अक्षय तृतीया: सप्त चिरञ्जियों में एक भगवान परशुराम के अवतरण की तिथि है चिरञ्जीवी तिथि, त्रेता युग का आरम्भ आज की तिथि से ही हुआ अतः इसे युगादि तिथि भी कहते हैं

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अक्षय तृतीया: सप्त चिरञ्जियों में एक भगवान परशुराम के अवतरण की तिथि है चिरञ्जीवी तिथि, त्रेता युग का आरम्भ आज की तिथि से ही हुआ अतः इसे युगादि तिथि भी कहते हैं
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अक्षय तृतीया

वैशाख शुक्ल तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया या आखा तीज कहते हैं। अक्षय का अभिप्राय जिसका कभी क्षय न हो अर्थात् जो सदैव स्थाई रहे और स्थाई वही रह सकता है जो सदैव सत्य है। यद्यपि सत्य बोलने वाले मानव को दुराचारी लोगों द्वारा अच्छी दृष्टि से नहीं देखा जाता है क्योंकि इस संसार में विशेष कर इस युग में छल, कपट और प्रपंचियों को लोग महान समझते हैं, क्योंकि उन्हीं से उनका मतलब सिद्ध होता है। जैसे जरासन्ध, शिशुपाल, कंस, रावण आदि लोगों की मित्र मण्डली घनी थी। अतः यह स्वयं सिद्ध है कि सत्य केवल परमात्मा हैं जो सर्वव्यापक हैं, अक्षय और अखण्ड हैं।

सरहद का साक्षी @आचार्य हर्षमणि बहुगुणा 

आज की तिथि भगवान परशुराम के अवतरण की तिथि भी है, परशुराम जी सप्त चिरञ्जियों में एक हैं। अतः आज की तिथि को चिरञ्जीवी तिथि भी कहते हैं। त्रेता युग का आरम्भ आज की तिथि से ही हुआ अतः इसे युगादि तिथि भी कहते हैं।

आज से उत्तराखंड के प्रमुख धाम बद्रीनारायण और अन्य तीनों धामों के पट दर्शनार्थियों के लिए अनावृत्त होते हैं या आज से उत्तराखंड के पवित्र तीर्थों (धामों) की यात्रा प्रारम्भ हो जाती है। भगवती भागीरथी और यमुना के उद्गम स्थलों में बने मंदिरों के कपाट आज ही खुल रहे हैं। आज के दिन किए पुण्य कर्म त्याग, दान, धर्म, जप-तप अक्षय होते हैं।

आज के दिन ही केवल वर्ष में एक बार वृन्दावन में भगवान श्रीकृष्ण (बिहारी जी) के चरणों के दर्शन भी होते हैं। आज आत्म निरीक्षण का दिन और नाश (क्षय) के कार्यों को अक्षय कार्य करने का दिन भी है।

आज स्वयं सिद्ध मुहूर्त है, अतः सभी मांगलिक कार्य सम्पन्न किए जाते हैं, आज मंगलवार है भले ही होम यज्ञ न हो, पर अभिजित मुहूर्त में शुभ कर्म किए जाने से लाभकारी वेला है।

यह तिथि वसन्त और ग्रीष्म ऋतु का सन्धि काल भी है। विष्णु धर्म सूत्र, मत्स्यपुराण, नारद पुराण भविष्य आदि पुराणों में इसका विस्तृत वर्णन किया गया है। आज के दिन नर- नारायण, हयग्रीव और परशुराम जी का अवतार हुआ था, भगवान परशुराम विष्णु के अंशावतार हैं और दशावतारों में उनकी गिनती होती है।

आज के दिन पुनर्वसु नक्षत्र प्रदोषकाल में मां रेणुका के गर्भ से चिरञ्जीवी परशुराम का प्रादुर्भाव हुआ उच्च के छः ग्रहों में जन्म होना अभूतपूर्व संयोग है। कहा भी गया है कि-

