भारत सरकार की कल्याणकारी योजनाओं से महरूम हैं आपरेशन पराक्रम के शहीद शौर्य चक्र विजेता जीतसिंह के परिजन

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    भारत सरकार की कल्याणकारी योजनाओं से महरूम हैं आपरेशन पराक्रम के शहीद शौर्य चक्र विजेता जीतसिंह के परिजन
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    शौर्य एवं पराक्रम की भूमि उत्तराखण्ड में जहां पांचवें धाम के रूप में सैन्य धाम बनाये जाने की कवायद जोरों से चल रही है, वहीं इस भूमि के अमर शहीदों के परिजनों को भारत सरकार द्वारा प्रदत्त कल्याणकारी योजनाओं से महरूम होना पड़ रहा है।

    [su_highlight background=”#091688″ color=”#ffffff”]सरहद का साक्षी, नई टिहरी[/su_highlight]

    गौरकरणीय है कि मखलोगी प्रखण्ड अंतर्गत ग्राम तुंगोली के आपरेशन पराक्रम शहीद सूबेदार जीत सिंह रावत के परिजनों ने 21 जनवरी एवं 25 फरवरी 2008 को भवन एवं प्राथमिकता के आधार पर गैस एजेंसी आबंटन हेतु प्रार्थना पत्र रक्षा मंत्रालय सेना मुख्यालय नई दिल्ली को प्रेषित किया था, जिसे मार्च 2008 में स्वीकृति प्राप्त हो गयी थी, लेकिन फाइलों में स्वीकृति प्राप्त होने के बाबजूद भी धरातल पर कोई कार्य न हो सका। यही नहीं शासन द्वारा अमर शहीद के नाम से स्थानीय विद्यालय या सड़क मार्ग का नामकरण किए जाने की भी कार्यवाही अमल में लायी गई, मगर शौर्य चक्र एवं महामहिम राष्ट्रपति से सम्मानित सूबेदार जीत सिंह रावत के नाम पर अभी तक न कोई सड़क मार्ग अथवा विद्यालय का नामकरण नहीं हो पाया है, जबकि उनके परिजनों द्वारा जगेठी तुंगोली मोटर मार्ग का नामकरण किए जाने की संस्तुति दी गई थी।

    भारत सरकार की कल्याणकारी योजनाओं से महरूम हैं आपरेशन पराक्रम के शहीद शौर्य चक्र विजेता जीतसिंह के परिजन

    शौर्य चक्र प्राप्त शहीद सूबेदार जीत सिंह रावत की धर्मपत्नी बिसना देवी ने सैनिक कल्याण मंत्री गणेश जोशी को पृष्ठांकित एवं जिला सैनिक कल्याण एवं पुनर्वास कार्यालय को इस आशय से एक पत्र भी प्रेषित किया है। यहां पर गौरकरणीय बिन्दु यह है कि मार्च 2008 में गैस एजेंसी की स्वीकृति प्राप्त होने के एक युग बीत जाने के बाद भी वह गैस एजेंसी अभी तक क्यों नहीं खुल पायी? और भारत सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का स्वीकृति के बाद भी लाभ उन्हें अभी तक क्यों नहीं मिल पाया?

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    आपको बता दें कि आपरेशन पराक्रम के शहीद सूबेदार जीत सिंह का जन्म ग्राम तुंगोली स्थित स्व0 श्री मातवर सिंह रावत के घर पर 05 जून 1958 को हुआ था। शहीद जीत सिंह रावत 09 सितम्बर 1976 को 18 वर्ष की आयु पूर्ण करने पर सेना में भर्ती हुए थे। शहीद जीत सिंह 26 वर्ष 294 दिन की सेवा के दौरान 29 जून 2003 को आपरेशन पराक्रम में शहीद हो गए थे।