चुनावी बयार चलने लगी है पूरे प्रदेश में और चलनी भी चाहिए जनता बैठी है आश लगाए और फिर ह्यूंद ह्यूंद क दिन, कहीं पाला कहीं बर्फ का समय भी आ गया, ब्यो-बराती हो या कुछ और कार्यक्रम नेता भी खूब दिखाई दे रहे बरसाती मैंढक की तरह, जो कुछ दिन टर-टर करके जनता को कुँऐ मे ढकेल कर खुद गायब हो जाएंगे, कभी-कभी तो थौल कौथीग की तरह रैलियों के दर्शन भी हो जाते हैं, और गाँव गली में जिनको बाटा चलना नही आता वो भी किसी दुल्हे की तरह चल रहे हैं। गाँव के फेराभौंरा लगाने, बाजणे- गाजणे, फूल माला पहने नेता, आहा! वाह-वाह! क्या रौनक है नेताओं के मुखड़े पर, काश रोज ही होती!
जो नेता केवल शुभकामनाएँ भेजकर इतिश्री कर लिया करते थे; वे आज हरहाल में खुद या अपने दूतों को भेजकर उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं, कोई स्वाले पूरी पकोडे बना रहा है, कोई नाच रहा है! और जनता बैचारी कहीं-कहीं तो इतनी खुश हो रही है कि जैसे स्वर्गलोक से देवता पधारे हों! नेता भी घर आकर खुश हो रहे। मन मुस्करा रहे ले मारा पापड़ वाले को।
जनता इस बार और चालाक हो गयी,”वो भी मन ही मन मुस्कुरा रही है बेटा 2022 में बताते हैं” आखिर हो तो जनता के सेवक, चारों और धूम भी है डीजे की जरूरत ही कहाँ? हर ओर जिन्दाबाद मुर्दाबाद का शोर जो है खामोशी भी है वोटर छंटनी कर रहा है चर्चाओं का बाजार गर्म है (ताप्यूँ घाम क्या तापण अर दैख्यूँ मनखी क्या देखण)।
महिलाओं के अंदर भी अजीब सी हिलोरें चल रही है उनको मौका क्यों नहीं दिया जाता और शायद कईयो के भाग उल्ट पल्ट कर ही डालेंगी मेरे पहाड़ की बहनें। युवाओं के अंदर भी कुछ बातें मन ही मन चल रही हैं क्या वे डिग्रियों का एगजीवीशन लगाएँ। इस बार बहुत निर्णायक होगा महिलाओं और युवाओं का वोट।
[su_highlight background=”#091688″ color=”#ffffff”]उर्मिला महर सिलकोटी -दीदी की कलम से[/su_highlight]