संविधान दिवस स्वतंत्र भारत के इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय

    संविधान दिवस स्वतंत्र भारत के इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय
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    आज संविधान दिवस के अवसर पर भारतीय गणतंत्र, देश की अखंडता और एकता, धर्मनिरपेक्षता और समानता, स्वतंत्रता और मूल अधिकार अधिकारों के साथ-साथ राष्ट्रीय स्वाभिमान और गौरव के इस दस्तावेज के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हैं।

    [su_highlight background=”#091688″ color=”#ffffff”]सरहद का साक्षी @कवि:सोमवारी लाल सकलानी, निशांत[/su_highlight]

    आज ही के दिन संविधान निर्मात्री समिति ने भारतीय लोकतंत्र को चलाने के लिए यह लिखित और निर्मित दस्तावेज तैयार कर प्रस्तुत कियाथा। समस्त संविधान, निर्मात्री समिति उसके अध्यक्ष बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर तथा संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ राजेंद्र प्रसाद एवं उनकी समस्त टीम को इस पावन अवसर पर नमन। भारत का यह लिखित और निर्मित संविधान जो कि विभिन्न अनुच्छेदों, अनुसूचियों और 354 पृष्ठों में है, इस पावन दस्तावेज को कृतज्ञ राष्ट्र नमन करता है। संविधान की प्रस्तावना या उद्देशिका सब कुछ बयां कर देती है कि भारत की राजव्यवस्था किस प्रकार से आगे गतिमान रहेगी और समय-समय पर देश काल और परिस्थितियों के परिवर्तन के अनुसार इसमें संशोधन भी किया जाएगा।
    जब संविधान बना उस समय और आज की परिस्थितियां बिल्कुल अलग नहीं हैं लेकिन कमोबेश अंतर जरूर आया है।
    देश में समन्वय की भावना बढ़ी है। संसद की गरिमा बरकरार है। सर्वोच्च न्यायालय की के महत्व को समझा जाता है। नागरिकों को मूल अधिकार प्राप्त हैं लेकिन कुछ बातें राजनीति की शिकार हो चुकी हैं। मसलन नियम और कानूनों का पालन सुसंगत ढंग से नहीं हो पाता है और कानूनों का आदर भी उस रूप में नहीं किया जाता है जैसे अपेक्षा थी। दिन-प्रतिदिन राष्ट्र आरक्षण की बैसाखी पर आगे बढ़ रहा है और वोट की राजनीति के कारण बुद्धिजीवी वर्ग और आम नागरिक विशेषकर मध्यमवर्ग कभी-कभी कुंठा का शिकार भी हो जाता है।
    देश में संसाधन बढे हैं। देश का विकास हुआ है। जीवन स्तर में सुधार हुआ है। आज भारत का नाम विकसित देशों की श्रेणी में गिना जाता है। एक महाशक्ति के रूप में भारत उभर रहा है। भारत की विदेश नीति उच्च स्तरीय आधार पर गतिमान है लेकिन इसके साथ ही राजनीति के दुष्प्रभाव और षड्यंत्र भी कम नहीं चल रहे हैं। जो कि देश की व्यवस्था को खोखला करते हैं। आरक्षण की व्यवस्था जो 15 वर्ष के लिए की गई थी, वह उत्तरोत्तर बढ़ती जा रही है। कार्यकुशलता की जगह मुफ्त खोरी का बुखार लोगों के सर पर चढ़ा हुआ है। मुफ्त की सुविधाएं देने के बजाय लोगों को रोजगार, संसाधन यदि समुचित ढंग से मुहैया कराए जाते तो राष्ट्र का विकास और द्रुतगति से होता।
    भारत एक महान देश है। आदिकाल से ही यहां अनेकों व्यवस्थाएं गतिमान रही हैं। राजतंत्र और कुलीन तंत्र की व्यवस्थाएं लंबे समय तक इस देश में चलती रही लेकिन गणतांत्रिक व्यवस्थाएं और अखंड भारत का स्वप्न सदैव ही भारतवासियों के मन को उद्वेलित करता रहा जो कि आज भी दिखाई दे रहा है।
    सन 1947 को भारत का विभाजन होना एक दुर्भाग्यपूर्ण त्रासती रही है। जो हो गया है उस पर अब करुण- क्रंदन करना लाजमी नहीं है।भले ही राजनीतिक सीमाएं बदल चुकी हों लेकिन मूल भावनाएं आज भी अखंड हिंदुस्तान के स्वरूप को पहचानती हैं।
    संविधान दिवस के अवसर पर देश की आजादी के लिए प्राणोत्सर्ग करने वाले जाने- अनजाने लाखों स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों, आपने वीर जवानों, मजदूरों, किसानों, तथा मातृशक्ति को हम नमन करते हैं जिनकी कार्यकुशलता, निष्ठा और कर्म के बल पर यह राष्ट्र आगे बढ़ रहा है।
    हमारा सामाजिक ताना -बाना, हमारी संस्कृति और सभ्यता विश्व में शिरमौर है। आज भी पाश्चात्य लोग भारत को अपना प्रेरणास्रोत मानते हैं और भारत का आदर करते हैं। भारत की व्यवस्था का अनुसरण करने में भी परहेज नहीं करते। कुछ अपवादों को छोड़कर आज भी संविधान की उद्देशिका के अनुरूप राष्ट्र अपना मार्ग प्रशस्त कर रहा है।
    एक बार पुन: स्वर्गीय राजेंद्र प्रसाद, स्वर्गीय बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर तथा संविधान सभा, निर्मात्री समिति के समस्त कर्णधारों को शत-शत प्रणाम और नमन।