जन्मदिन विशेष: (15 जनवरी)- स्वतन्त्रता सेनानी पत्रकार वीरेन्द्र वीर एवम् आदर्श ग्राम के निर्माता अन्ना हजारे

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    स्वतन्त्रता सेनानी पत्रकार वीरेन्द्र वीर

    दिल्ली, पंजाब तथा हरियाणा की पत्रकारिता में महाशय कृष्ण एवं उनके समाचार पत्र ‘दैनिक प्रताप’ का विशेष योगदान है। इन्हीं महाशय जी के घर में 15 जनवरी 1911 को वीरेन्द्र वीर का जन्म हुआ।

    [su_highlight background=”#091688″ color=”#ffffff”]सरहद का साक्षी @महावीर प्रसाद सिंघल[/su_highlight]

    आर्य समाज से प्रभावित परिवार होने के कारण उन्हें देश एवं धर्म के प्रति भक्ति के संस्कार मिले। इसी से प्रेरित होकर वे छोटी अवस्था से ही स्वाधीनता आन्दोलन में भाग लेने लगे। उन दिनों लाहौर क्रान्तिकारी गतिविधियों का केन्द्र था। उस ओर भी वीरेन्द्र जी का रुझान था। इस कारण पुलिस की सूची में उनका नाम भी लिख लिया गया।

    16 वर्ष की अवस्था में वीरेन्द्र वीर को ‘सांडर्स हत्याकांड’ के संदिग्ध अभियुक्त के रूप में पकड़ लिया गया; पर इसमें इनका कोई हाथ नहीं था। शासन को इस कारण इन्हें छोड़ना पड़ा। एक वर्ष बाद ‘वायसराय बम कांड’ में इन्हें फिर गिरफ्तार किया गया; पर इस बार भी शासन इनके विरुद्ध कोई प्रमाण नहीं जुटा सका। अतः ये सम्मान सहित बरी हो गये। फिर भी शासन इन पर सदा सन्देह की दृष्टि रखता था।

    1930 में पंजाब के गर्वनर पंजाब विश्वविद्यालय के दीक्षान्त समारोह में भाग लेने के लिए लाहौर आये। वहाँ क्रान्तिकारी हरिकिशन ने गर्वनर पर बम फेंका। उस समय इन्हें भी अनेक युवा मित्रों सहित फिर गिरफ्तार किया गया, क्योंकि हरिकिशन को समारोह के लिए प्रवेश पत्र वीरेन्द्र जी ने ही दिया था; पर इस बार भी अपराध सिद्ध न होने के कारण शासन को इन्हें छोड़ना पड़ा। यद्यपि इस कांड में हरिकिशन जी को फाँसी हुई।

    1931-32 में गांधी जी द्वारा संचालित ‘सविनय अवज्ञा आन्दोलन’ में सक्रिय रहने के कारण वीरेन्द्र वीर को जेल भेज दिया गया। जेल में रहते हुए ही उन्होंने एम.ए अर्थशास्त्र की परीक्षा अच्छे अंकों में उत्तीर्ण की। जेल से आने पर इनके पिता महाशय कृष्ण जी ने इन्हें ‘दैनिक प्रताप’ का कार्यभार सौंप दिया। अब सम्पादक के रूप में इनका एक नया जीवन प्रारम्भ हुआ।

    सम्पादक रहते हुए वीरेन्द्र जी प्रायः राष्ट्रीय विषयों पर अपनी कलम चलाया करते थे। अतः उनके समाचार पत्र में प्रकाशित सामग्री को आधार बनाकर ‘भारतीय प्रेस अधिनियम’ के अन्तर्गत इन्हें जेल भेजा गया। ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ में भाग लेने के कारण ये तीन साल शाहपुर तथा स्यालकोट की जेल में रहे।

    इस समय इनके पिता तथा दोनों भाई भी जेल में थे। 1945 में सबको रिहा कर दिया गया। 1947 में समाचार सामग्री के आधार पर इन्हें फिर जेल जाना पड़ा। इनके भाई कुँवर नरेन्द्र ने ‘वीर अर्जुन’ नामक दैनिक हिन्दी समाचार पत्र चलाया। उसे भी भारी लोकप्रियता मिली।

    देश स्वाधीन होने पर वीरेन्द्र जी ने राजनीति में प्रवेश किया। वे एक बार पंजाब की विधान सभा और एक बार विधान परिषद के सदस्य रहे। 1954 में उन्होंने हिन्दी में ‘दैनिक वीर प्रताप’ शुरू किया। आर्य समाज के माध्यम से वे धार्मिक गतिविधियों में भी सक्रिय रहते थे।

    शिक्षा प्रसार में भी उनकी भारी रुचि थी। वे डी.एम.कालिज, मोगा; डी.एम.शिक्षा महाविद्यालय, मोगा; दोआबा कालिज, जालन्धर तथा कन्या महाविद्यालय, जालन्धर के अनेक वर्ष तक प्रधान रहे। स्वतन्त्रता सेनानी, राजनेता, पत्रकार तथा शिक्षाप्रेमी वीरेन्द्र वीर जी का 31 दिसम्बर, 1993 को देहान्त हो गया।

