चैत्र नवरात्र: देवी पद्मासन अर्थात् स्कंदमाता के वंदन पूजन से संतान सुख की प्राप्ति होती है

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सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्धया,
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी।

आजकल चल रहे नवरात्रों में भगवती श्री दुर्गा मॉ के नौ स्वरूपों में आज पॉचवे दिवस की अधिष्ठात्री देवी माँ भगवती श्रीस्कन्दमाता हैं।

भगवती सदैव कमल के आसन पर ही विराजित रहती हैं, इसलिये इन्हे पद्मासन देवी भी कहा जाता है, साथ ही साथ माँ को कल्याणकारी शक्ति की अधिष्ठात्री भी कहा जाता है। भगवती के इस रूप का वाहन भी सिंह ही है।

भगवती श्री स्कंद माता की उपासना से बालरूप स्कंद भगवान की उपासना स्वयं ही हो जाती है, भगवान स्कंद की माता होने के कारण भगवती के इस पांचवे स्वरूप को स्कंदमाता के नाम से ही जाना जाता है।

जिन व्यक्तियो को संतानाभाव है विशेषतया वे लोग श्रदाभाव से भगवती की पूजा-अर्चना तथा मॅत्र- जाप कर इसका लाभ प्राप्त कर सकते हैं।

हे मानव मनुष्य जीवन इस सृष्टि की सबसे श्रेष्ठ रचना है। जीवन में ध्यान करने से तन्मयता होती है, इसके बिना सिद्धी नहीं मिलती है, यह मानव जीवन एक मंदिर के समान है। अत: मनुष्य होने पर गर्व करते हुये इस जीवन को सार्थक बनाने का प्रयास करें, आपका मंगल ही होगा।

परमात्मा अर्थात माता-पिता एवं गुरु के एक स्वरूप में ही निष्ठा रखने का प्रयास करें और बार-बार चिंतन करें, इससे मन में आत्मविश्वास व शक्ति दृढ़ होती है, इसलिये सदैव यह भी ध्यान रखना चाहिये कि हर मन एक माणिक्य है, जिसको किसी भी प्रकार से दुखाना उचित नहीं है।

हे मानव निष्काम कर्म एवं निस्वार्थ सेवा ईश्वर को भी आपका ऋणी बना देते है और ईश्वर उसको सूद सहित वापस करने के लिये बाध्य भी हो जाते है, इसलिये शान्त चित्त से निष्काम कर्म कीजिये आपका सदैव कल्याण ही होगा।

ई०/पं०सुन्दर लाल उनियाल (मैथिल ब्राह्मण)
नैतिक शिक्षा व आध्यात्मिक प्रेरक
दिल्ली/इन्दिरापुरम,गा०बाद/देहरादून