कृषक, सैनिक और व्यवसायी दानवीर ठा. वीर सिंह कंडारी 

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कृषक, सैनिक और व्यवसायी दानवीर ठा. वीर सिंह कंडारी 
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” जित्थे तेरी सात पैड़िए निंदिया, तित्थे तेरा बाटा”।

[su_dropcap size=”2″][/su_dropcap]हान पुरुष कारखानों में उत्पन्न नहीं होते हैं। वे बांज के वृक्षों के समान स्वत:स्फूर्त पैदा होते हैं। ठा० वीर सिंह कंडारी जी भी उन्ही में एक थे। दानवीर ठा० वीर सिंह कंडारी जी सकलाना की शान थे।समय-समय पर मैं उनका स्मरण कर स्वयं को गौरवान्वित महसूस करता  हूं।

ठा० वीर सिंह कंडारी जी का मैने जून 2000 में एक साक्षात्कार लिया था।अनेक बिषयों पर विमर्श किया।सार संक्षेप ऩिम्नवत् है।
ठा० वीर सिंह कंडारी का जन्म १६ गते चैत सं० १९७८ सन् 1921 को मंजगांव (सकलाना)टि० ग० के कृषक परिवार में हुआ। मां का नाम रामकौंर देवी और पिता का नाम फतेसिंह कंडारी था। इनका वचपन का नाम रै सिंह था। ‘रै’ के समान बारिक होने के कारण इनको इनका मां रै चंद /रै सिंह पुकारती थी।

[su_highlight background=”#091688″ color=”#ffffff”]सरहद का साक्षी @कवि :सोमवारी लाल सकलानी, निशांत।[/su_highlight]

16वर्ष की आयु में इन्होंने दर्जा दो पास किया और घर से भाग गये। मंजगांव से सीधे लाहौर पहुंचे। वर्षों तक   इनका किसी को पाता न चला। लाहौर में 32 न० कोठी में रहे।1939 में लैंसडाउन पहुंच कर सेना में भर्ती हो गये। सन् 1945 में विश्व युद्ध समाप्त होने के बाद सेना भंग कर दी गई। वे पुऩ: लाहौर आ गये। सन् 1950 को इन्होने फतेहपुरी(दिल्ली) में गढवाल पनीर भंडार नाम से डेयरी खोली।

कृषक, सैनिक और व्यवसायी दानवीर ठा. वीर सिंह कंडारी 

ठा० वीर सिंह कंडारी के पूर्वज हेमचंद्र कंडारी कण्डारस्यूं से मंजगांव (सकलाना)टिहरी गढ़वाल आये थे। इस लिए कंडारी कहलाये। मंजगांव में दो लघु सरिताओं की उपत्यिका (जोड़ा गाड) के संगम पर इन्होंने वीर नगर की स्थापना की। सेलवाणी में ‘रूप नगर’ बसाया। ‘वीर नगर’  स्थल सकलाना के मुआफीदारन ने चतुर्भुज केलवांण को दान में दिया था जो बाद में मनु लुहार को भगवती की गोठ मे चला गया।बाद में ठा० साहब ने इसे  खरीदा।

ठा० साहब ने सब से अधिक ख्याति दानवीर के रूप में पायी। इन्होंने न केवल राजनीतिग्यों को चंदा दिया ,बल्कि स्कूल,अस्पताल, खेल मैदान,पशु -पक्षियों के लिए तालाब निर्माण हेतु धन दिया। नागेन्द्र सकलानी सेवा समिति(रजि) सेवा समिति नाम की स्वैच्छिक सेना दल का गठन किया।

सच्चाई और ईमानदारी इनका ध्येय था। वे प्रालब्ध और पूर्व जन्म के कर्मों पर विश्वाश करते थे। बाद के वर्षों में वे ग्राम पोपाई, गढमुक्तेश्वर,गाजियाबाद स्थित अपनी गढवाल डेयरी में रहने लगे और वहीं पर शरीर त़्याग किया।

वे कहते थे,” जित्थे तेरी सात पैड़िए निंदिया, तित्थे तेरा बाटा”।
अनेक पहलुओं पर उनसे बातचीत हुई। समयानुसार पाठकों के प्रकाश में लाने का अवसऱ मिलता रहेगा।

*सचिव, उ०शो०संस्थान, चंबा (टि०ग०)इकाई,  कवि कुटीर, सुमन कालोनी चंबा, टिहरी गढ़वाल।