    आदर्श ग्राम के निर्माता अन्ना हजारे

    15 जनवरी, 1940 को जन्मे किशन बाबूराव (अन्ना) हजारे का नाम इन दिनों भ्र्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के लिए चर्चित है; पर मुख्यतः उनकी पहचान अपने गांव रालेगण सिन्दी (जिला अहमदनगर, महाराष्ट्र) को एक आदर्श गांव बनाने के लिए है, जिसे देखने दूर-दूर से लोग आते हैं।

    घरेलू परिस्थिति के कारण अन्ना ने कक्षा सात के बाद पढ़ाई छोड़ दी। कुछ समय उन्होंने फूलों का व्यापार किया; पर उससे कुछ लाभ नहीं हुआ। फिर वे मुंबई चले गये। वहां धन तो कमाया; पर कुसंग में पड़ गये। अतः उसे भी छोड़कर वे 1960 में एक वाहन चालक के रूप में सेना में भर्ती हो गये।

    सात नवम्बर, 1965 को पाकिस्तान से हो रहे युद्ध में खेमकरण सीमा पर उनकी टुकड़ी के सब साथी मारे गये; पर आश्चर्यजनक रूप से वे बच गये। उन्हें लगा कि भगवान ने उन्हें किसी विशेष उद्देश्य से ही बचाया है। स्वामी विवेकानंद की जीवनी उनके लिए प्रेरणा की òोत थी। अतः उन्होंने अविवाहित रहकर अपना जीवन समाज सेवा में अर्पित करने का निश्चय कर लिया।

    पर ऐसा करते हुए स्वयं समाज पर बोझ न बनें, इसके लिए उन्होंने अगले दस साल सेना में ही काम किया। 1975 में 475 रु. मासिक पेंशन तथा बीस हजार रु0 की जमापूंजी के साथ उन्होंने नौकरी छोड़ दी। इससे पूर्व उन्होंने अमरनाथ की यात्रा कर भोलेनाथ के सम्मुख अपने गांव को मंदिर तथा ग्रामवासियों को भगवान समझकर उनकी सेवा करने का संकल्प लिया।

    उनके गांव में अकाल और अभाव के कारण निर्धनता तो थी ही, अधिकांश लोग शराब, धूम्रपान और जुए के भी आदी थे। ऐसे में भी उन्होंने धैर्य नहीं छोड़ा। सबसे पहले उन्होंने शराब की भट्टियां बंद कराईं। फिर दुकानदारों से सभी बीड़ी-सिगरेट आदि खरीद कर उनकी होली जलाई। इसके बाद उन्होंने अपनी बीस हजार की कुल पूंजी से गांव के प्राचीन मंदिर का जीर्णोद्धार किया। मंदिर में आरती, भजन आदि होने से गांव का वातावरण बदलने लगा।

    अब श्रमदान तथा बैंक के सहयोग से तालाब तथा कुएं बनाये गये। इससे सिंचित भूमि का क्षेत्रफल 50 से बढ़कर 900 एकड़ हो गया। अतिरिक्त अन्न तथा सब्जी आदि बाजार में जाने से सबकी आर्थिक दशा सुधरने लगी। इसके बाद उन्होंने बरगद, पीपल, नीम, आम, इमली, नीलगिरि आदि के पांच लाख वृक्ष लगवाये। इससे वर्षा का स्तर एक इंच से बढ़कर नौ इंच हो गया।

    1975 तक गांव में केवल कक्षा चार तक की शिक्षा का प्रबन्ध था। अन्ना ने श्रमदान से भवन बनाकर अच्छे शिक्षक नियुक्त किये। इससे विद्यालय कक्षा बारह तक हो गया तथा परीक्षा परिणाम 90 प्रतिशत तक आने लगा। विद्यालय में सब जातियों के बच्चे आयें, इसके लिए विशेष प्रयास किये गये। पुस्तकीय ज्ञान के साथ हाथ के काम सिखाने का भी प्रबन्ध किया गया।

    सफाई, नये प्रकार के शौचालय, निर्धूम चूल्हे, गोबर गैस, आरोग्य केन्द्र आदि से क्रमशः सबका स्वास्थ्य सुधरने लगा। लागत मूल्य पर दवा मिलने लगी। कुछ महिलाओं ने नर्सिंग, प्रसूति व परिवार कल्याण कार्यक्रमों का प्रशिक्षण लिया। सौर ऊर्जा संयंत्रों से बिजली की समस्या हल की गयी। धान्य बैंक से गरीबों को फसल के समय बीज उधार दिया जाने लगा।

    अन्ना के प्रयास से पूरा गांव एक परिवार की तरह रहता है। वहां चुनाव सर्वसम्मति से होते हैं। महिलाएं पंच, सरपंच आदि बनकर काम संभालती हैं। गांव से कुरीतियां समाप्त हो गयी हैं। अन्ना के काम को देखकर देश-विदेश की सैकड़ों निजी तथा शासकीय संस्थाओं ने उन्हें सम्मानित किया है। असीम ऊर्जा के धनी अन्ना हजारे इन्हें अपनी सेवा-पद्धति का सम्मान मानते हैं।

    (संदर्भ : कुमारसभा पत्रक तथा एक कर्मयोगी का गांव)