहन में न डालकर कूड़ा इधर-उधर छोड़ देते हैं।
अभी कुछ समय पहले तो तल्ला चंबा के पीछे से बने मार्ग पर कुछ मजदूर खुले में शौच भी करने लग गए थे लेकिन जब टोका- टाकी की गई और जुर्माना लगाने की बात की गई, तब खुले में शौच पर प्रतिबंध लग पाया। कूड़ा करना आसान है। गंदगी करनी आसान है। लेकिन उसके निपटान, स्वच्छ वातावरण रखना, एक चुनौती से कम नहीं है।
हम केवल एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते हैं। केवल बुरी चीजों को हाइलाइट कर अपनी रेटिंग बढ़ाने का काम करते हैं और राजनीतिक विचारधारा के लोग तो इसे अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं। आज के समय का मीडिया भी सामाजिक कार्यों की खबरों को लगाने में परहेज करता है। यह सभी लोग जानते हैं।
भौतिकवाद के अंधी होड़ में लोग इतने पागल हो चुके हैं कि आपने मूलभूत सिद्धांतों, अपने मूलभूत कर्तव्य से दूर होते जा रहे हैं। हां ! यदि अधिकारों की बात है तो मरने मारने पर उतारू हो जाएंगे। इससे बड़ा दुर्भाग्य इस प्रजातांत्रिक देश का और क्या हो सकता है?
कागजों पर स्वच्छता और जमीनी हकीकत पर स्वच्छता दोनों में बड़ा अंतर है।
परिवेश का मतलब केवल मुख्य मार्ग,चौराहा ही नहीं है बल्कि हमारे नाले- खाले, हमारे घर- आंगन, गांव गुठ्यार, हमारे जल स्त्रोत, जंगल के क्षेत्र, हमारे छोटे-मोटे बाजार आदि भी इसी क्रम में आते हैं।
भला ममैं पूरे शहर की सफाई कर सकता हूं ? नहीं। लेकिन समय-समय पर जन जागरूकता के रूप में अभियान चलाता रहता हूं। जिसके के अपेक्षित परिणाम भी मिलते हैं। मनोबल ऊंचा होता है और स्वच्छ वातावरण में रहकर तन मन स्वस्थ रहता है। साथ ही क्रियात्मक कार्य करने से ऐसा लगता है यह आज ईश्वर की सर्वोच्च उपासना की है।आने जाने वालों को भी अच्छा लगता है।
आज सुबह जब मैं स्वच्छता की इस कार्य में लगा हुआ था तो स्थानीय गांव मंजूड़ की मां बहनों ककी खुशी का ठिकाना नहीं था। भरपूर आशीर्वाद मिला। उन्होंने भी इस कार्य में हाथ बढ़ाया और देखते ही देखते पूरा मार्ग स्वच्छ और आकर्षक लगने लगा। साथ ही कूड़ा डालने वालों को भी शर्म आएगी। नहीं तो बेशर्मों का इलाज तो लाठी ही है।
हम किस स्थान, गांव, शहर में रहते हों, उसको स्वच्छ और आकर्षक बनाना भी हमारा दायित्व है। यह केवल स्वच्छक का ही नहीं बल्कि उस परिवेश में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति का नैतिक कर्तव्य और दायित्व है।
प्रतिदिन स्वच्छता के कार्य में अपना आंशिक योगदान अवश्य दें। आप के द्वारा किया गया छोटा सा कार्य एक व्यापक पहल प्रदान करेगा। स्वच्छ, आकर्षक वातावरण हमें स्वस्थ भी रखेगा और खुशी भी देगा।