उत्तराखंड के लोकपर्व एकाश बग्वाल को यह व्रत कर भक्त अपने उद्धार की कामना करते हैं

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हरिप्रबोधनी एकादशी, एकाश बग्वाल, तुलसी विवाह का महापर्व

इस बार 14 नबंबर रविवार को है एकाश दीवाली, कार्तिक शुक्ल एकादशी को भगवत् प्रीत्यर्थ पूजा पाठ, व्रत उपवास, रात्रि जागरण, पुराण पाठ, भगवान विष्णु की पूजा, इस एकादशी को देवोत्थानी एकादशी भी कहते हैं। भगवान को जगाने के लिए इस मन्त्र से प्रार्थना की जाती है।

[su_highlight background=”#091688″ color=”#ffffff”]सरहद का साक्षी @ आचार्य हर्षमणि बहुगुणा[/su_highlight]

*उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पते ।*
*त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदम् ।।*
*उत्तिष्ठोत्तिष्ठ वाराह दंष्ट्रोद्धृतवसुन्धरे ।*
*हिरण्याक्षप्राणघातिन् त्रैलोक्ये मंङ्गलं कुरु ।।*

यद्यपि भगवान क्षणभर भी नहीं सोते हैं, परन्तु भक्तों की भावना के अनुसार चार महीने शयन करते हैं। उनका क्षीर शयन का कारण यह माना जाता है कि भगवान श्री हरि ने आषाढ़ शुक्ल एकादशी के दिन महापराक्रमी शंखासुर नामक राक्षस का वध किया था और उस थकान को दूर करने के लिए क्षीर सागर में सो गये फिर कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को देव का प्रबोध हुआ।

अतः भक्त जन इस तिथि को व्रत कर अपने उद्धार की कामना करते हैं। यदि उपवास न रखा जा सके तो नियम संयम पूर्वक रह कर फलाहार करना श्रेयस्कर है। शुक्ल एकादशी को तुलसी की पूजा अर्चना कर शालिग्राम से तुलसी का विवाह किया जाता है। लोकाचार के अनुरूप भगवान शालिग्राम की मूर्ति का सिंहासन हाथ में रख कर तुलसी जी की सात परिक्रमा करवाई जाती हैं।

भगवान की पूजा अर्चना कर आरती और विवाह की तरह सभी कार्य कर विवाहोत्सव पूरा किया जाता है। देव भूमि में हरिबोधनी एकादशी के दिन दीपावली मनाई जाती है, भगवान की पूजा अर्चना का यह बहुत सुंदर तरीका अपनाया गया है।

आप सभी भारतीयों को इस देवोत्थापनी एकादशी की बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं।