प्रख्यात पर्यावरणविद और बीज बचाओ आंदोलन के प्रणेता विजय जड़धारी को मिला “विकास प्रवर्तक सम्मान”

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बीज बचाओ आंदोलन के प्रणेता और मशहूर पर्यावरणविद श्री विजय जड़धारी को हाल में “विकास प्रवर्तक” का सम्मान प्राप्त हुआ है।
देहरादून में आयोजित एक कार्यक्रम में हंस फाउंडेशन के द्वारा क्षेत्र में किए गए उल्लेखनीय कार्य के लिए उन्हें यह पुरस्कार प्रदान किया गया।

[su_highlight background=”#091688″ color=”#ffffff”]सरहद का साक्षी @कवि:सोमवारी लाल सकलानी, निशांत[/su_highlight]

उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और महाराष्ट्र के राज्यपाल श्री भगत सिंह कोश्यारी के हाथों यह सम्मान उन्हें प्रदान किया गया। विदित है कि श्री विजय जड़धारी ने अपना पूरा जीवन पर्यावरण, समाज सुधार, बीज बचाओ आन्दोलन तथा सामाजिक बुराइयों के उन्मूलन के लिए समर्पित कर लिया है।

चिपको आंदोलन से लेकर खनन माफियाओं के विरुद्ध आवाज बुलंद करना, शराब विरोधी मुहिम और पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में उनकी उल्लेखनीय भूमिका रही है। श्री विजय जड़धारी को इससे पूर्व “इंदिरा गांधी पर्यावरण पुरस्कार” से भी सम्मानित किया गया है।
अनेक सामाजिक संस्थाओं के द्वारा उन्हें समय-समय पर सम्मान दिया जाता है जो कि उत्तराखंड के लिए गौरव की बात है।

अभी कुछ माह पूर्व उन्होंने आराकोट से अस्कोट तक बीज बचाओ आंदोलन के तत्वावधान मे यात्रा संपन्न की। क्षेत्र में विकास की परिकल्पना के साथ-साथ पारंपरिक खानपान के बारे में अनेक जानकारियां उपलब्ध कराई हैं। बारहनाजा, उत्तराखंड में पारंपरिक खानपान, पारंपरिक खेती और पारंपरिक बीजों का संरक्षण पर उनका मुख्य फोकस रहता है। इसके अलावा श्री विजय जड़धारी सुख -दुख में साथ निभाने वाले एक जिम्मेदार नागरिक भी हैं। सन 1976 से श्री विजय जड़धारी से परिचय रहा है। कालांतर में राजकीय सेवा में आने के कारण यदा-कदा ही उनसे मुलाकात हुई लेकिन विगत 20 वर्षों से उनको समझने और परखने का अवसर मिला। जड़धारी जी के व्यक्तित्व पर समय के बदलाव का असर नहीं दिखाई दिया बल्कि वे अविरल आज भी पर्वतीय क्षेत्रों की सामाजिकता, परंपरा, खान-पान, वेशभूषा, आचार- विचार आदि से लवरेज हैं।

श्री विजय जड़धारी ने अनेक समाज शास्त्रियों के साथ कार्य किया और सैद्धांतिक बातों को धरातल पर भी उतारा। स्व। श्री सुंदरलाल बहुगुणा, श्री धूम सिंह नेगी, स्वर्गीय कुंवर प्रसून, स्वर्गीय प्रताप शिखर, श्री दयाल भाई, स्व.श्री गंगा प्रसाद बहुगुणा, सुदेशा बहिन, साब सिंह सरोज आदि के साथ एक टीम के रूप में कार्य किया।

श्री विजय जड़धारी जी के पास आंदोलनों की समझ है। उत्कृष्ट कोटि की सोच है तथा सामाजिक ताने-बाने को संरक्षित रखने में भी उनका निरंतर प्रयास है। सदैव योगदान रहा है।

68 वर्षीय श्री विजय जड़धारी आज भी कृषि कार्यों में ने लगे हैं और परंपरागत कृषि, पर्वतीय क्षेत्रों के अनुकूल खेती, पर्यावरण का संरक्षण और परंपरागत बीजों का विकास, पारंपरिक खान-पान उसकी उपयोगिता और महत्व आदि पर भी वे कार्य कर रहे हैं। उन्होंने अपने विषय से संबंधित अनेकों पुस्तकें लिखकर उनका प्रकाशन भी कराया है जो कि पाठकों के लिए महत्वपूर्ण होते हुए जनोपयोगी भी है।