अस्तित्व बचाने को लालायित है राजनीतिक अदूरदर्शिता का शिकार हुआ संसाधनों से परिपूर्ण रानीचौरी परिसर

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अस्तित्व बचाने को लालायित है राजनीतिक अदूरदर्शिता का शिकार हुआ संसाधनों से परिपूर्ण रानीचौरी परिसर
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वीर चंद्रसिंह गढ़वाली कृषि वानिकी एवं उद्यानिकी विश्वविद्यालय भरसार का रानीचौरी परिसर उजाड़ हो रहा है और अपना अस्तित्व बचाने को लालायित है। पूर्व में रानीचौरी में गोंविदबल्लभ पंत कृषि विश्वविद्यालय का परिसर हुआ करता था। तब यहां पर सब कुछ ठीक चल रहा था, पर किन्हीं राजनीतिक कारणों की वजह से इस परिसर को यहां से हटा दिया गया था और यहां पर वीर चन्द्रसिंह गढ़वाली, विश्व विद्यालय भरसार पौड़ी का परिसर स्थापित किया गया।

[su_highlight background=”#091688″ color=”#ffffff”]सरहद का साक्षी, गोपाल बहुगुणा, रानीचौरी [/su_highlight]

आज इस रानीचौरी परिसर की दयनीय स्थिति देखकर लगता है कि सरकार ने किस उद्देश्य को लेकर यह परिसर यहां स्थापित किया? वर्तमान में यह परिसर महज एक विद्यालय बन कर रह गया है, जबकि संसाधन के दृष्टिकोण से देखें तो यहां पर सब कुछ पहले से ही बन बनाया हुआ है, परिसर के पास पर्याप्त जमीन, बिल्डिंग, रिसर्च लेबोरेटरी, स्टाफ रूम, जो भी किसी उच्च यूनिवर्सिटी में होनी चाहिए; वह सब इस रानीचौरी परिसर में उपलब्ध है, इतने संसाधन होते हुए भी यह परिसर किसान हित में कार्य नहीं कर पा रहा है।

रानीचौरी के आस-पास लगभग 40, 50, गांव है, इन गांवों के बीच में इतना बड़ा कृषि अनुसंधान परिसर होने के बावजूद भी यहां के किसानों को इसका लाभ नहीं मिल रहा है, इसके पीछे कारण साफ है कि यहां के वैज्ञानिकों का किसानों से कोई सबांद नहीं है‌, कुलपति भी कभी-कभी यहां पर उपस्थित होते हैं, परिसर के अंदर का दृश्य देखें तो लगता है, यह परिसर धीरे धीरे उजाड़ होने की ओर अग्रसर है, सड़कों में गढ्ढे ही नजर आते हैं, करोड़ों रुपए की लागत से निर्मित इमारतें जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है, बड़ा दुःख होता है इस परिसर को देखकर, यहां  के गांव के किसानों का कभी यहां पर पशु चारा गृह हुआ करता था, यहां पर घना जंगल होने की वज़ह से पशुओं के लिए साल भर चारा उपलब्ध रहता था और इस चारे की उपलब्धता के कारण सभी किसानों के पास पर्याप्त पशु धन होता था, पर्याप्त खेती बाड़ी होती थी, यहां पर  विश्वविद्यालय परिसर बनने के बाद किसानों लगा कि उनको यहां किसानी, औद्यानिकी संबंधी आधुनिक,जानकारी मिलेगी, लेकिन यह सब कुछ यहां के किसानोें की सोच में ही रह गया है, पशु पालन भी अब धीरे धीरे खत्म हो रहा है, क्योंकि जो हमारे चारागाह भूमि थी वहां पर बाबू,और बेरोजगारो,की फौज पैदा करने वाली ‌ यूनिवर्सिटीयां बन चुकी है।

