संजीवनी आयुर्वेदिक पंचकर्म चिकित्सालय के डॉक्टर जोशी दम्पत्ति की अनुकरणीय पहल

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संजीवनी आयुर्वेदिक पंचकर्म  चिकित्सालय के डॉक्टर जोशी दम्पत्ति की अनुकरणीय पहल
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उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस के अवसर पर संजीवनी पंचकर्म चिकित्सालय के द्वारा स्वास्थ्य जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया गया। जिसमें अतिथि के रूप में मुझे भी सम्मिलित होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। पूर्व कैबिनेट मंत्री लाखी राम जोशी पुत्र डॉक्टर दिनेश जोशी और उनकी पुत्रवधू डॉक्टर प्रीती जोशी के संयुक्त प्रयास से आज चंबा में आयुर्वेदिक पंचकर्म चिकित्सालय रोगियों को नया जीवन दे रहा है। असाध्य रोगों से पीड़ित रोगियों का यह परंपरागत चिकित्सा पद्धति द्वारा किया गया इलाज कारगर साबित हो रहा है।

[su_highlight background=”#091688″ color=”#ffffff”]सरहद का साक्षी @कवि: सोमवारी लाल सकलानी, निशांत[/su_highlight]

यूं तो डॉक्टर जोशी और उनकी धर्मपत्नी डॉक्टर प्रीति जोशी समाज सेवा के रूप में इस कार्य को कर रही हैं लेकिन इसके साथ ही कई नवाचार भी आयोजित किए जा रहे हैं। बच्चों की इम्युनिटी बढ़ाने के लिए, स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता लाने के लिए, समाज को संदेश देने के लिए, अनेक प्रकार के नवाचार युक्त कार्यक्रम भी डॉक्टर जोशी दंपति करते आ रहे हैं। जिससे स्थानीय लोगों में काफी उत्साह नजर आता है और असंख्य रोगियों को पीड़ायुक्त रोगों से मुक्ति मिलने के साथ-साथ स्वस्थता का वरदान प्राप्त होता है। डॉ जोशी दंपत्ति वर्षों से इस प्रकार के समाज सेवा में संलग्न हैं जिसकी काफी सराहना समय-समय पर लोग करते हैं। आर्थराइटिस, लकवा, गठिया तथा बात, पित्त,कफ जनित रोगों से पीड़ित मरीज उनके पास आते हैं और स्वस्थ होकर चले जाते हैं।

मैं इस बात का साक्षी हूं कि वर्षों पहले जब मेरी धर्मपत्नी नसों के दर्द से पीड़ित थी तो जोशी दंपत्ति के ईलाज से सेवा रोग मुक्त हुई। आज भी असंख्य ऐसे रोगी हैं जो उठने- बैठने में असमर्थ हैं लेकिन संजीवनी आयुर्वेदिक  पंचकर्म चिकित्सालय में आकर खुशी का जीवन जी रहे हैं। डॉक्टर दिनेश जोशी और डॉक्टर प्रीती जोशी का यह प्रयास होता है कि बेहतर सेवाओं के द्वारा जड़ से रोग को नष्ट कर दिया जाए।

जहां एलोपैथिक दवाइयां रोग को दबाती हैं, वहीं दूसरी ओर आयुर्वेदिक दवाइयां जड़ से रोग को काटती हैं। डॉक्टर जोशी दंपत्ति किसी पैथी के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन आयुर्वेद को बढ़ावा देना उनका नैतिक कर्तव्य भी है।  इसी प्रयास को आगे बढ़ाने के लिए, जन- जागरूकता को लाने के लिए, आयुर्वेद को बढ़ावा देने के लिए, वह समय-समय पर अनेकों नवाचार के कार्य भी करते रहते हैं।

पेंटिंग प्रतियोगिताओं का आयोजन, “स्वर्ण प्राशन संस्कार” के रूप में पुरस्कार वितरण समारोह आयोजित

