ग्रीष्म काल में हर साल पर्वत के जंगल धू-धू करके जलने लगते हैं। सबसे अधिक हानि मध्य हिमालय क्षेत्र में होती है। हर वर्ष मई-जून के महीने में प्रचंड आग के कारण अरबों रुपए की संपत्ति को नष्ट होती है। उसके साथ ही करोड़ों जीव- जंतु, पशु- पक्षी जल करके मरते हैं या तड़प- तड़प कर जीवन जीने के लिए मजबूर होते हैं। पूरा पारिस्थितिकी तंत्र असंतुलित हो जाता है।
सरहद का साक्षी @कवि:सोमवारी लाल सकलानी ‘निशांत
हरीतिमा से अनुरंजित पहाड़, चंद दिनों में ही स्याह पड़ जाते हैं।चारों तरफ धुंध और धुंएं के गुब्बार उड़ते रहते हैं। बच्चे और बुजुर्ग लोगों पर इसका सबसे बुरा प्रभाव पड़ता है।वे अनेक रोगों का शिकार होते हैं।
पर्वतों की भौगोलिक स्थिति अत्यंत ढ़ालनुमा होने के कारण आग जब प्रचंड होती है तो दोपहर में हवा के साथ विकराल रूप धारण कर देती है। हरे बांज के जंगल जिन्हें अच्छादित होने में दशकों लग जाते हैं, अचानक आग की चपेट में आने के कारण समाप्त हो जाते हैं। यदि बांज और बुंरास के जंगल के बीच चीड़ पनप गया, तब स्थिति और भी नाजुक हो जाती है। हरित वनों का स्थान चीड़ ले लेता है। कालांतर में जल स्रोत सूखने लगते हैं, भूमिगत जल का स्तर काफी नीचे चला जाता है, बरसात में जब तेज बारिश होती है तो जले हुए जंगलों की राख जल धाराओं और नदियों में मिश्रित होकर जहर का रूप धारण कर देती है। यहां तक कि वातावरण में छाई हुई धुंध, धूल और धुंए के कारण स्वर्ग लोक से आने वाली बरखा की अमृत बूंदों की जगह जहर बरसने लग जाता है। इस तेजाबी वर्षा के कारण घातक प्रभाव दिखाई देने लगते हैं।
वर्तमान युग में हम कुछ रटे- रटाए शब्दों पर ही ध्यान केंद्रित करते हैं। उनको फॉलो करने में कोताही बरतते हैंं। ग्लोबल वार्मिंग की बात होती है। पहाड़ों में सबसे अधिक तापमान के बढ़ने के कारण हर वर्ष जंगलों में लगने वाली आग है। इसी के कारण स्वरूप जलवायु परिवर्तन का प्रूफ चेहरा भी देखने को मिलता है केदारनाथ आपदा के रूप में यह हमारे पास सबसे बड़ा उदाहरण है। इसके साथ ही जब धुंए की परत आसमान/ वातावरण में सतह बना लेती है तो ताप घनीभूत हो जाता है, जिसके कारण धरती का तापमान बढ़ जाता है और हमारी हिमानियों पर इसका असर पड़ता है।
संक्षेप में यह धरती हमें ईश्वर ने वरदान के रूप में प्रदान की है। हमें इसका मान रखना चाहिए। संरक्षण करें, प्रकृति के प्रत्येक अवयव की रक्षा करें, जैव विविधता को बनाए रखें, प्रकृति का संवर्धन करें, वन संपदा को बचाने के लिए जमीनी स्तर पर कारगर उपाय करें। इसमें सरकार, समाज, विभाग आदि सभी लोगों की महत्वपूर्ण भूमिका है।