ट्रैकिंग का जुनून है सवार जिनके सर पर : सेना मेडल प्राप्त कैप्टन विजेंद्र सिंह नेगी

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    ट्रैकिंग का जुनून है सवार जिनके सर पर : सेना मेडल प्राप्त कैप्टन विजेंद्र सिंह नेगी
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    जी हां! आप हैं श्री विजेंद्र सिंह नेगी। विक्टोरिया क्रॉस गबर सिंह नेगी के परिवारजन। ग्राम मंजूड़, चंबा (टेहरी गढ़वाल) के निवासी। सेना मेडल प्राप्त। शौर्य और वीर चक्र प्राप्त श्री अजय कोठियाल जी के एवरेस्ट अभियान में टीम का हिस्सा तथा नेहरू माउंटेनियरिंग संस्थान में भी किया कार्य। परिवार दिल्ली में रहता है लेकिन स्वयं चंबा में निवास करते हैं। दिनचर्या भी बड़ी अनोखी है आपकी। सुबह 4:00 बजे उठकर बिल्कुल सैनिक की तरह रोजमर्रा की दैनिक क्रियाओं को संपन्न करने के बाद चल देते हैं- अपना पिट्ठू उठाकर, ट्रैकिंग पर। ट्रैकिंग उनकी अभिरुचि है।

    सरहद का साक्षी@कवि: सोमवारी लाल सकलानी, निशांत

    श्री बिजेंद्र सिंह नेगी को हिमालय का व्यवहारिक ज्ञान है। सेना में रहते हुए तथा नेहरू माउंटेनियरिंग संस्थान में रहते हुए तथा एवरेस्ट अभियान में अजय कोठियाल जी के साथ काम करते हुए, उन्होंने हिमालय की अनेक चोंटियों को फतह किया है।
    अक्सर जब मिलते हैं तो बहुत ही प्रसन्नता होती है और बहुत कुछ सीखने को ही मिलता है। अभी कुछ दिन पूर्व वीसी गबर सिंह नेगी मेला समिति की ओर से उन्हें सम्मानित भी किया गया। श्री बिजेंद्र सिंह नेगी (सेना मेडल) साइलेंट वर्कर हैं। कभी अपने को प्रोजेक्ट नहीं करते। अक्सर आज के जमाने लोगों को फोटो खिंचवाने और नामोल्लेख की होड़ मची रहती है। सोशल मीडिया में अपनी फोटो, परिवार की फोटो, लोगों के द्वारा डाली जाती है। सोशल मीडिया में उद्दात चिंतन की, विचार धाराओं के अनुकूल बात की जाए, समसामयिक मुद्दों पर चर्चा की जाए, प्रकृति और संस्कृति संरक्षण पर बात की जाए, वैज्ञानिक नवाचार और अभ्युदय की बात की जाए, या महान पुरुषों के व्यक्तित्व और कृतित्व पर बात की जाए तो अधिकांश लोग उन तथ्यों, खबरों और विचारों को सरसरी निगाह से देख कर लाइक करने की जरूरत नहीं महसूस करते हैं लेकिन जब व्यक्तिगत फोटो डाली जाए, फिल्म अदाकारों की फोटो डाली जाए, क्रिकेटर्स की फोटो डाली जाए, तो पसंद करने वालों की होड़ मच जाती है।
    श्री विजेंद्र सिंह नेगी एक अनुकरणीय उदाहरण है। महीनों पहले मैने उन पर एक पोस्ट लिखी थी। जब एक दिन ट्रैकिंग में मैं उनके साथ था। वह अपने पानी की बोतल, छोटा सा ही स्टोप और एक समय की भोजन सामग्री अपने पास रखते हैं। दो तीन व्यक्तियों की व्यवस्था ट्रैकिंग में चलते-चलते कर लेते हैं।
    पर्वतीय क्षेत्र में भौतिक विकास त्वरित गति से हो रहा है। अब यह ऋषि-मुनियों की भूमि नहीं रही है। यह पर्यटन और देशाटन की भूमि बन चुकी है। धार्मिक आस्था के केंद्र पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण बन चुके हैं। ठीक भी है। इसके द्वारा असंख्य लोगों की रोजी-रोटी भी चल रही है। धर्म का अस्तित्व भी तभी है, जब व्यक्ति के कुछ गल्ले – पल्ले हो। ‘भूखे पेट भजन नहीं होत गोपाला’ कभी यह युक्ति पढ़ी थी, जो अत्यंत सारगर्भित है।
    धर्म और आस्था महसूस करने वाली चीजें हैं। यह श्रद्धा और भक्ति की भावना है। जबकि रोजी- रोटी और भौतिक संसाधन आज के समय परम उपयोगी साधन है। इनके बिना जीवन अधूरा महसूस होता है। यह सब समय की गति है।
    आज के हमारे ऋषि -मुनि, जो कि धर्म का कार्य कर रहे हैं। मठाधीश है, मंदिर के पुजारी हैं, पंडा समाज है, मुल्ला-मौलवी हैं या कोई अन्य। सभी आधुनिक तकनीकी से लैस हैं। कोई पैदल नहीं चलते हैं बल्कि असंख्य के पास तो बेशकीमती गाड़ियां हैं और अत्याधुनिक सुविधाएं भी उनके पास है। जब इस प्रकार से परिवर्तन की आंधी चल रही हो तो मैं मानता है कि पर्वतीय क्षेत्रों में ट्रैकिंग एक अच्छा व्यवसाय बन सकता है। इससे दोहरा लाभ लोगों को मिलेगा। एक ओर सेना, सुरक्षा बल, पर्वतारोहण अभियान, एनडीआरएफ आदि में नौ,जवान और नव युवतियों को रोजगार और सेवा करने का मौका मिलेगा दूसरी ओर नई-नई खोजें, आविष्कार और अनेकों नवाचार भी होंगें।
    पर्वतीय क्षेत्रों में हर जगह धार- खाल, पहाड़, रमणिक स्थल, बुग्याल, पर्वत श्रृंखला, असंख्य गुफाएं, उच्चतर ढ़लान, आदि पारिस्थितिकीय सुविधाएं मौजूद हैं, जो कि ट्रैकिंग के अनुकूल है।
    श्री विजेंद्र सिंह नेगी जैसे पूर्व सैनिकों की सहायता से इसे और विकसित किया जा सकता है। श्री विजेंद्र सिंह नेगी चुस्त-दुरुस्त, स्वस्थ, उर्जावान और सतर्क पूर्व सैनिक हैं।
    मैं चाहता हूं कि वह एक ट्रैकिंग ग्रुप बनाएं। शासन और प्रशासन को उन्हें सुविधाएं देनी चाहिए। जिससे उनकी क्षमता, कार्यकुशलता और कौशल का सीधा लाभ हमारे नौजवानों को मिलेगा। साथ ही उनकी प्रतिभा भी जिंदा रहेगी। एक बार पुनः श्री विजेंद्र सिंह नेगी को मैं सेल्यूट करता हूं।