सुविचार: असत् व्यक्तियों के साथ मित्रता करने या उनका अनुसरण करने से अधोगति होती है, जानिए इस प्रसंग में! 

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    सज्जनों का साथ कल्याण कारी है। हनुमन्नाटक में उद्धृत है कि महापुरुषों के कार्यों की सफलता साधनों में नहीं, अपितु उनके आत्म बल में निवास करती है।-

    ‘क्रियासिद्धि: सत्वे भवति महतां नोपकरणे।।

    अतः निष्ठा पूर्वक महापुरुषों का साथ करना चाहिए।
    “वेदों में बताया है कि सत्पुरुष ही महान पुरुष होते हैं। जीवन में ऐसे ही महापुरुषों का साथ करना चाहिए। ऐसे ही पुरुषों से मित्रता करनी चाहिए, ऐसे पुरुषों द्वारा आचरित व्यवहार को अपनाया जाना चाहिए, तभी जीवन सफल हो सकता है। असत् व्यक्तियों का साथ करने से या मित्रता करने से या उनका अनुसरण करने से अधोगति होती है। प्रत्युत जो महान् पुरुषों का साथ करते हैं वे स्वयं भी महान् हो जाते हैं और दूसरों को आश्रय देने वाले हो (आश्रयदाता) जाते हैं।

    [su_highlight background=”#091688″ color=”#ffffff”]आचार्य हर्षमणि बहुगुणा[/su_highlight]

    ऋग्वेद में एक आख्यान आया है, जिसे अधिकांश पुराण वक्ता अपनी कथाओं में वर्णित करते हैं– कि रुरु नामके राजा का कुत्स नामक एक पुत्र हुआ जिसे एक बार शत्रुओं ने पराजित कर दिया। उस समय अशक्त रुरु ने अपने शत्रुओं के विनाश के लिए देवराज का आवाहन किया। देवराज इन्द्र कुत्स के घर आये और उनके शत्रुओं को मार दिया, इसके बाद कुत्स और देवराज इन्द्र में प्रगाढ़ मित्रता हो गई। फिर इन्द्र उन्हें अपने लोक में ले गए और उन्हें अपने समान वैभवशाली एवं रूप सम्पन्न बनाया अब इन्द्र और कुत्स में पूर्ण समानता हो गई, रूप रंग में भी कोई अन्तर नहीं दिखाई दिया। एक बार देवी शची राजमहल में आई तो वह दो समान व्यक्तियों को (दो इन्द्र सदृश व्यक्तियों को) देख कर आश्चर्य चकित हुई व सन्देह में भी पड़ गई कि वास्तविक इन्द्र कौन हैं?

    यह है मित्रता का फल, जब सामान्य मानव कुत्स ने देवराज इन्द्र के साथ मित्रता की, उनका साथ किया तो वह भी इन्द्र समान हो गये। उनका पराक्रम, वैभव, ऐश्र्वर्य सब देवराज के सदृश्य हो गया। इसलिए अपना कल्याण चाहने वाले व्यक्ति को यदि महान् बनना है तो अच्छे लोगों की संगति करनी चाहिए। अच्छे की पहचान अपने अपने तरीके से की जाती है, निष्कपट, सच्चा, राग-द्वेष रहित, मन मुख एक, चोरी चुगली से रहित, आदि गुणों का समावेश जिसमें हो। दूसरे की विपत्ति में दु:खी, दूसरे की सम्पत्ति में सुखी व्यक्ति सज्जन कहा जा सकता है। मुंह में राम बगल में छुरी वाला नहीं। क्योंकि अच्छे, महान् व्यक्तियों का साथ सदैव कल्याण कारी होता है। तभी तो कहा है कि –

    “सत्संगति कथय किं न करोति पुसाम् ।

    फिर यदि बुद्धि अनुचित मार्ग की ओर उन्मुख न हो तो अनिष्ट कभी नहीं हो सकता है । अतः सावधान चित्त से महापुरुषों की संगति करने में अपना जीवन लगा देना चाहिए।