देवभूमि उत्तराखंड में शिव अंश के रुप में प्रसिद्ध हैं घंडियाल देवता /घंटाकरण महाराज

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देवभूमि उत्तराखंड में शिव अंश के रुप में प्रसिद्ध हैं घंडियाल देवता /घंटाकरण महाराज
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ऋद्धि-सिद्धि और रक्षा के साथ पूरी करता है मंन्नत

कुछ समय पूर्व गजा (क्वीली पट्टी मे) गौंतागली से पैदल ठीक ऊपर घंडियाल देवता ( घंटाकरण महाराज ) जी के दर्शन करने सपरिवार गया था। लगभग 04 किलोमीटर पैदल चढ़ाई चढ़ने के बाद मंदिर में देवता के दर्शन होते हैं। परम सौभाग्य की बात है, घंटाकरण महाराज जी के भव्य मंदिर  की पूजा के दिन यह संयोग बना।

[su_highlight background=”#880e09″ color=”#ffffff”]सरहद का साक्षी @कवि:सोमवारी लाल सकलानी, निशांत[/su_highlight]

उत्तराखंड सरकार के कैबिनेट मंत्री श्री सुबोध उनियाल  देवप्रयाग विधानसभा के विधायक विनोद कंडारी जी के अलावा श्री लाखीराम बिजल्वाण, श्री दिनेश प्रसाद उनियाल आदि अनेकों गणमान्य व्यक्ति भी उस दिन उपस्थित थे। पत्रकार  यशपाल सज्वाण, टिहरी चंबा के अनेकों पत्रकार  रघुभाई जड़धारी, शशि भूषण भट्ट , छात्र नेता, क्षेत्र प्रतिनिधि, गणमान्य व्यक्ति तथा बड़ी संख्या में सजवाण और बिजल्वाण जाति के लोग मंदिर में उपस्थित थे।
घंटाकरण महाराज जी का पश्वा के रूप में प्रकटिकरण हो रहा था। क्षेत्र के व्यक्ति, परिवार  सुख समृद्धि के लिए अपने अनुसार  मन्नते मांग रहे थे।
डांडा घंडियाल देवता का मंदिर प्रकृति की नैसर्गिक छटा के बीच में पहाड़ी के ऊपर निर्मित है। यह क्षेत्रीय आस्था का केंद्र है। घंटाकरण महाराज प्रत्येक  मन्नत मांगने वाले की मुराद पूरा करते हैं। यह मेरा अनुभव है।  घंटाकरण महाराज जी के चमत्कार कई बार प्रकट भी हुए हैं।
जिला पंचायत अध्यक्ष श्रीमती सोना सज्वाण जी के प्रयास से मंदिर में पानी आ गया है।  माननीय कृषि मंत्री श्री सुबोध उनियाल जी के घोषणा के अनुरूप सड़क की स्वीकृति भी प्रदान कर दी गई है।
अब गजा में भी घंटाकरण महाराज जी का सुंदर मंदिर बन गया है। 90 के दशक में एक छोटा सा मंदिर था जो कि भव्य रूप धारण कर चुका है।
यहां घंटाकरण महाराज जी के बारे में ज्यादा बताने की आवश्यकता नहीं है। यह क्षेत्रपाल देवता जो कि भगवान शिव का अंश है, समान भाव से अपने भक्तों की मनोकामना पूर्ण करता है।
मैं 08 वर्ष जब लोसू बटियागढ़ क्षेत्र में सेवारत था तो घंटाकरण महाराज जी की अनेक जातों, अर्ध कुंभ और महाकुंभ में जाने का संजोग मिला। धद्दी घड़ियाल घंटाकरण महाराज जी के मेले में कई बार उपस्थित हुआ। लोस्तू पट्टी के घंड्याल धार में एक बार महाकुंभ में सपरिवार जाने का अवसर मिला। लोस्तू- बडियार गढ़ में देवी -देवताओं का मान और सम्मान तथा उनके प्रति आस्था अन्य क्षेत्रों के मुकाबले कहीं अधिक है। स्थानीय देवता क्षेत्रपाल/ खित्रपाल, बिंनसर भगवान, मसाण तथा अनेकों देवी-देवताओं की पूजा की जाती है।
सावन के महीने घोष और भौंकरे बजाए जाते हैं। यहां से लोग चिह्न/प्रतीकों सहित केदारनाथ पैदल यात्रा में जाते हैं। मैठाना माता के प्रति भी अनन्य श्री श्रद्धा क्षेत्रवासियों में है, वहां भी तीर्थ यात्रा पर जाते हैं।
घंटाकरण महाराज जी का क्षेत्र में विशेष महत्व है। अर्ध कुंभ जात (06वर्षों मे) और महाकुंभ जात(12वर्ष में) संपन्न होती है। काफी समय पहले से लोग व्यवस्थाओं में लग जाते हैं और प्रत्येक परिवारजन भी महीनों पहले व्यवस्थाओं में लग जाते हैं।
दूरदराज से लोग जात में सम्मिलित होने आते हैं। प्रवासी लोगों के लिए किसी प्रकार की असुविधा न हो, जिसके लिए प्रत्येक परिवार व्यवस्था पहले से ही करके रखता है। जात के समय स्थानीय लोग भले ही सुविधाओं से वंचित हो जाएं, लेकिन अपनी ध्याणियों, रिश्तेदारों, आगंतुकों और भक्तों का मान रखते हैं। उन्हें किसी प्रकार की असुविधा ना हो इसका ध्यान रखते हैं।
लोस्तू में घंडियालधार मंदिर में  पौराणिक घंडियाल या घंटाकरण महाराज का मेला क्षेत्रीय संस्कृति ही नहीं बल्कि लोक संस्कृति का केंद्र भी है। स्थानीय जनप्रतिनिधियों के अलावा अनेकों माननीय जन यहां तीर्थयात्रा पर आते हैं। और घड़ियाल देवता से मन्नत मांगते हैं। यद्यपि लोस्तू और बढ़ियारगढ़  अलग-अलग पटि्टयां बन चुकी हैं, लेकिन घंटाकरण महाराज के कारण कहीं ऐसा नहीं लगता है कि यह अलग-अलग क्षेत्र हैं। श्रद्धापूर्वक भगवान की जात को संपन्न कराने में दोनों पट्टियों के क्षेत्रवासियों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
घंटाकरण महाराज /घड़ियाल देवता के अनेकों मंदिरों में मैं गया हूं। कुछ समय पूर्व थौलधार प्रखंड में बेरगणी (सुल्याधार)मे  सज्वाण बंधुओं ने घंडियाल देवता का भव्य मंदिर बनाया। जो कि मेरी सेवाकाल के दौरान शीश नवाने का सबसे सुलभ स्थान  था। केवल इतना कह सकता हूं, “जब किसी का भाग्य जगे तो वह घंडियाल की जात चले।”