इसी श्रंखला में उन्होंने अपना बहुमूल्य समय निकालकर पेंटिंग प्रतियोगिताओं का आयोजन किया, जिसमें शिशु से लेकर 16 वर्ष के बच्चों तक ने भाग लिया। 8 वर्ष तक के बच्चों के लिए अलग  और 9 से 16 वर्ष तक के बच्चों के लिए अलग प्रतियोगिता आयोजित की गई। जिसका कि आज विधिवत “स्वर्ण प्राशन संस्कार” के रूप में प्रतियोगिताओं का पुरस्कार बितरण समारोह आयोजित हुआ। उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस के अवसर पर पुरस्कार का वितरण किया गया।

पेंटिंग प्रतियोगिताओं में सीनियर और जूनियर दो वर्ग बनाए गए। बच्चों को पारितोषिक प्रदान किया गया। सीनियर वर्ग में कुमारी सौम्या जोशी, जवाहर नवोदय विद्यालय पौखाल की छात्रा  प्रथम स्थान प्राप्त की। नवोदय विद्यालय की ही कु. तेजस्वी रावत ने द्वितीय स्थान और कार्मेल स्कूल चंबा की अवनी रावत ने तृतीय स्थान का पुरस्कार प्राप्त किया। जूनियर वर्ग में वह कु.ओजस्वी रावत, कार्मेल स्कूल चंबा, कु.प्रणीति सकलानी, विवेकानंद अकादमी  और कु.अन्नया नवयुग संस्था से क्रमशः प्रथम, द्वितीय और तृतीय स्थान का पुरस्कार प्राप्त करने में सफल रही।

पुरस्कार वितरण के इस कार्यक्रम में अतिथि के रूप में स्थान देने के लिए मैं डॉक्टर जोशी दंपति का आभार व्यक्त करता हूं। आज के इस कार्यक्रम में सरस्वती विद्या मंदिर इंटर कॉलेज के प्रधानाचार्य श्री इंद्र सिंह परमार, ग्राम पंचायत खर्क- भेडीं के  प्रधान श्री ऋषि भट्ट तथा यसमाज सेवी श्री यशपाल सजवान के अलावा पशु- चिकित्सक श्रीमती अंजू रावत, श्रीमती मंजू रमोला श्रीमती पूजा डोभाल जोशी, मातृशक्ति तथा पुरस्कार प्राप्त करने वाले बच्चे सम्मिलित थे।

गणेश जी का मानव धड़ और हाथी का सिर तत्कालीन भारतीय शल्य चिकित्सा का है प्रमाण

डॉ0 जोशी ने आयुर्वेद के संबंध में अनेक बातें बतलाई तथा आयुष प्रदेश उत्तराखंड में आयुर्वेद की प्रसंगिकता के बारे में अपने बहुमूल्य अनुभव प्रस्तुत किए। प्रधानाचार्य श्री इंद्रपाल सिंह परमार जी ने आयुर्वेद के महत्व को बताते हुए शल्य चिकित्सा के क्षेत्र में भारत के किए गए प्रयासों के बारे में अवगत कराया। कहा कि गणेश जी का धड़ जहां मानव है वही सिर हाथी का बना हुआ है। यह भी तत्कालीन भारतीय शल्य चिकित्सा का एक प्रमाण है। श्री यशपाल सज्वाण  तथा प्रधान श्री ऋषि भट्ट  ने भी अपने ज्ञान के द्वारा लोगों को लाभान्वित किया।

कवि और साहित्यकार सोमवारी लाल सकलानी, निशांत ने आयुर्वेद के महत्व, सोलह संस्कारों, परंपरागत चिकित्सा प्रणाली तथा अपने अर्जित अनुभव के द्वारा लोगों को आयुर्वेदिक चिकित्सा के लाभों के बारे में बतलाया। डॉ जोशी दंपत्ति ने अतिथियों का आभार व्यक्त किया तथा विजेताओं को शुभकामनाएं दी।