पगडंडियां
डा. दलीप सिंह बिष्ट पहाड़ और पगडंडियों का, अटूट रिश्ता। एक के बिना दूसरे का, नही है अस्तित्व।। पगडंडियां कही अब, खो सी गई है। सड़कों का जाल सब, हजम कर गई है।। गांव तक पहुंचने का, कभी पगडंडियां जरिया थी। मोटर-गाडि़यों ने अब, उनका स्थान ले लिया है।। राहगिरों की चहल कदमी, पगडियों की पहचान थी। अब सूनी पड़ी पगडंडियां, शेष रह गई है।। घास-पात की पगडंडियां, सूनसान हो गई़ है। गांव के गांव यहां अब, खण्डर…