प्लास्टिक पर बैन लगा, अवश्य बड़ा यह कार्य हुआ। कवि निशांत के झोले का, दसकों बाद सम्मान हुआ।। मन दुनिया जन परेशान थे, प्लास्टिक का अंबार लगा। पालीथीन के जहरीले दंश से, जीव जग जलवायु मरा।। सबसे गंदा विकास प्लास्टिक, पॉलिथीन तो संकट है। सुविधाओं के नाम पर, बड़ा यह …
Read More »कविता/कहानी
कविता: यह पुष्प समर्पित उन वीरों को…!
यह पुष्प समर्पित उन वीरों को, जो अमर शहीद हुए हैं। करता है राष्ट्र नमन उन्हीं को, जो वीर इतिहास बने हैं। समय-समय पर भारत के वीरों ने, पराक्रम प्रचंड दिखाया , भारत माता की रक्षा करने कोअपना प्राण उत्सर्ग कराया। यह पुष्प समर्पित उन वीरों को– नापाक चीन …
Read More »कविता: हिंसा-हिंसक मानव से डरा रहा
घूर कर नहीं देखते हैं, भाई! तुम घर-आंगन की शोभा हो। वर्षों से तुमसे नाता- रिश्ता है, क्यों फिर घूर कर देखते हो! यह तुम्हारा भ्रम है प्रिय भाई, क्यों मै तुम्हें घूर कर देखूंगा ! मै तुम्हारे प्यार में पागल पंछी, देख दूर से सलाम कर लूंगा। मै कृतघ्न …
Read More »काव्य कृति समीक्षा: मालिनी का आंचल (डॉ. डी.एन. भटकोटी) समीक्षक: डॉ. अम्बरीष चन्द्र चमोली
शकुंतला और दुष्यंत की प्रणय कथा पर आधारित है डॉ. डी.एन. भटकोटी की अभिनव काव्य कृति “मालिनी का आंचल” मालिनी का आंचल शकुंतला और दुष्यंत की प्रणय कथा पर आधारित डॉ. डी.एन. भटकोटी की अभिनव काव्य कृति है। इस काव्यकृति में तत्कालीन परिवेश, राजव्यवस्था, संस्कृति और परंपराओं के समावेशन के …
Read More »अमर शहीद श्रीदेव सुमन जी (जन्म दिवस) व स्व. श्री प्रताप शिखर जी (पुण्यतिथि) पर भावपूर्ण स्मरण
श्री देव सुमन जी के जन्म दिवस के साथ ही आज एक और प्रख्यात साहित्यकार, कवि, पर्यावरणविद और समाज सेवी (स्व . प्रताप शिखर) की पुण्य तिथि है। उनके बारे मे न कुछ लिखना अपना कर्तव्य है। जन जागृति संस्थान खाड़ी में कई बार उनके कार्यक्रम में सम्मिलित होने का …
Read More »कविता: अमृत बूंदें टपकी अंबर से…!
अमृत बूंदें टपकी अंबर से, धरती मां की जलन मिटी। तरु तृण जीव परिंदे जग के, अति हर्षित हो कर झूम उठे। आग लगी थी जंगल में, तरु तन भीषण जलन हुई। वर्षा की मधु बौछारों से, तन मन की भी जलन गई। कई दिनों से घन अंबर में, आवारा …
Read More »कविता: घर का मतलब महल नहीं है !
बदल गया परिदृश्य ! कैसा वक्त है भाई! सत्तर साल की उम्र में, याद लौट के आयी। कई युद्ध लड़े जीवन में,कभी हार न मानी, जीवन के इस पड़ाव में,कोरोना की जानी। छोड़ दिया था घर पुश्तैनी, नए मकान बनाए, सेना के बंकर से लेकर, महल जिंदगी भायी। आज अचानक …
Read More »श्री सुरकंडा रोपवे कविता: उड़ा, बैठ उड़नखटोला पर…!
