Christmas Day Special: यीशु मसीह के जन्मदिन की याद दिलाता है बड़ा दिन 25 दिसंबर

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    Big Day 25 December to commemorate the birthday of Jesus Christ
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    Big Day 25 December to commemorate the birthday of Jesus Christ

    सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया: ।
    सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दु:खभाग्भवेत् ।।

    मनुष्य जाने अनजाने में अनेक पापरूपी निन्दित कर्म कर ही लेता है, उसकी शुद्धि के लिए शास्त्रों ने प्रायश्चित का विधान बताया है। व्रत या उपवास ‌पापों का विनाश कर पुण्य अर्जित करने में भी सहायता करते हैं।

    [su_highlight background=”#091688″ color=”#ffffff”]सरहद का साक्षी @ आचार्य हर्षमणि बहुगुणा [/su_highlight]

    हिन्दू धर्म की तरह अन्य धर्मों के लोग भी अपने-अपने पर्वों को हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। आज दिसंबर का महीना और पच्चीस तारीख हैं, आज ईसाई धर्म के लोग विशेष रूप से ख्रीस्तजयन्ती अर्थात् ‘बड़ा दिन’ मनाते हैं। ईसाई लोग यह उत्सव 25 दिसंबर से 31 दिसंबर तक मनाते हैं। यह उत्सव 24 दिसंबर की आधी रात से प्रारम्भ हो जाता है और ईसाई धर्म के नव युवकों की टोली जिन्हें कैरल्स कहा जाता है, यीशु मसीह के जन्म से सम्बन्धित गीत प्रत्येक मसीही समुदाय के लोगों के घरों में जाकर गातें हैं तथा 25 दिसंबर की प्रात: गिरिजा घरों में विशेष आराधना की जाती है, जिसे ” क्रिसमस सर्विस ” कहा जाता है।

    इस आराधना में धर्माचार्य यीशु के जीवन से सम्बन्धित प्रवचन करते हैं। आराधना के बाद मसीही समुदाय के लोग एक दूसरे का अभिवादन करते हुए बड़ा दिन मुबारक कहते हैं। ( Wish you a happy Christmas ) तथा एक दूसरे को उपहार स्वरूप कुछ न कुछ देते हैं, तथा घर आने वाले मेहमानों का स्वागत सत्कार करते हैं। आज के दिन से एक सप्ताह पहले मसीही समुदाय के लोग अपने रिश्तेदारों तथा परिचितों को क्रिसमस ग्रीटिंग कार्ड भी भेजते हैं। आज का दिन यीशु के जन्मदिन की याद दिलाता है। अगर उनकी नजर से देखा जाए तो यह पर्व मसीहियों का हृदय है। ये लोग प्रत्येक रविवार को गिरिजाघरों में सामूहिक आराधना करते हैं, जिसमें बाइबिल का पाठ, भजन एवं प्रार्थनाएं सम्मिलित हैं । आशीर्वचनों से आराधना समाप्त होती है। प्रत्येक मसीही पवित्र आत्मा का वरदान चाहते हैं।

    “चूंकि हम ईसाई नहीं हैं अतः एक दूसरे को इसकी वधाई तो नहीं दे सकते हैं परन्तु उस धर्म के विषयक जानकारी रखनी आवश्यक समझते हैं।” सभी धर्मों में एक जैसी परम्परा है। कुछ लोग समर्पित भाव से अपने प्रभु से प्रार्थना करते हैं और उन्हें उनका आशीर्वाद अवश्य मिलता है। जब तक ईश्वर के प्रति आस्था और विश्वास नहीं होगा तब तक न उनका आशीर्वाद मिलेगा न भगवान की कृपा ही मिलेगी। ईश्वर सबके साथ है, सबको समान रूप से देखता भी है। आज के इस दिन को ईसाई धर्म के लोग मनाते हैं, परन्तु यह स्पष्ट है कि यह भारतीय संस्कृति की ही विशेषता है कि हमारे यहां प्रत्येक दिन उत्सव का है और विश्व के सभी धर्मों के लोगों ने हमसे ही अपने यहां उत्सव मनाने का निर्णय लिया है। भारत प्राचीन काल से ही धर्म प्राण देश रहा है और यहां का आध्यात्म दर्शन, संयम- नियम, व्रत पालन एवं धर्माचरण पर ही आश्रित है। यहां से ही समूचे विश्व में यह सुकर्म बांटा गया है। अन्य धर्मों का अन्ध विश्वास क्या है इस पर न विचार करना है, न मानना ही है। पर यह सुनिश्चित है कि हमारे देश के अनुयायियों की भरमार है, हमें जिस तरह से भी सम्भव हो, अपने धर्म के प्रति सदैव समर्पित, जागरूक व कृतज्ञ रहना चाहिए । आज हिन्दू धर्म के लोग विश्व में पिछड़ते जा रहे हैं कारण यह है कि हम अपने वेद, उपनिषदों व पुराणों के प्रति आस्था वान कम हैं। स्मृतियों पर अटल विश्वास नहीं रख पाते हैं व उन्हें केवल उपेक्षा की दृष्टि से देखते हैं। ( घर की मुर्गी दाल बराबर) तो आइए आज से ही हम अपने धर्म के प्रति निष्ठावान बनने का संकल्प लें।

    सीखें विश्व के अन्य धर्मों से।
    ” सर्वतो भावेन यदि हम अपने धर्म की रक्षा नहीं कर सकते हैैं तो हम अस्तित्व हीन हो जाएंगे, क्योंकि धर्म उसी की रक्षा करता है जो धर्म की रक्षा करता है।–‘धर्मो रक्षति रक्षित: ‘ अतः यह सुनिश्चित चिन्तन करना है कि दूसरों के धर्म के विषयक जानकारी होनी आवश्यक है, मानना न मानना अलग-अलग विषय है, व अलग परम्परा भी है। यदि हम दूसरों के धर्म के धर्मावलंबी बनते हैं तो हमसे अधिक अनभिज्ञ कोई नहीं है। यह सब स्वाद की तरह है । भगवान श्री कृष्ण ने गीता में अर्जुन को भी यही उपदेश दिया था कि –

    सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज ।
    अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच: ।।

    सब कुछ छोड़कर केवल एक ईश्वर की शरण में जाना चाहिए। अतः अच्छाई कहीं भी हो ग्रहण कर लेनी चाहिए ‍। सचमुच भगवान के समान कृपालु और दृढ़ व्रती तो भगवान के अतिरिक्त और कोई हो ही नहीं सकता।‍ तो ऐसे प्रभु को क्यों छोड़ा जाय, तो आइए दृढ़ व्रती बनें। एक प्रतिज्ञा।