नरेंद्रनगर विधान सभा अंतर्गत ग्राम आमपाटा अड़ाना में धर्म सिंह एवं राजपाल सिंह गुसाईं के यहाँ आयोजित श्रीमद्भागवत महापुराण ज्ञान यज्ञ में कथा वक्ता आचार्य हर्षमणि बहुगुणा ने सुमधुर वाणी में कथा का रसपान कराते हुए कहा कि-
भक्ति, मुक्ति और ज्ञान को प्रदान करने वाली श्रीमद्भागवत महापुराण की कथा भगवान श्री हरि के चौबीस अवतारों का सम्यक परिचय देकर मानव को मानवता का पाठ पढ़ाती है, भगवान श्री हरि जब अपने भक्तों के उद्धार के लिए कभी वाराह के रूप में अवतरित होते हैं, तो कभी कछुवे के रूप में, तो कभी मछली के रूप में, तो कभी वामन के रूप में। जो परब्रह्मस्वरूप मानव जाति के लिए अनेक रूप धारण करते हैं हम उन प्रभु का नाम स्मरण कर अपना हित क्यों नहीं कर सकते हैं। उन श्री कृष्ण ने गीता में यही तो कहा कि-
परित्राणाय साधूनां, विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ।।
भगवान ने सबसे पहले सनकादि महर्षियों के रूप में अवतार लिया, फिर वाराह, नारद, नर- नारायण, कपिल, दत्तात्रेय, यज्ञ, ऋषभ, पृथु, मत्स्य, कूर्म, धन्वन्तरि, मोहिनी, नृसिंह, वामन, परशुराम, व्यास, राम, बलराम, कृष्ण, हरि, हंस, बुद्ध और अब अवतरित होंगे कल्कि के रूप में और इन सभी अवतारों की कथा श्रीमद्भागवत में आती है।
अवतार के हेतु भी हैं। भगवान राम और कृष्ण के रूप में उनका पूर्णावतार है। शेष अंशावतार हैं। राम का जन्म मध्याह्न बारह बजे चैत्र शुक्ल पक्ष को राम नवमी के दिन दोपहर को पुनर्वसु नक्षत्र में तो कृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को रात के बारह बजे रोहिणी नक्षत्र में होता है। दोनों विलक्षण प्रतिभा के धनी एक मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम तो दूसरे नटवर माखन चोर श्रीकृष्ण लीला धारी।
आज ऐसे प्रभु के जन्मोत्सव में हम सब प्रसन्नता का अनुभव कर रहे हैं। कितने भाग्यशाली हैं वे लोग जो इन लीलाओं का रसास्वादन कर रहे हैं, कितने भाग्यशाली हैं वे लोग जिनके माध्यम से सबको कथा का आस्वादन हो रहा है। श्रीकृष्ण ने तो पैंतालीस मिनट में हमें एक ऐसा ग्रन्थ दिया जिसका अनुसरण पूरा विश्व करता है।
हम भारतीयों को गीता याद है पर विदेशी लोगों ने तो गीता को अपने जीवन में उतारा है, यह आलोच्य विषय नहीं है पर जीवन में उतारने का एक महत्वपूर्ण सन्देश है।
भगवान श्री कृष्ण ने गीता में उपदेशित किया है कि —
ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम् ।
मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्या: पार्थ सर्वश: ।।
अतः गीता का अध्ययन, अनुशीलन करना आवश्यक है। क्योंकि-
गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यै: शास्त्रविस्तरै: ।
या स्वयं पद्मनाभस्य मुखपद्माद्विनि:सृता ।।