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चिंतनीय : मुफ्त के चक्कर में गरीब नेताओं के हाथ की कठपुतली ही न बना रहे

केदार सिंह चौहान 'प्रवर' by केदार सिंह चौहान 'प्रवर'
नवम्बर 12, 2021
in Featured, राजनीति/चुनाव
भ्रष्टाचार मुक्त समाज

Shri Gopal Bahuguna

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हर राजनीतिक पार्टी चुनाव के पहले विकास के मुद्दों पर चुनाव लड़ती हैऔर जीत भी जाती है और पांच साल बाद दुबारा वहीं मुद्दा विकास- विकास, ऐसा क्यों? शायद इसका मुख्य कारण यह है कि आम जनता नेताओं और अधिकारियों के प्रति अपनी कोई जवाबदेही नहीं समझती है, चुनाव जीतने के बाद नेता अपनी राह पर अपनी मर्जी के अनुसार और अधिकारी अपनी मर्जी के अनुसार कार्य करते हैं।

 सरहद का साक्षी @गोपाल बहुगुणा, रानीचौरी 

अधिकारियों ने आम लोगों के बीच एक ऐसा माहौल बना दिया है कि समाज का अंतिम व्यक्ति भी अधिकारियों को देवता मानने लग जाता है, समाज के अंतिम व्यक्ति को अपनी बात को अधिकारी तक पहुंचाने के लिए गांव के या शहर के किसी जनप्रतिनिधि का सहारा लेना होता है,इन जनप्रतिनिधियों के बिना आम लोगों के काम ही नहीं हो पाते हैं, ऐसा हमारे राजनेता एवं अधिकारियों ने रीति और नीति बना रखी है, हमारे जनप्रतिनिधि जनता का थोड़ा बहुत काम करवा कर जनता को अपने एहसानों में दबा देते हैं और यहीं से आम जनता का शोषण शुरू हो जाता है।

आज गांव में विकास की सही सोच रखने वाले लोग नहीं रह  हैं

आम जनता को यह पता हो कि यह गलत हो रहा है तब भी वह नहीं कह सकती है, क्योंकि वह जनप्रतिनिधियों के एहसानो दबी होती है। गांव में ही देख लीजिए। 35-40 सालों से हम यही सुन रहे हैं कि हम गांव का विकास करेंगे, लेकिन अभी तक गांव का विकास क्यों नहीं हो पाया है, जो बचे कुछे लोग गांव में रह रहे हैं वह राजनीतिक पार्टियों के जंजाल में फंसे रहते हैं, आज गांव में विकास की सही सोच वाले लोग नहीं हैं, अधिकांश लोग पलायन कर चुके हैं गांव उजाड़ हो चुके हैं हम किस विकास की बात कर रहे हैं विकास हो गया होता तो आज पलायन नहीं होता, सरकार के सरकारी स्कूलों की स्थिति बहुत दयनीय है, इसका मुख्य कारण है की आम लोगों की सरकारी स्कूलों की पढ़ाई पर विश्वास न होना, सरकारी स्कूलों पर सरकार भी गंभीर नहीं है तभी तो वह सरकारी स्कूलों के आसपास ही प्राइवेट स्कूलों को खोलने की मान्यता दे देती है।

🚀 यह भी पढ़ें :  विधानसभा चुनाव -2022: दिव्यांग, सखी एवं आदर्श मतदेय स्थल के संबंध में संबंधित रिटर्निंग ऑफिसर के साथ समीक्षा बैठक
आज हमें एक बार पुनः विचार करना होगा कि यदि हम इसी पुरानी सोच के आधार पर चलते रहेंगे तो एक दिन जरूर आएगा कि हमारे गांव में खंडहर ही खंडहर नजर आएंगे और हमें दोबारा अपनी जमीन अपने गांव में आने के लिए तरसना पड़ सकता है, आम लोगों को खुद पहल करनी होगी। अपने विकास के लिए सरकारों से अधिकारियों से लड़ना होगा। जब तक हम लोग सरकार और राजनीति से लड़ना नहीं सीखेंगे। तब तक हमारे गांव ऐसे ही उजड़ते रहेंगे और हमारा शोषण ऐसे ही पूर्व की भांति होता रहेगा हमें किसी भी राजनीतिक पार्टियों के दबाव और एहसानों में नहीं आना चाहिए। जनता को केवल एक बात ध्यान में रखनी चाहिए कि उसे अपने गांव का विकास अपने शहर का विकास चाहिए, चाहे किसी भी पार्टी या अधिकारी के माध्यम से हो सके जनता को अधिकारियों और राजनीतिकों के बीच अपनी बात को निर्भीकता से रखना होगा।

