मंथन: ब्राह्मणों पर आरोप; कि उन्होंने अन्य वर्णों के साथ भेदभाव तथा उनका शोषण किया?

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    आज दुर्गापूजा का पांचवां नवरात्र चतुर्थी व तृतीया कल एक ही दिन थी। आज कुछ हट कर एक चिन्तन करते हैं कि प्राय: ब्राह्मणों पर यह आरोप लगाया जाता है कि उन्होंने अन्य वर्णों के साथ भेदभाव किया या उनका शोषण किया तो इन पर अवश्य विचार कीजिएगा! समझ आ जाएगा कि क्या सचमुच अन्य जातियों के लोगों पर कोई शोषण हुआ या कभी कोई भेदभाव किया गया। यहां तक कि उदारवादी हिन्दू धर्म के मतावलंबियों ने अन्य धर्मों के लोगों के प्रति उदारतावादी दृष्टि कोण से व्यवहार किया। राजनीति के चश्मे से न देखा जाए, न ही किसी धर्म के विरोध में देखा जाय। यह एक सच्चाई है, और सच्चाई को स्वीकार करने में कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए।

    तो आईए आंकलन किया जाय।
    अक्सर दलित पिछड़ा आरक्षण समर्थक यह कहते हैं कि उनका हजारों सालों से शोषण किया जा रहा है लेकिन यह सही नहीं है।

    चलिए हजारों साल पुराना इतिहास पढ़ते हैं –
    *सम्राट शांतनु ने विवाह किया एक मछुआरे की पुत्री सत्यवती से।*
    *उनका बेटा ही राजा बने, इसलिए भीष्म ने विवाह न करके, आजीवन संतानहीन रहने की भीष्म प्रतिज्ञा की।
    *सत्यवती के बेटे बाद में क्षत्रिय बन गए, जिनके लिए भीष्म आजीवन अविवाहित रहे। क्या उनका शोषण किया गया होगा?

    महाभारत लिखने वाले वेद व्यास भी मछुआरे थे, पर महर्षि बन गए। वो गुरुकुल चलाते थे।
    विदुर, जिन्हें महापंडित कहा जाता है, वो एक दासी के पुत्र थे। हस्तिनापुर के महामंत्री बने। उनकी लिखी हुई विदुर नीति, राजनीति का एक महाग्रन्थ है। भीम ने वनवासी हिडिम्बा से विवाह किया।
    *श्रीकृष्ण दूध का व्यवसाय करने वालों के परिवार से थे। उनके भाई बलराम खेती करते थे। हमेशा हल साथ रखते थे। यादव क्षत्रिय रहे हैं। कई प्रान्तों पर शासन किया और श्री कृष्ण सबके पूजनीय हैं। उन्होंने गीता जैसा ग्रन्थ विश्व को दिया।

    राम के साथ वनवासी निषादराज गुरुकुल में पढ़ते थे, उनके पुत्र लव कुश वाल्मीकि के गुरुकुल में पढ़े जो वनवासी थे, जो पहले गलत तरीके से अपनी आजीविका चलाते थे। तो ये हो गयी वैदिक काल की बात।

    स्पष्ट है कोई किसी का शोषण नहीं करता था। सबको शिक्षा का अधिकार था। कोई भी ऊंचे पद तक पहुँच सकता था अपनी योग्यता के अनुसार।

    वर्ण सिर्फ काम के आधार पर थे, वो बदले जा सकते थे। जिसको आज इकोनॉमिक्स में डिवीज़न ऑफ़ लेबर कहते हैं।

    प्राचीन भारत की बात करें, तो भारत के सबसे बड़े जनपद मगध पर जिस नन्द वंश के राजा रहा वो जाति से नाई थे। नन्द वंश की शुरुआत महापद्मानंद ने की थी, जो कि राजा के नाई थे। बाद में वो राजा बन गए । फिर उनके बेटे भी, बाद में सभी क्षत्रिय ही कहलाये।उसके बाद मौर्य वंश का पूरे देश पर राज हुआ। जिसकी शुरुआत चन्द्रगुप्त से हुई, जो की एक मोर पालने वाले परिवार से थे। एक ब्राह्मण चाणक्य ने उन्हें पूरे देश का सम्राट बनाया।

    506 साल देश पर मौर्यों का राज रहा। फिर गुप्ताओं का राज हुआ, जो कि घोड़े का अस्तबल चलाते थे और घोड़ों का व्यापार करते थे। 140 साल देश पर गुप्ताओं का राज रहा। केवल पुष्यमित्र शुंग के 36 साल के राज को छोड़कर , 92% समय प्राचीन काल में देश में शासन उन्हीं का रहा, जिन्हें आज दलित पिछड़ा कहते हैं।… तो शोषण कहाँ से हो गया? यहाँ भी कोई शोषण वाली बात नहीं है।

    फिर शुरू होता है मध्यकालीन भारत का समय जो सन 1100- 1750 तक है। इस दौरान अधिकतर समय, अधिकतर जगह मुस्लिम शासन रहा।
    अंत में मराठों का उदय हुआ। बाजी राव पेशवा जो कि ब्राह्मण थे, ने गाय चराने वाले गायकवाड़ को गुजरात का राजा बनाया.., चरवाहा जाति के होल्कर को मालवा का राजा बनाया।

    अहिल्या बाई होल्कर खुद बहुत बड़ी शिवभक्त थी… ढेरों मंदिर गुरुकुल उन्होंने बनवाये। मीरा बाई जो कि राजपूत थी… उनके गुरु एक चर्मकार रविदास थे और रविदास के गुरु ब्राह्मण रामानंद थे। यहाँ भी शोषण वाली बात कहीं नहीं है।

    मुग़ल काल से देश में गंदगी शुरू हो जाती है और यहाँ से पर्दा प्रथा, गुलाम प्रथा, बाल विवाह जैसी कुप्रथाओं की शुरूआत होती हैं।

    1757-1947 तक अंग्रेजों के शासन रहा और यहीं से जातिवाद शुरू हुआ। जो उन्होंने फूट डालो और राज करो की नीति के तहत किया।
    *अंग्रेज अधिकारी निकोलस डार्क की किताब ‘कास्ट ऑफ़ माइंड’ में मिल जाएगा कि कैसे अंग्रेजों ने जातिवाद, छुआछूत को बढ़ाया और कैसे स्वार्थी भारतीय नेताओं ने अपने स्वार्थ में इसका राजनीतिकरण किया।
    इन हजारों सालों के इतिहास में देश में कई विदेशी आये, जिन्होंने भारत की सामाजिक स्थिति पर किताबें लिखी हैं… जैसा कि मेगास्थनीज ने इंडिका लिखी।
    फाहियान ह्यू सेंग, अलबरूनी जैसे कई, किसी ने भी नहीं लिखा की यहाँ किसी का शोषण होता था।
    योगी आदित्यनाथ जो ब्राह्मण नहीं हैं, गोरखपुर मंदिर के महंत रहे हैं। पिछड़ी जाति की उमा भारती महा मण्डलेश्वर रही हैं। मंदिरों पर जाति विशेष के ही लोग रहे, ये भी गलत है। शिव मन्दिरों में प्राय: नाथ सम्प्रदाय के पुजारी हैं जो आरक्षित जाति के हैं।

    कोई अगर हजारों साल के शोषण का झूठ बोले तो उसको ये पोस्ट पढ़वा दीजियेगा! “