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चैत्र नवरात्र:  कूष्माण्डा माता की पूजा-अर्चना से साधक को आध्यात्मिक बल के साथ शारीरिक बल भी प्राप्त होता है

केदार सिंह चौहान 'प्रवर' by केदार सिंह चौहान 'प्रवर'
अप्रैल 5, 2022
in आध्यात्म
चैत्र नवरात्र:  कूष्माण्डा माता की पूजा-अर्चना से साधक को आध्यात्मिक बल के साथ शारीरिक बल भी प्राप्त होता है
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ऊँ ऐं गर्ज गर्ज क्षणं मूढ मधु यावत् पिबाम्यहम्
मया त्वयि हतेत्रैव गर्जिष्यन्त्याशु देवता: ऐं ऊं।

सूरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु में।

आजकल नवरात्रि में श्री दुर्गा माँ के नौ स्वरूपों में आज चौथे दिवस की अधिष्ठात्री शक्ति- देवी माँ भगवती श्री कूष्माण्डा हैं।

भगवती की पूजा-अर्चना से साधक के निम्न प्रकार के रोगों जैसे जरा, मृत्यु, रोग, कमजोरी आदि से छूटकारा तो मिलता ही है, शरीर तथा आत्मा के दोष भी दूर हो जाते हैं, यह सब दिव्यता देने का विलक्षण कार्य माता श्री कूष्मांडा भगवती का ही है।

माँ की पूजा-अर्चना से साधक को मृत्यु का भय नहीं रहता, अपितु साधक को भगवती की कृपा से आध्यात्मिक बल के साथ-साथ शारीरिक बल भी प्राप्त होता है।

🚀 यह भी पढ़ें :  गढ़-नरेशों की आराध्य देवी मां नंदा जी (भगवती राज-राजेश्वरी जलेड),  देवलगढ़ (गढ़वाल) में है मां का प्राचीनतम मंदिर

माँ की नित्य पूजा अर्चना करने से साधक के जीवन की सैकड़ो समस्याएं आसानी से ही दूर हो जाती है। जब इस सृष्टि का अस्तित्व ही नहीं था, तब इन्ही के द्धारा ब्रह्माण्ड की रचना की गयी थी। इस प्रकार ये ही सृष्टि की आदि-स्वरूपा आदिशक्ति भी हैं।

इनका निवास सूर्यमंडल के भीतर के लोक में है, जिसके कारण इनके शरीर की कांति और प्रभा भी सूर्य के समान ही देदीप्यमान है। मॉ की आठ भुजाए है, जिनके कारण ये अष्टभुजा के नाम से भी विख्यात है, मॉ का वाहन सिंह है।

हे मानव कर्म शारीरिक है, जिसका फल साथ के साथ ही प्राप्त होता जाता है, जैसे जहर पीओगे तो तत्काल मृत्यु और शराब पीओगे तो तत्काल उन्माद करोगे, कहने का तात्पर्य नियम के विरूद्ध आचरण करोगे तो उसका फल तो मिलेगा ही।

🚀 यह भी पढ़ें :  अभीष्ट फल प्रदाता देव जो सभी दुखों का हरण करते हैं, आइए! करें उनकी स्तुति

इसलिये सरल व शान्त चित्त से गम्भीरता से विचार कीजिये कि प्रकृति आपसे बिना कोई अपेक्षा किये आपको आपके जीवन की मूलभूत आवश्यकता वाली चीजे निशुल्क देती है, जैसे आपके माता -पिता निस्वार्थ भाव से आपका लालन-पालन करते है और आपके लालन-पालन के साथ ही आपके मल-मूत्र की भी बार-बार सफाई करते है, लेकिन हम आज के दौर में प्रकृति व माता-पिता को नि:शुल्क व नि:स्वार्थ भाव से क्या दे रहें हैं? विचारणीय प्रश्न है ?

आप वर्तमान में चिंतन और चरित्र का समन्वय कर प्रकृति व माता-पिता की सेवा भी निस्वार्थ भाव से करते हुये आज में जीने का प्रयास करें आप स्वयं अनुभव करेगे कि नवरात्र में आपके द्वारा की गयी भगवत सेवा भी सार्थक होगी और आपका मंगल भी होगा।

🚀 यह भी पढ़ें :  महाशिवरात्रि: वह रात्रि जिसका है शिव तत्व के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध

ई०/पं०सुन्दर लाल उनियाल (मैथिल ब्राह्मण)
नैतिक शिक्षा व आध्यात्मिक प्रेरक
दिल्ली/इन्दिरापुरम,गा०बाद/देहरादून

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Tags: आध्यात्मिक बलकूष्माण्डा माताचैत्र नवरात्रपूजा-अर्चनाशारीरिक बलसाधक
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