अन्नकूट महोत्सव एवं गोवर्धन पूजा: जब तक गंगा और गोवर्धन पर्वत पृथ्वी में हैं तब तक कलि का प्रभाव पृथ्वी में पूरी तरह नहीं जमेगा।

767
यहाँ क्लिक कर पोस्ट सुनें

आज अत्यधिक प्रसन्नता का अनुभव करते हुए सभी सुधि पाठकों को हार्दिक बधाई एवं धन्यवाद कि आपने अपने प्रकाश पर्व पर अपने देश को उन्नति के पथ पर अग्रसर करने के लिए सामाजिक दायित्वों का निर्वहन किया व अपने दीपोत्सव पर बिसैली बारूद से बने आतिशबाजी का बिरोध किया।

[su_highlight background=”#091688″ color=”#ffffff”]सरहद का साक्षी @आचार्य हर्षमणि बहुगुणा[/su_highlight]

यह सिलसिला अब लगातार चलता रहेगा तो हमारा भारत प्रदूषण मुक्त अवश्य होगा। इस संकल्प को मन से स्वीकार कर आने वाले मौकों पर अवश्य पूरा करेंगे यह अपेक्षा करता हूं। एक बार पुनः आप सब का धन्यवाद एवं आभार व्यक्त करते हुए प्रसन्नता हो रही है। यह खुशी सबके चेहरों पर दिखाई देती रहेगी।

अब आज के महोत्सव गोवर्धन पूजा के बाद अन्नकूट उत्सव के विषयक कुछ जानकारी साझा की जाय।

कार्तिकस्य सिते पक्षे अन्नकूटं समाचरेत्। गोवर्धनोत्सवं चैव श्रीविष्णु: प्रीयतामिति।।

आज के दिन प्रातः काल घर के द्वार पर गाय के गोबर से गोवर्धन बना कर यथा सम्भव पर्वताकार देकर पूजन कर यह प्रार्थना करनी चाहिए।

गोवर्धन धराधार गोकुल त्राणकारक।
विष्णु बाहुकृतोच्छ्राय गवां कोटिप्रदो भव।।

फिर गायों का विधिवत पूजन कर उनसे यह प्रार्थना करनी श्रेयस्कर है।

यालक्ष्मी लोकपालानां धेनुरूपेण संस्थिता। घृतं वहति यज्ञार्थे मम पापं व्यपोहतु।।

“यथा सम्भव छप्पन व्यंजन बना कर भगवान गोवर्धन को भोग लगाना चाहिए। इस दिन पहले इन्द्र की पूजा होती थी पर भगवान श्रीकृष्ण ने ग्वाल बालों को गोवर्धन के विषयक जानकारी दी व कहा कि आज से हम गोवर्धन भगवान की पूजा करेंगे और गोवर्धन पर्वत की पूजा की, इससे इन्द्र नाराज हो गए व अपने प्रलय कारी बादलों को आज्ञा दी कि मूसलाधार बारिश कर पूरे व्रज को डुबो दिया जाय, सात दिनों तक लगातार मूसलाधार बारिश हुई किन्तु पहले ही दिन श्रीकृष्ण भगवान ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी अंगुली पर उठाकर धाथण किया और समस्त व्रज वासियों को पर्वत के नीचे रख रक्षा की, जब मूसलाधार बारिश का कोई प्रभाव नहीं पड़ा तो इन्द्र को बहुत बड़ी ग्लानि हुई आखिर ब्रह्मा जी ने भगवान श्री कृष्ण जी के परब्रह्म होने की बात समझाई।

अतः देवराज इन्द्र लज्जित होकर श्रीकृष्ण से क्षमा याचना हेतु आकर क्षमा मांगी इस अवसर पर ऐरावत ने आकाश गंगा के जल से तथा कामधेनु ने अपने दूध से भगवान श्री कृष्ण का अभिषेक किया, जिसके फलस्वरूप भगवान श्री कृष्ण का “गोविन्द” नाम पड़ा।

गोवर्धन पर्वत की महिमा के विषयक यह कथा कही जाती है कि एक बार एक ब्राह्मण अपना कर्जा वसूलने के लिए मथुरा आया। लौटते समय उसने उस गिरिराज का एक पत्थर हाथ में ले लिया। आगे रास्ते में एक भयावह राक्षस मिला, ब्राह्मण उसे देख कर डर गया, घबरा गया, कांप रहा था, इतना ही नहीं रोने को हो गया था कि अचानक हाथ के पत्थर को उस राक्षस पर मारा कि क्या देखता है कि उस पत्थर के अद्भुत प्रभाव से उस राक्षस को उस पाप योनि से छुटकारा मिल गया और उसका शरीर अलौकिक हो गया, आकाश से एक दिव्य विमान आया और उसे उसमें बिठा कर गोलोक चला गया।

इससे यह स्पष्ट होता है कि अत्यधिक तपस्या करने से, तीर्थ यात्रा करने से या अन्य पुण्य कर्म से जिस फल की प्राप्ति होती है उससे अधिक फल गोवर्धन पर्वत को देखने से ही प्राप्त होता है। यह भी कहा जाता है कि जब तक गंगा और गोवर्धन पर्वत पृथ्वी में हैं तब तक कलि का प्रभाव पृथ्वी में पूरी तरह नहीं जमेगा।

गोवर्धन पर्वत की अपार महिमा है अतः एक बार गिरिराज की परिक्रमा अवश्य कर लेनी चाहिए। आज गोवर्धन की पूजा कर हम उस पूण्य को अर्जित कर सकते हैैं, अतः इस लाभ से वंचित मत होना यह अनुरोध है।*
गाय पूजा व गोबर से गोवर्धन पर्वत बना कर गोवर्धन पर्वत की पूजा व परिक्रमा हम घर पर भी कर सकते हैं।