फ्री सोशल नेटवर्किंग साइट्स: निजता एवम् स्वतंत्रता से महरूम होना है मुफ्त का दाम

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परोपकाराय पुण्यार्जनाय हेतु 'एक सीख'; अपनी कमी पर हंसते हुए दूसरे की कमी पर रोएं
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एक विचार: मुफ्त में कुछ भी नहीं मिलता

जब कोई वस्तु मुफ्त में मिल रही हो तो समझिए कि आपको अपनी स्वतंत्रता देकर इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी! इसके लिए इन तथ्यों की ओर अपना ध्यान आकृष्ट करने की आवश्यकता है।

[su_highlight background=”#091688″ color=”#ffffff”]सरहद का साक्षी@ आचार्य हर्षमणि बहुगुणा[/su_highlight]

डेसमंड टूटू ने एक बार कहा था कि ‘जब मिशनरी अफ्रीका में आए तो उनके पास बाइबिल थी और हमारे पास जमीन। उन्होंने कहा कि हम तुम्हारे लिए प्रार्थना करने आए हैं। और हमने आंख बंद कर ली और जब आंख खोली तो हमारे हाथ में बाइबिल थी और उनके पास जमीन।’
इसी प्रकार जब सोशल नेटवर्किंग साइट आई तो उनके पास फेसबुक और व्हाट्स ऐप थे और हमारे पास निजता एवं स्वतंत्रता थी। उन्होंने कहा कि ‘यह मुफ्त है’। और हमने आंख बंद कर ली और जब आंख खोली तो हमारे हाथ में फेसबुक एवं व्हाट्स ऐप थे और उनके पास हमारी निजी जिंदगी की जानकारियां (निजता) और स्वतंत्रता है।

“समझिए कि जब भी कोई वस्तु मुफ्त मिलती है तो उसकी कीमत हमें अपनी स्वतंत्रता देकर चुकानी पड़ती है।
विचारणीय है कि *ज्ञान से शब्द समझ में आते हैं और अनुभव से अर्थ?