कविता: दु:स्वप्ननों की बाढ़ कुछ ऐसी आई, यूक्रेन-रूस लडा़ई!

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श्रीलंका का अर्थ तंत्र डामाडोल: जनाक्रोश या जनक्रांति!
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दु:स्वप्नों की बाढ़ कुछ ऐसी आयी !
नींद हराम कर दी यूक्रेन-रूस लडा़ई।
बम गोलों के बीच मानवता कहराई,
बोरिस बाइडेन  जुबान ने आग लगाई।

[su_highlight background=”#870e23″ color=”#f6f6f5″]सरहद का साक्षी @कवि:सोमवारी लाल सकलानी, निशांत[/su_highlight]

दु:स्वप्नों की बाढ़ कुछ ऐसी आयी!
अहंकार बेवकूफी ने यह जंग कराई।
नट जेलस्की को समझ नहीं आई,
रूस पुतिन के अहंकार में जान गंवाई।

दु:स्वप्नों की बाढ़ कुछ ऐसी आई !
नाटो देशों की करतूतों से हुई लड़ाई।
फिरंगियों ने कुटिल  चाल चलाई,
चालक जेलस्की को समझ न आयी।

दु:स्वप्नों की बाढ़ कुछ ऐसी आई!
परमाणु युद्ध तक की अब नौबत आयी।
इस युद्ध का सूत्रधार भी है जेलस्की,
क्यों नाटो बोरिस बाइडेन से पेंग बढ़ाई !