इन बिगड़ते हालात के पीछे प्रथम कारण राजनीतिक हैं, क्योंकि राजनीतिक लोगों ने यहां के पढ़े-लिखे युवाओं को भ्रमित कर रखा है कि यह जो विश्वविद्यालय बने हुए हैं  केवल रोजगार देने के लिए बने हुए हैं, यहां पर किसी भी पढ़े-लिखे युवा से बात करें तो उसका  दृष्टिकोण होता है,कि  रोजगार मिल जाए, और युवाओं के इस दृष्टिकोण का फायदा यहां के राजनीतिज्ञ अच्छी तरह से उठाते हैं, और कहते हैं यदि हमें वोट दोगे तो हम यूनिवर्सिटी में आपके लिए रोजगार उपलब्ध करवाएंगे, ऐसा कोई  राजनीतिज्ञ नहीं कहता है कि, हम इस यूनिवर्सिटी के माध्यम से  किसानों की आय दुगनी करवाने में सहयोग करने के लिए यथासंभव सरकार से, मदद करवाने की कोशिश करेंगे। अब ज्वलंत प्रश्न यह है कि यह रानीचौरी परिसर किसानों के हित के लिए यहां पर स्थापित किया गया था  या कि कुछ लोगों को रोजगार देने के लिए,या कि कुछ छात्रों को डिग्री प्रदान करने के लिए, यदि यह परिसर किसानों के हितार्थ था तो उसका फायदा  किसानों को क्यों नहीं मिल पाया। सरकार को भी इस विषय पर अतिशीघ्र यथासंम्भव कार्यवाही करनी होगी।

पर्वतीय परिसर रानीचौरी बचाओ संघर्ष समिति से आग्रह

क्षेत्र के प्रमुख समाजसेवी आचार्य हर्षमणि बहुगुणा इस परिसर की दुर्दशा को लेकर खासे चिंतित हैं, उन्होंने पर्वतीय परिसर रानीचौरी बचाओ संघर्ष समिति के सभी पदाधिकारियों, सदस्यों एवं सक्रिय कार्यकर्ताओं से अनुरोध किया कि अतीत में जो क्षण इस क्षेत्र की जनता ने गंवाये हैं हम उनकी पुनरावृत्ति से बचने का प्रयास करें।

आप सब लोगों ने परहित की भावना से ओत-प्रोत होकर एक सकारात्मक प्रयास किया है अब परिणाम का समय है। कतिपय लोग ऐसे भी होते हैं जो हाथ आए छणों को पकड़ नहीं पाते हैं व कुछ ऊर्जा वान व्यक्ति फिसलते हुए छणों को भी एन केन प्रकारेण पकड़ कर विजय श्री का वरण करते हैं।

कहा कि आप सब बजरंगी की तरह हैं, मुझे आशा है कि कभी भी हिम्मत नहीं हारेंगे। कुछ धूर्त भी होते हैं जो समाज की उन्नति नहीं देख सकते हैं, अतः अपने व्यंग्य वाणों की बौछार अवश्य करते होंगे, यह अवश्य कहते होंगे कि हमें क्या फायदा?  पर आने वाली पीढ़ी आपके इस पुनीत कार्य को कभी नहीं भुलाएगी।

वे कहते हैं जीवन का एक नियम है कि — कठिनाइयों को झेलना, प्रकृति की सारी बातों को झेलना, सर्दी, गर्मी, ताप, व्यंग्य वाण, और न जाने क्या क्या? आदमी सरल होता है, यदि कोई यह भी कह दें कि इनके वश की बात नहीं है तब भी आप लोग हिम्मत रखिए। हमें इन सबको झेलते हुए मजबूत बन जाना है। आज का आदमी सोचता है ! पर कष्ट नहीं सहता। कुछ सहता नहीं है! ठीक उस तरह जैसे हम किसी छोटे बच्चे को इतने कपड़ों से ढक लेते हैं कि उस पर कोई आंच ही न आने पाए और धीरे धीरे उसकी सहन शक्ति चूक जाती है और फिर वह जीवन में कष्टों से अधीर हो जाता है। कोई फर्क नहीं पड़ता है आपके कार्य को ईश्वर देख रहा है। यह भी ईश्वर जानता है कि आप सबका यह प्रयास नि: स्वार्थ है। अतः एक बार फिर सटीक प्रयास कीजिए, कहीं ऐसा न हो कि पर्व के समय हमें नींद आ जाए। आर-पार की लड़ाई भी लड़नी पड़े तो उससे भी त्रस्त मत होना। बुरा लग जाय, ऐसा सत्य जरूर बोलो, लेकिन सत्य लगे ऐसा झूठ कभी मत बोलना! कुछ करो? आपके पास अकूत ताकत है।