इस दीपावली पर्यावरण संरक्षण हेतु बिषैली बारूद से बनी आतिशबाजी से दूर रहने का लें संकल्प

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    बहुत सुंदर कहानी पञ्चदीप, हारिए न हिम्मत, बिसारिए न राम...!
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    दीपमालिका के उत्सव पर भारतीय समाज में विशेष कर हिन्दुओं की आस्था एवं विश्वास का प्रतीक दीपावली का अपना विशिष्ट महत्व है। केवल हिन्दू धर्म के लोग ही इस त्योहार को नहीं मनाते हैं अपितु अन्य धर्मों के लोगों की भावनाएं भी इस पुनीत पर्व से जुड़ी हैं। और इस पर्व के कारण सब की रोजी-रोटी भी द्विगुणित होती है, किसी के मिट्टी के बर्तन बिकते हैं तो किसी के तांबे,पीतल, कांसी के निर्मित बर्तन, कहीं सोने, चांदी के सिक्के व आभूषण तो किसी का बिजली की सामग्री, अन्य उपकरणों, शायद यह पर्व सभी वर्णों व वर्गों की आय का संसाधन है।

    [su_highlight background=”#091688″ color=”#ffffff”]सरहद का साक्षी @आचार्य हर्षमणि बहुगुणा[/su_highlight]

    अलग-अलग मान्यताएं हैं, यह सत्य है कि उत्सव प्रियता प्राणि मात्र के जीवन से जुड़ी है। आदिवासी वनवासी केवल भारत में ही नहीं अन्य सभी महाद्वीपों में हैं, जो अपने अपने ढंग से अपने त्योहार मनाते हैं। पर इनमें आज विगत चार पांच दिनों से विभिन्न उत्सवों के विषयक, इस कार्तिक मास के विषयक यथा सम्भव जानकारी साझा करने का प्रयास कर रहा हूं। आज इन त्योहारों में जो हमारी आस्था जुड़ी है उससे हट कर सामाजिक चेतना के विषय में कुछ प्रकाश डालने का मन विभिन्न विचारधाराओं के मित्रों के आग्रह से बना है। यूं तो पहले भी स्पष्ट किया था कि जनसंख्या के घनत्व की वृद्धि के कारण धीरे धीरे प्रदूषण की समस्या बढ़ रही है और जब देश का अहित हो तो हमें अपने कतिपय कृत्यों को सीमित करना पड़ता है। ऐसी स्थिति में सुधार किया जा सकता है, सुधार किया जाना चाहिए।

    प्राय: ईसाई नववर्ष हो, क्रिसमस हो, ईद हो बारात हो या कोई पर्व विशेष हो या किसी भी खुशी के मौके पर हम बिषैली बारूद से बनी आतिशबाजी कर ध्वनि, वायु, जल, व सामाजिक प्रदूषण को बढ़ाने का कार्य करते हैं, अतः इस पर प्रतिबंध लगाने की आवश्यकता है, प्रतिबंध पारदर्शिता के अनुसार ऐसे सभी मौकों पर होना आवश्यक है, किसी धर्म विशेष के पर्वों पर या कार्यो पर नहीं! कितना दु:खद है कि अगर भारत से कोई वाह्य देश जीतता है और भारत के नागरिक उनकी प्रसन्नता में शरीक होते हैं (खुशी मनाते हैं) तो इससे अधिक निकृष्टता (घृणा) का विषय और नहीं हो सकता है।

    यद्यपि इन विवादित विषयों में हम उलझते हैं तो क्षति हमारी ही होती है और बाहर के लोग उस (आपसी फूट) झगड़े का लाभ उठाते हैं। अतः हमें अपने धर्म का पालन करना चाहिए। श्रीकृष्ण के उपदेश का पालन अवश्य करेंगे –

    *श्रेयान्स्वधर्मो विगुण: परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।
    *स्वधर्मे निधनं श्रेय: परधर्मो भयावह:।।

