कविता: नहीं देवता निरा ग्रह यह, प्रतीची पुष्प है सोम !

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नहीं देवता निरा ग्रह यह, प्रतीची पुष्प है सोम !

[su_highlight background=”#880e09″ color=”#ffffff”] सरहद का साक्षी@कवि:सोमवारी लाल सकलानी, निशांत।[/su_highlight]

यह भोर का सूर्य नहीं है,
अस्ताचंल का सोम।
अरुणोदय का वक्त है,
प्रतीचि का प्यारा सोम।
शीतलता भरता जग में,
चांद कहो प्रिय सोम।
सूर्योदय होने वाला है,
पर्वत पीछे जाता सोम।

सदा पहाड़ के पीछे छुपता,
देख रवि यह सोम।
निशांत भोर भरा प्राची में,
जाता घर अब सोम।
क्या देखा नहीं कभी डूबते,
सागर में रवि सोम !
मेरे पहाड़ का क्या कहना है,
नहीं डूबता सोम।

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हर ऋतु समयचक्र बदलते,
परिवर्तित भी सोम।
कभी पूर्णिमा अमावस्या,
कृष्ण शुक्ल यह सोम।
नहीं देवता निरा ग्रह यह,
यह प्रतिची पुष्प सोम।
ब्रह्मांड विचरता या नभ,
संध्या निशांत का सोम।

(कवि कुटीर)
सुमन कालोनी चंबा, टिहरी गढ़वाल।