किसी भी देश या राष्ट्र का प्राण हैं उसके संस्कार-संस्कृति

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संस्कार-संस्कृति

आत्मार्थ जीवलोकेस्मिन्
को न जीवति मानव:
परं परोपकारार्थ
यो जीवति स जिवती

वास्तव में किसी भी देश या राष्ट्र का प्राण उसके संस्कार या संस्कृति ही हैं। संस्कारों से प्रत्येक जीव की आत्मा और उनका अन्त: करण शुद्ध होता ही है तथा सांसारिक सीमाओं में आबद्ध आत्मा के उत्थानानुकूल सम्यक भूषणभूत कृतियां ही संस्कृति हैं।

[su_highlight background=”#091688″ color=”#ffffff”]सरहद का साक्षी @*ई०/पं०सुन्दर लाल उनियाल[/su_highlight]

*हमारे देश में गाय, गंगा और गायत्री हमारे भारत की सनातन संस्कृति के आधार स्तम्भ है* जो सदैव दूसरो के लिये अर्थात परोपकार की भावना के साथ ही निस्वार्थ, निरतंर जन जन के कल्याण में ही लगे हैं, सच में यही श्रेष्ठ व उत्तम कार्य और कार्य शैली के साथ साथ हमारे संस्कार भी हैै और संस्कृति भी है।

यह सब हमारी आस्था के प्रमुख केन्द्र भी हैं, सनातन संस्कृति में शरीर छोड़ने के पश्चात भी यह सभी हमारी मुक्ति के प्रमुख साधन भी हैं।

इन सबके दिव्य गुणो के कारण ही हिन्दू धर्म में इन्हे विशिष्ट स्थान दिया गया है। हमारा कोई भी धार्मिक अनुष्ठान इन सबके बिना सम्पूर्ण नहीं होता। इसलिये इनका संरक्षण करना हमारा परम धर्म व कर्तव्य होना चाहिये।

भगवान श्रीकृष्ण के जीवन का उद्देश्य, स्वरूप और उनके सदुपयोग के साथ साथ मानव से भिन्न अन्य जीवो तथा प्रकृति का संरक्षण और संवर्धन किस प्रकार किया जाये अनेको बार उपदेशित किया गया है।

अध्यात्म का वास्तविक स्वरूप, परस्पर प्रेम तथा परोपकार की भावना ही हमारे आत्मकल्याण का आधार बन सकती है, जैसे *दीपक का जीवन इसलिये वंदनीय नही होता कि वह केवल जलता है, अपितु वह इसलिये भी वंदनीय होता है कि वह केवल दूसरो के लिये ही जलता है।

ठीक इसी प्रकार भगवान भास्कर, नदी का जल, वायु, गाय तथा प्रकृति कभी भी अपने लिये न कुछ संचय करते है और न अपने लिये जीते है, अपितु वह सदैव दूसरों के लिये अर्थात परोपकार को ही अपना जीवन तथा जीवन का धर्म मानकर चलते है।

अश्विभ्यां प्रात: सवनमिन्द्रेणैन्द्रं माध्यन्दिनम्
वैश्वदेवं सरस्वत्या तृतीयमाप्तं सवनम्।

अत: सदैव सरल/संयमित/मर्यादित एवं सुसंस्कारों से युक्त जीवन व जीवन शैली को अपनाते हुये अपनी सद्वृत्तियों का विकास कर परोपकार तथा परोपकार की भावना को अपनाते हुये सदैव मानवता और शान्ति के लिये कर्म करने का प्रयास करते रहें।

सदैव स्मरण रखना चाहिये कि दीर्घ जीवन का नहीं, पवित्र व संस्कारों से युक्त जीवन का ही मूल्य है।

*नैतिक शिक्षा व आध्यात्मिक प्रेरक, दिल्ली/इन्दिरापुरम,गा०बाद/देहरादून