सोचिये! 18 घंटे काम करने वाले गरीब किसान मजदूर के लिए सरकार क्या कर रही है

तभी हमारे गांव शहरों का विकास हो सकेगा, नहीं तो हम 20 साल बाद भी वही विकास का नारा नारा चिल्लाते रहेंगे और इस नारे को जोर देने वाली हमारी राजनीतिक पार्टियां अपनी रोटी सेंकती रहेंगी। साथियों प्रत्येक राजनीतिक पार्टियों के दूत हमारे अपने बीच ही होते हैं, यह समाज को बनाने का काम कम और तोड़ने का ज्यादा करते हैं, तोड़ने का इस अर्थ में कि आप देख सकते हैं कि सरकार केवल और केवल उन्हीं लोगों की ज्यादा हेल्प कर रही है और उन्हीं लोगों की मांग स्वीकार कर रही है जिन लोगों के पेट पहले से भरे हुए हैं और फिर सरकार उनको ओवरफीड करवा रही है।

🚀 यह भी पढ़ें :  विधानसभा चुनाव 2022ः उजपा ने 27 बिन्दुओं का संकल्प पत्र जारी कर किया चुनावी शंखनाद , फिलहाल 7 सीटों पर लड़ेगी चुनाव
जी हां! मेरा मतलब यहां पर उन सरकारी कर्मचारियों से है जो एक लाख से ऊपर आज वेतन ले रहे हैं और थोड़ा यदि उनके वेतन में ₹200-300, की कमी आ जाती है तो वह अपने संघ के माध्यम से सड़कों पर सरकार के लिए मुसीबत खड़ी कर देते हैं और फिर सरकारों को भी उनकी मांग स्वीकार करनी पड़ती है, लेकिन कभी सोचना कि उस गरीब किसान मजदूर जो 18 घंटे काम करने के बावजूद भी उसको कभी भरपेट खाना नहीं मिल पाता है उसके लिए सरकार क्या कर रही है। वह कभी सड़क पर नहीं आता है अपनी मांग को मनवाने के लिए।

क्या उस गरीब किसान मजदूर का देश के निर्माण में योगदान नहीं है

🚀 यह भी पढ़ें :  स्वच्छता के साथ गुणवत्ता और सुरक्षा भी जरूरी है, सार्वजनिक क्षेत्र हो या निजी क्षेत्र, कार्य नियोजित और गुणवत्तापरक हों!
लेकिन मैं यहां पर पूछना चाहता हूं क्या उस गरीब किसान मजदूर का देश के निर्माण में योगदान नहीं है देखा जाए तो इन तनख्वाही कर्मचारियों से ज्यादा उस गरीब का हाथ देश के निर्माण में होता है लेकिन फिर भी उसको हमारी व्यवस्था ने हाशिए पर रखा हुआ है। क्या मात्र मुफ्त के अनाज से उसके जीवन स्तर में सुधार आ सकेगा। एक बार सोचना, ऐसा न हो, गरीब मुफ्त के चक्कर में नेताओं के हाथ की कठपुतली ही बना रहे।

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हर राजनीतिक पार्टी चुनाव के पहले विकास के मुद्दों पर चुनाव लड़ती हैऔर जीत भी जाती है और पांच साल बाद दुबारा वहीं मुद्दा विकास- विकास, ऐसा क्यों? शायद इसका मुख्य कारण यह है कि आम जनता नेताओं और अधिकारियों के प्रति अपनी कोई जवाबदेही नहीं समझती है, चुनाव जीतने के बाद नेता अपनी राह पर अपनी मर्जी के अनुसार और अधिकारी अपनी मर्जी के अनुसार कार्य करते हैं।

 सरहद का साक्षी @गोपाल बहुगुणा, रानीचौरी 

अधिकारियों ने आम लोगों के बीच एक ऐसा माहौल बना दिया है कि समाज का अंतिम व्यक्ति भी अधिकारियों को देवता मानने लग जाता है, समाज के अंतिम व्यक्ति को अपनी बात को अधिकारी तक पहुंचाने के लिए गांव के या शहर के किसी जनप्रतिनिधि का सहारा लेना होता है,इन जनप्रतिनिधियों के बिना आम लोगों के काम ही नहीं हो पाते हैं, ऐसा हमारे राजनेता एवं अधिकारियों ने रीति और नीति बना रखी है, हमारे जनप्रतिनिधि जनता का थोड़ा बहुत काम करवा कर जनता को अपने एहसानों में दबा देते हैं और यहीं से आम जनता का शोषण शुरू हो जाता है।

आज गांव में विकास की सही सोच रखने वाले लोग नहीं रह  हैं

आम जनता को यह पता हो कि यह गलत हो रहा है तब भी वह नहीं कह सकती है, क्योंकि वह जनप्रतिनिधियों के एहसानो दबी होती है। गांव में ही देख लीजिए। 35-40 सालों से हम यही सुन रहे हैं कि हम गांव का विकास करेंगे, लेकिन अभी तक गांव का विकास क्यों नहीं हो पाया है, जो बचे कुछे लोग गांव में रह रहे हैं वह राजनीतिक पार्टियों के जंजाल में फंसे रहते हैं, आज गांव में विकास की सही सोच वाले लोग नहीं हैं, अधिकांश लोग पलायन कर चुके हैं गांव उजाड़ हो चुके हैं हम किस विकास की बात कर रहे हैं विकास हो गया होता तो आज पलायन नहीं होता, सरकार के सरकारी स्कूलों की स्थिति बहुत दयनीय है, इसका मुख्य कारण है की आम लोगों की सरकारी स्कूलों की पढ़ाई पर विश्वास न होना, सरकारी स्कूलों पर सरकार भी गंभीर नहीं है तभी तो वह सरकारी स्कूलों के आसपास ही प्राइवेट स्कूलों को खोलने की मान्यता दे देती है।

🚀 यह भी पढ़ें :  मंथन: ब्राह्मणों पर आरोप; कि उन्होंने अन्य वर्णों के साथ भेदभाव तथा उनका शोषण किया?
आज हमें एक बार पुनः विचार करना होगा कि यदि हम इसी पुरानी सोच के आधार पर चलते रहेंगे तो एक दिन जरूर आएगा कि हमारे गांव में खंडहर ही खंडहर नजर आएंगे और हमें दोबारा अपनी जमीन अपने गांव में आने के लिए तरसना पड़ सकता है, आम लोगों को खुद पहल करनी होगी। अपने विकास के लिए सरकारों से अधिकारियों से लड़ना होगा। जब तक हम लोग सरकार और राजनीति से लड़ना नहीं सीखेंगे। तब तक हमारे गांव ऐसे ही उजड़ते रहेंगे और हमारा शोषण ऐसे ही पूर्व की भांति होता रहेगा हमें किसी भी राजनीतिक पार्टियों के दबाव और एहसानों में नहीं आना चाहिए। जनता को केवल एक बात ध्यान में रखनी चाहिए कि उसे अपने गांव का विकास अपने शहर का विकास चाहिए, चाहे किसी भी पार्टी या अधिकारी के माध्यम से हो सके जनता को अधिकारियों और राजनीतिकों के बीच अपनी बात को निर्भीकता से रखना होगा।

सोचिये! 18 घंटे काम करने वाले गरीब किसान मजदूर के लिए सरकार क्या कर रही है

तभी हमारे गांव शहरों का विकास हो सकेगा, नहीं तो हम 20 साल बाद भी वही विकास का नारा नारा चिल्लाते रहेंगे और इस नारे को जोर देने वाली हमारी राजनीतिक पार्टियां अपनी रोटी सेंकती रहेंगी। साथियों प्रत्येक राजनीतिक पार्टियों के दूत हमारे अपने बीच ही होते हैं, यह समाज को बनाने का काम कम और तोड़ने का ज्यादा करते हैं, तोड़ने का इस अर्थ में कि आप देख सकते हैं कि सरकार केवल और केवल उन्हीं लोगों की ज्यादा हेल्प कर रही है और उन्हीं लोगों की मांग स्वीकार कर रही है जिन लोगों के पेट पहले से भरे हुए हैं और फिर सरकार उनको ओवरफीड करवा रही है।

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जी हां! मेरा मतलब यहां पर उन सरकारी कर्मचारियों से है जो एक लाख से ऊपर आज वेतन ले रहे हैं और थोड़ा यदि उनके वेतन में ₹200-300, की कमी आ जाती है तो वह अपने संघ के माध्यम से सड़कों पर सरकार के लिए मुसीबत खड़ी कर देते हैं और फिर सरकारों को भी उनकी मांग स्वीकार करनी पड़ती है, लेकिन कभी सोचना कि उस गरीब किसान मजदूर जो 18 घंटे काम करने के बावजूद भी उसको कभी भरपेट खाना नहीं मिल पाता है उसके लिए सरकार क्या कर रही है। वह कभी सड़क पर नहीं आता है अपनी मांग को मनवाने के लिए।

क्या उस गरीब किसान मजदूर का देश के निर्माण में योगदान नहीं है

🚀 यह भी पढ़ें :  Starting a business Practice of development.
लेकिन मैं यहां पर पूछना चाहता हूं क्या उस गरीब किसान मजदूर का देश के निर्माण में योगदान नहीं है देखा जाए तो इन तनख्वाही कर्मचारियों से ज्यादा उस गरीब का हाथ देश के निर्माण में होता है लेकिन फिर भी उसको हमारी व्यवस्था ने हाशिए पर रखा हुआ है। क्या मात्र मुफ्त के अनाज से उसके जीवन स्तर में सुधार आ सकेगा। एक बार सोचना, ऐसा न हो, गरीब मुफ्त के चक्कर में नेताओं के हाथ की कठपुतली ही बना रहे।

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