मृत्यु लोक का भौतिक प्राणी! @कवि:सोमवारी लाल सकलानी ‘निशांत’ उड़ा! बैठ उड़नखटोला पर मै, चला दिव्य सुरकुट ओर। मृत्यु लोक का भौतिक प्राणी, पंंहुचा अब स्वर्ग के छोर! बे-तारों पर टंग कर तन डोले, पंंहुचा तारों के धोर। देखी दुनिया घाट- बाट- तल, मजदूर दिवस …
Read More »कविता, कवि के मन की बात: हम मर भी जांए तो गम नहीं!
हम मर भी जांए तो गम नहीं, हमारे पास खोने को कुछ नहीं। हम मर भी जांए तो गम नहीं, हमारे साथ जाने को कुछ नहीं। परमाणु बम फटे या कुछ और, हमारे स्वर्ग का द्वार खुल जाएगा। मरना तो उन दौलतमंदों को है, जिन्हें निश्चित नरक मे जाना है। …
Read More »कविता: स्वच्छता में जान है!
स्वच्छता में जान है, सुंदरता महा वरदान है। स्वच्छ सुंदर स्वस्थ भारत, जगत का अभिमान है। स्वच्छ पावन स्वस्थ दुनिया, यह जीवन आधार है। सौंदर्यशाली स्वस्थ जीवन, सृष्टि का स्वाभिमान है। जलवायु ध्वनि मृदा प्रदूषण, मौत का फरमान है ! पॉलीथिन प्लास्टिक कचरा, नित रोग का घरवार है। स्वच्छता …
Read More »हिंदी कविता, वक्त: मछलियों की तलाश में, हम दूर बहुत चले आये!
मछलियों की तलाश में, हम दूर बहुत चले आये! @कवि:सोमवारी लाल सकलानी, निशांत मछलियों की तलाश में, हम दूर बहुत चले हैं आए! चौरासी दिन सागर भटके, कुछ भी हाथ ना आए। खारे जल के बीच भोर से,संध्या तक समय गंवाए। मछलियों की तलाश में, हम दूर बहुत चले …
Read More »कविता: दु:स्वप्ननों की बाढ़ कुछ ऐसी आई, यूक्रेन-रूस लडा़ई!
दु:स्वप्नों की बाढ़ कुछ ऐसी आयी ! नींद हराम कर दी यूक्रेन-रूस लडा़ई। बम गोलों के बीच मानवता कहराई, बोरिस बाइडेन जुबान ने आग लगाई। [su_highlight background=”#870e23″ color=”#f6f6f5″]सरहद का साक्षी @कवि:सोमवारी लाल सकलानी, निशांत[/su_highlight] दु:स्वप्नों की बाढ़ कुछ ऐसी आयी! अहंकार बेवकूफी ने यह जंग कराई। नट जेलस्की को समझ …
Read More »कविता: स्वच्छ हरित पुष्पित मेरा वन
एक हमारा- एक आपका, यह दोनों ही तो जंगल हैं। आंख खोलकर देखो बंदों, हम तुम कैसे वन में रहते हैं? मेरे वन में बुरांस खिले हैं, तुम्हारे वन में कूड़ा के ढ़ेर! राजपुष्प हंसता मेरे वन में, रोता कानन तुम्हारे वनदेश। स्वच्छ हरित षुष्पित मेरा वन, तुम्हारा जंगल में …
Read More »होली पर कविता: बसन्ती रंग
बसन्त आ गया, प्रकृति में बहार छा गई। नीले, पीले, हरे रंग में, मानो सब खो गए।। [su_highlight background=”#880e09″ color=”#ffffff”]@Dr. Dalip Singh Bisht[/su_highlight] बसन्ती रंगों में, सब रंग गये। रंग-बिरंगे फूलों जैसे, चेहरे महक गये।। फाल्गुनी रंग की छटा, चहु ओर बिखर गई। रंगों में सब चेहरे, एक से हो …
Read More »कविता: बसन्त आ गया
मौसम का मिजाज, बसन्त का आगमन बता रहा। डाळी-डाळी फूलों से लदी, नववर्ष आ गया।। बुरांस खिले हैं, मेलू-आड़ू ने रंग बिखेरा। फ्यूंली के पीलेपन ने, प्रकृति को निखारा।। फूलों के रंग में रंग गया, तन-मन सारा। बसन्त के फूलों ने, प्रकृति का रंग निखारा।। नव-कोंपलियों से लद गए पेड़-पौधे …
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