वैशाखस्य सिते पक्षे तृतीयायां पुनर्वसौ।
निशाया: प्रथमे यामे रामाख्य: समये हरि: ।।
स्वोच्चगै: षड्ग्रहैर्युक्ते मिथुने राहुसंस्थिते।
रेणुकायास्तु यो गर्भादवतीर्णो विभु: स्वयम् ।।

आज की तिथि में तृतीया, सोमवार और रोहिणी नक्षत्र तीनों का सुयोग बहुत अच्छा माना जाता है, और आज तृतीया तिथि व रोहिणी नक्षत्र अर्थात् दो योग हैं, यदि इस तिथि को चन्द्रास्त के समय रोहिणी आगे होगी तो फसल के लिए शुभ कारक होता है।

परशुराम जमदग्नि ऋषि के पुत्र थे, पुत्र प्राप्ति की कामना से इनकी मांजी रेणुका और विश्वामित्र की माता को प्रसाद मिला पर संयोग से आपस में बदल गया फलस्वरूप परशुराम जी ब्राह्मण होते हुए भी क्षत्रिय स्वभाव के हुए और विश्वामित्र क्षत्रिय कुल में जन्म लेने के बाद भी ब्रह्मर्षि बने।

सहस्रार्जुन ने जमदग्नि का वध किया अतः क्रुध होकर परशुराम ने अपनी माता के इक्कीस बार छाती पीटने के कारण इक्कीस बार पृथ्वी को दुष्ट क्षत्रिय राजाओं से मुक्त किया। शिव के परशु को धारण करने से इनका नाम परशुराम पड़ा। आज की इस पुण्य तिथि पर सबके कल्याण की कामना करते हुए, ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि समस्त मानव जाति का उद्धार हो और सबका जीवन मंगलमय हो।

अक्षय तृतीया

अक्षय शब्द का मतलब है- जिसका क्षय या नाश न हो। इस दिन किया हुआ जप, तप, ज्ञान तथा दान अक्षय फल देने वाला होता है अतः इसे अक्षय तृतीया कहते हैं।

वैशाखे मासि राजेन्द्र! शुक्लपक्षे तृतीयिका
अक्षया सा तिथिः प्रोक्ता कृत्तिकारोहिणीयुता
तस्यां दानादिकं सर्व्वमक्षयं समुदाहृतमिति

भविष्य पुराण,मत्स्य पुराण,पद्म पुराण, विष्णु धर्मोत्तर पुराण, स्कन्द पुराण में इस तिथि का विशेष उल्लेख है। इस दिन जो भी शुभ कार्य किए जाते हैं, उनका बड़ा ही श्रेष्ठ फल मिलता है। इस दिन सभी देवताओं व पित्तरों का पूजन किया जाता है। पित्तरों का श्राद्ध कर धर्मघट दान किए जाने का उल्लेख शास्त्रों में है। वैशाख मास भगवान विष्णु को अति प्रिय है अतः विशेषतः विष्णु जी की पूजा करें।

भविष्य पुराण, ब्राह्मपर्व, अध्याय 21 के अनुसार:-

वैशाखे मासि राजेन्द्र तृतीया चन्दनस्य च
वारिणा तुष्यते वेधा मोदकैर्भीम एव हि
दानात्तु चन्दनस्येह कञ्जजो नात्र संशय:
यात्वेषा कुरुशार्दूल वैशाखे मासि वै तिथिः
तृतीया साऽक्षया लोके गीर्वाणैरभिनन्दिता
आगतेयं महाबाहो भूरि चन्द्रं वसुव्रता
कलधौतं तथान्नं च घृतं चापि विशेषतः
यद्यद्दत्तं त्वक्षयं स्यात्तेनेयमक्षया स्मृता
यत्किञ्चिद्दीयते दानं स्वल्पं वा यदि वा बहु
तत्सर्वमक्षयं स्याद्वै तेनेयमक्षया स्मृता
योऽस्यां ददाति करकन्वारिबीजसमन्वितान्
स याति पुरुषो वीर लोकं वै हेममालिनः
इत्येषा कथिता वीर तृतीया तिथिरुत्तमा
यामुपोष्य नरो राजन्नृद्धिं वृद्धिं श्रियं भजेत्

