वसन्त ऋतु में फुलयारी (फूलदेई) संक्रांति के पावन पर्व पर हार्दिक शुभकामनाओं के साथ हुआ चैत्र मास का प्रारम्भ

    वसन्त ऋतु में फुलयारी (फूलदेई) संक्रांति के पावन पर्व पर हार्दिक शुभकामनाओं के साथ हुआ चैत्र मास का प्रारम्भ
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    वसन्त ऋतु में फुलयारी (फूलदेई) संक्रांति के पावन पर्व पर हार्दिक शुभकामनाओं के साथ, आज से चैत्र मास का प्रारम्भ हो रहा है, रात्रि ११/४० बजे भगवान भास्कर मीन राशि में प्रवेश करेंगे, आज की संक्रान्ति का पुण्य काल मध्याह्न के बाद से कल तक रहेगा, हो सकता है कि कुछ मनीषी कल संक्रान्ति कह सकते हैं, पर ऐसा नहीं है।

    [su_highlight background=”#880e09″ color=”#ffffff”]सरहद का साक्षी @आचार्य हर्षमणि बहुगुणा [/su_highlight]

    आज ही संक्रमण काल है अतः आज से ही चैत्र मास प्रारम्भ हो गया है। उत्तराखंड देवभूमि में जन-मानस का फूलों के प्रति प्रेम का सबसे बड़ा प्रमाण इस महीने के देहरी पूजन से मिलता है। अलग-अलग लोकाचार के कारण कहीं पूरे महीने, तो कहीं पन्द्रह दिन तो कहीं एक सप्ताह छोटी-छोटी बच्चियों के द्वारा देहरी पूजन फूलों से किया जाता है, कहीं-कहीं बालक व बालिकाओं के द्वारा देहरी पूजन होता है, अलग-अलग प्रचलित लोकाचार से समूचे उत्तराखंड में इस पर्व को मनाया जाता है।

    बालक बालिकाओं का समूह जंगलों से फ्यूली, बुरांश, शिलपाड़ा और अन्य अनेक प्रकार के फूलों को चुन-चुन कर गांव भर की देहलीज की पूजा कर फूल चढ़ाते हैं और घर द्वार के सम्पन्न, घर भण्डार की पूर्णता की कामना परक गीत गाते हैं, इसके बदले बालक बालिकाओं को तिल, गुड़, पापड़ी और पैसों का उपहार दिया जाता है। फूलों के प्रति हमारा प्यार और दुलार अत्यधिक है और हम कामदेव व रति देवी की समृद्धि के लिए वसन्त ऋतु में अपने गांव घरों की देहलीज पर पुष्प अर्पित कर काम देव के पञ्च शरों (अरविन्द, अशोक, आम, मल्लिकाऔर इन्दीवर) की इच्छा पूर्ति भी करते हैं तथा कामदेव के पांच बाण (सम्मोहन, उन्मादन, शोषण, तापन और मुमुर्षुमाण ) इस देहरी पूजन से तृप्त होते हैं।

    हमारे ऋषि- महर्षियों ने जीवन को आनन्द पूर्वक जीने के अनेक तरीके समझाने के लिए बहुत विचार पूर्वक पर्वो का निश्चय किया है। कौन सा महीना ऐसा है जिसमें कोई उत्सव नहीं मनाया जाता है फिर तीज और त्योहार हमारी भावी पीढ़ी को सजग करने के शिक्षण संस्थान भी है। क्यों होते थे पहले दरवाजे कम ऊंचाई के? बहुत विचारणीय प्रश्न है। जिससे हम विनम्रता का पाठ पढ़ सकें।

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    आज परिस्थिति बदलती जा रही है, मानव अति बुद्धिमान बनता जा रहा है, शायद बुद्धिमान का आशय चतुरता ने ले लिया है। ऊंची आवाज में कह कर अपने आप को सर्व श्रेष्ठ साबित करना! लोकैषणा ही तो है, यह एक कटुसत्य है कि जब से हमने अपने पर्व व परम्पराओं को छोड़ा तब से हमारे अंदर असहिष्णुता बढ़ी है। तीस चालीस साल पहले इस चैत्र मास में बालक बालिकाओं का समूह फूलों से गांव भर की देहलीजों की पूजा करने उमड़ता था, कभी कभी तो कुछ परिवार कुछ चुनिंदा कन्याओं से ही देहरी पूजन करवाते थे और आज हमारे घर की कन्या तक इस पूजा से बचना चाहती है।

    बहुत बड़ी विडम्बना है कि आज इस पर्व को मनाने के लिए देवियों की संख्या में कमी हो गई है। सामान्य जनमानस तो दबंगों के डर से अपने घर में कन्या की कामना भी नहीं करता है, शायद सुरक्षित रहने की संभावना नजर नहीं आती है, इस दुर्भावना का डट कर मुकाबला करने की शक्ति हमारे पास कम है या हर मानव की एक सोच कि मेरा क्या है, इस भावना का मन से बहिष्कार आवश्यक है, आशा है देश व्यापी इस पीड़ा का आंकलन जरूरी समझा जा सकेगा? तो शक्ति को शक्ति मिलेगी। हमारे पर्व फिर पूर्ववत् मनाए जा सकेंगे। मन की गहराइयों से फूलदेई संक्रान्ति की हार्दिक शुभकामनाओं सहित आप सबको आज की फूलदेई (फलियारी) संक्रान्ति की हार्दिक वधाई।