    ” *इस पर चर्चा की जा सकती है कि अन्य धर्म बाहर से देखने में गुण सम्पन्न हो सकते हैं, अच्छे भी लग सकते हैं, उन्हें पालन करने में सुगमता हो सकती है तो क्या दूसरे के धर्म को अपना लेना चाहिए?  कदापि नहीं! क्योंकि दूसरे के धर्म का पालन करने से उसके परिणाम भय और दु:ख दाई होते हैं।

    अतः अपने नियत कर्मों का पालन मानव को करना चाहिए। दूसरे के वर्ण, आश्रम, गुण या कर्म को देखने से यदि अपने धर्म में कुछ गुण कम भी दिखाई देते हैं! तो क्या दूसरे के धर्म को अपनाया जाना ठीक है? कभी भी नहीं? अपने धर्म का पालन सुख व दु:ख देखकर नहीं करना है अपितु वह हमारा धर्म है, वह हमारा कर्त्तव्य है अतः उसे मानना है। क्योंकि धर्म का निर्माण हमने नहीं अपितु किसी विशिष्ट शास्त्र कारों ने किया है व बनाया हैं। लौकिक दृष्टि से भी जो व्यक्ति ‘स्वधर्म पालन’ में डटा रहता है संसार में उसकी विशेष मान्यता होती है, प्रशंसा होती है। निष्काम भाव से अपने धर्म का पालन करना चाहिए यदि धर्म पालन करते हुए प्राणों पर भी संकट आ खड़ा होता है तो मृत्यु का वरण श्रेयस्कर है।

    महाराज हरिश्चंद्र ने सत्य धर्म की रक्षा के लिए अनेकों कष्टों को सहन किया पर ‘सत्य धर्म’ से विचलित नहीं हुए। महाराज दशरथ को कौन नहीं जानता है। शास्त्रज्ञों का मानना है कि “धर्मो रक्षति रक्षित:” अतः नि:स्वार्थ भाव से अपने धर्म का पालन करना आवश्यक है जो भी व्यक्ति अपने धर्म का पालन करता है उसका कल्याण होता है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी कहा है कि –

    परहित सरिस धर्म नहिं भाई। पर पीड़ा सम नहिं अधमाई।।

    यदि मानव अपने धर्म का सही तरीके से पालन करता है तो इस धरा पर वास्तव में सचमुच स्वर्ग उतर आएगा। अतः अपने मन से विचार किया जाय कि हमारा धर्म क्या है और हम क्या कर रहे हैं। दीप उत्सव के इस पुनीत पर्व पर हम सभी एक संकल्प ले सकते हैं कि –

    आतिशबाजी जिसके निर्माता सम्भवतः हिन्दू धर्मावलंबी नहीं है जिसमें बारूद का प्रयोग किया जाता है जो प्राय: किसी दूसरे की क्षति के उद्देश्य से बनाए जाते हैं और तो और जिनके आवरण पर हमारे देवी- देवताओं के चित्र व नाम अंकित किए गए हैं, उन पटाखों को छोड़ने के बाद वह रैपर हमारे ही नहीं सबके पैरों के नीचे कुचले जाते हैं, उनका विरोध करना है, अतिशयोक्ति नहीं पर किसी भी आवरण पर किसी अन्य धर्म के पूज्यों की फोटो नहीं लगी होती है। यह बहुत बड़ा आश्चर्य है।

    अतः एक सरल उपाय है कि इस विधा का बहिष्कार किया जाय। लाभ ही लाभ होगा।” सरकार से भी अनुरोध किया जाना अपेक्षित है कि आतिशबाजी पूर्णतः प्रतिबंधित करनी चाहिए। अपने धर्म की रक्षा के लिए यह छोटा सा अनुरोध है, एक प्रयास भी है।

    अतः आज से ही देश हित में जो भी सम्भव हो वही मुझे करना है, वही करना चाहिए। जीवन में यदि कुछ सत्य है तो वह है “धर्म” ज़िन्दगी भले ही जितनी भी कठिन हो, हमें हमेशा धर्म के मार्ग पर चलना है।

    मंगलमय जीवन की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ दीपोत्सव की हार्दिक बधाई।