वैशाख मास की तृतीया को चन्दन मिश्रित जल तथा मोदक के दान से ब्रह्मा तथा सभी देवता प्रसन्न होते हैं।

देवताओं ने वैशाख मास की तृतीया को अक्षय तृतीया कहा है इस दिन अन्न-वस्त्र-भोजन-सुवर्ण और जल आदि का दान करने से अक्षय फल की प्राप्ति होती है | इसी तृतीया के दिन जो कुछ भी दान किया जाता है वह अक्षय हो जाता है और दान देने वाले सूर्य लोक को प्राप्त करते है। इस तिथि को जो उपवास करते है वह ऋद्धि-वृद्धि और श्री से सम्पन्न हो जाते है।

स्कन्द पुराण के अनुसार जो मनुष्य अक्षय तृतीया को सूर्योदय काल में प्रातः स्नान करते हैं और भगवान विष्णु की पूजा करके कथा सुनते हैं, वे मोक्ष के भागी होते हैं। जो उस दिन मधुसूदन की प्रसन्नता के लिए दान करते हैं, उनका वह पुण्यकर्म भगवान की आज्ञा से अक्षय फल देता है।

भविष्य पुराण के मध्यम पर्व में कहा गया है:-

वैशाखे शुक्लपक्षे तु तृतीयायां तथैव च
गंगातोये नरः स्नात्वा मुच्यते सर्वकिल्बिषैः

वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया में गंगा जी में स्नान करने वाला सब पापों से मुक्त हो जाता हैं। वैशाख मास की तृतीया स्वाती नक्षत्र और माघ की तृतीया रोहिणी युक्त हो तथा आश्विन तृतीया वृष राशि से युक्त हो तो उसमें जो भी दान दिया जाता है, वह अक्षय होता है।

विशेष रूप से इनमें हविष्यान्न एवं मोदक देने से अधिक लाभ होता है तथा गुड़ और कर्पुर से युक्त जलदान करने वाले की विद्वान् पुरुष अधिक प्रंशसा करते हैं, वह मनुष्य ब्रह्मलोक में पूजित होता हैं यदि बुधवार और श्रवण से युक्त तृतीया हो तो उसमें स्नान और उपवास करने से अनंत फल प्राप्त होता हैं।

अस्यां तिथौ क्षयमुर्पति हुतं न दत्तं
तेनाक्षयेति कथिता मुनिभिस्तृतीया
उद्दिश्य दैवतपितृन्क्रियते मनुष्यै:
तत् च अक्षयं भवति भारत सर्वमेव
मदनरत्न

भगवान श्रीकृष्ण युधिष्ठर से कहते हैं, हे राजन इस तिथि पर किए गए दान व हवन का क्षय नहीं .होता है; इसलिए हमारे ऋषि- मुनियों ने इसे अक्षय तृतीया कहा है । इस तिथि पर भगवान की कृपादृष्टि पाने एवं पितरों की गति के लिए की गई विधियां अक्षय-अविनाशी होती हैं।

आज उत्तराखंड में माँ भगवती भागीरथी श्रीगंगा एवं भगवती माँ श्रीयमुना महारानी के श्रीकपाट आम जन के दर्शनाथ खुल रहे है। दोनों माताओं के श्रीकपाट खुलने की आप सभी को हमारे परिवार की ओर से बहुत बहुत बधाई एवं अनंत हार्दिक शुभ मंगलकामनाए।

दोनों माताए आप सभी का सदा सर्वदा मंगल करें आप सदैव सुखी स्वस्थ, समृद्ध, निरोगी एवं दीर्घायु हो श्रीचरणों से यही कामना व प्रार्थना करते हैं।

सरहद का साक्षी ई०/पं०सुन्दर लाल उनियाल (मैथिल ब्राह्मण)
नैतिक शिक्षा व आध्यात्मिक प्रेरक
दिल्ली/इन्दिरापुरम,गा०बाद/देहरादून