जंगली जानवरों और आवारा गौवंश के आतंक से खेती से विमुख हो रहे हैं टिहरी जिले के कास्तकार
Tehri News: आये दिन बढ़ती जंगली जानवरों एवं आवारा गौवंश की नफरी के चलते टिहरी जिले का कास्तकार खेती एवं पशुपालन से बिमुख होने को विवश है। जिले के अधिकांश इलाकों में जंगली सुअरों, घर-घर बंदरों एवं गांवों एवं कस्बों में लगातार आवारा गौवंश की संख्या में इजाफा होता जा रहा है।
इनकी लगातार बढ़ती संख्या से गांवों में कास्तकारों के खेत खलिहान नष्ट हो रहे हैं। बन्दर लोगों के घरों एवं रसोईयों में घुसकर लोगों की रोजमर्रा की खाद्य सामग्री को नुकसान पहुंचा रहे हैं।
आवारा गौवंश दिन के समय ग्रामीणों के खेतों एवं चारागाहों में चुगान कर लोगों को पशुपालन समेत खेती से विमुख होने को मजबूर कर रहे हैं। जंगली सुअर रात को लहलहाती फसलों को उखाड़ फेंक रहे है तथा आवारा गौवंश रात्रि के ग्रामीणों के खेतों को चुगने के उपरान्त पशुशालाओं में घुसकर आराम फरमा रहे हैं।
जिले में निराश्रित परित्यक्त गोवंश प्रबंधन हेतु नवीन गोसदन शरणालयों की स्थापना किये जाने हेतु चरणबद्ध प्रक्रिया आरम्भ करने हेतु जुलाई प्रथम सप्ताह में जिलाधिकारी कार्यालय पत्र सं0 302 / 307 / कांजी.हाउस गोशाला शरणालय / 2023-24 दिनांक 06.07.2023 के क्रम में जिले के सभी राजस्व क्षेत्रों एवं निकायों को प्रभावी आदेश जारी करते हुए तीन दिन के भीतर निराश्रित परित्यक्त गोवंश की संख्या निर्धारण के आदेश जारी किए गए थे। मगर अभी तक नवीन गोसदन शरणालयों की स्थापना नहीं हो पायी।
आपको बताते चलें कि जिला मुख्यालय नई टिहरी, ग्रामीण कस्बा रानीचौरी, नगर पंचायत चम्बा समेत सभी ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में असंख्य आवारा गौवंश धूमता नजर आता है। अकेले ग्रामीण कस्बा नकोट में दो दर्जन से अधिक गाय व बैल विचरित करते आमतौर पर देखे जा सकते हैं। नकोट कस्बे में पूर्व में गायों एवं बछड़ों को बाघ अपना निवाला भी बना चुका है। इस बात से वन विभाग भी भली-भांति वाकिफ है।
वर्तमान में नकोट कस्बे के आस-पास के गांवों में बाघ दहाड़ने की चर्चाऐं भी आम हैं। जबकि कस्बे में आवारा गोवंश के साथ आवारा कुत्तों में संख्या में भी इजाफा हो रहा है। बाघ की चर्चाओं से निकटवर्ती गांवों के व्यवसायी व नागरिक धूप छिपने से पहले अपने घरों को कूच कर जाते हैं।
सरकार को आवारा गोवंश के संरक्षण हेतु कोरी घोषणाओं के बजाय धरातल पर कार्य करने की प्रभावी नीति अख्तियार करनी चाहिए, तथा गौशालाओं के नाम पर विभिन्न संस्थाओं को दिए जाने वाले करोड़ों रुपए के अनुदान का उपयोग इस आवारा गोवंश के संरक्षण हेतु करना चाहिए। इसके अलावा जंगली जानवरों एवं बन्दरों से ग्रामीणों की फसलों के संरक्षण हेतु प्रभावी कदम उठाने चाहिए।
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