ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पञ्चक विचार, भारतीय संस्कृति का मूलाधार हैं वेद

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परोपकाराय पुण्यार्जनाय हेतु 'एक सीख'; अपनी कमी पर हंसते हुए दूसरे की कमी पर रोएं
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ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पञ्चक विचार, भारतीय संस्कृति का मूलाधार हैं वेद। वेदों से ही हमें अपने धर्म और सदाचार का ज्ञान मिलता है। हमारी पारिवारिक, सामाजिक, वैज्ञानिक और दार्शनिक सभी विचारधाराओं के स्रोत केवल वेद ही हैं।

[su_highlight background=”#091688″ color=”#ffffff”]सरहद का साक्षी @आचार्य हर्षमणि बहुगुणा[/su_highlight]

महर्षि पाणिनि ने ज्योतिष को वेद का नेत्र कहा है। “ज्योतिषामयनं चक्षु:” नेत्र का काम सम्यक् अवलोकन है। संसार के सभी दृश्य पदार्थ परिवर्तन शील हैं और इस परिवर्तन के ज्ञान का कारक काल कहा जाता है। सत्ताईस नक्षत्रों की गणना के अनुसार सवा दो नक्षत्रों की एक राशि होती है। ज्योतिष शास्त्र अथाह है, इसके विषयक जानकारी करना अत्यधिक कठिन प्रतीत होता है। फिर भी भारतीय मनीषियों ने इस दुरूह मार्ग को अपने अथाह ज्ञान से सुगम बनाया है।

आज की चर्चा का विषय पंचकों में कौन-कौन से कार्य निषेध हैं को बताने का प्रयास कर रहा हूं। प्राय: पंचकों के विषयक आम जन समुदाय में अनेक भ्रान्तियां है, जिससे लोगों में भ्रम की स्थिति पैदा हो जाती है और तरह-तरह के प्रश्र मन में उठते हैं। जब कुंभ और मीन राशि में चंद्रमा का प्रवेश होता है या रहता है तब पंचक होते हैं, इसे इस तरह समझा जा सकता है कि धनिष्ठा नक्षत्र के अन्तिम दो चरणों से शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्र पद और रेवती नक्षत्र पंचक संज्ञक हैं। पंचकों में कौन-कौन से कार्य नहीं करने चाहिए, इसे शीघ्र बोध में कहा गया है।

धनिष्ठा पञ्चके त्याज्यस्तृणकाष्ठादिसङ्ग्रह: ।
त्याज्या दक्षिणदिग्यात्रा गृहाणां छादनं तथा ।।

पंचक में तृण, काष्ठ आदि का संचय, दक्षिण दिशा की यात्रा, घर छादन, ( छाना) प्रेतदाह, खाट बुनना आदि कार्य वर्जित हैं। घर में स्तम्भ , झाड़ू आदि बनाने का कार्य वर्जित है। यदि यह कार्य आवश्यक हैं तो कम से कम पांच की संख्या में बनाने चाहिए। पर दक्षिण की यात्रा वर्जित है, सर्वाधिक दोष शव दाह का है। इन पांच नक्षत्रों में यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाय तो दोष निवारण के लिए शान्ति का विधान है। धर्म सिन्धु व निर्णय सिन्धु में यह भी कहा गया है कि यदि पंचक से पूर्व मृत्यु हो गई हो व शव दाह पंचक में किया जाय तो पुत्तलदाह किया जाना चाहिए फिर शान्ति करने की आवश्यकता नहीं है। अर्थात् पंचक में मृत्यु होने पर शान्ति अनिवार्यत: करनी चाहिए, चाहे शवदाह पंचक के बाद भी किया गया हो। पंचक शान्ति इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि इसका प्रभाव पारिवारिक जनों पर पड़ता है।

आजकल प्राय: भ्रान्ति के कारण या पूरी जानकारी न होने के कारण हर कार्य में आम जनमानस कह देता है कि पंचक हैं अतः गृह निर्माण व गृह प्रवेश भी नहीं होता है, चूड़ा कर्म आदि कार्य वर्जित हैं, न जाने क्या- क्या, तब कुछ न कुछ भ्रान्ति उत्पन्न होती है। शायद टीवी चैनलों के माध्यम से भी कभी – कभी कुछ भ्रान्त धारणाओं को जन्म दिया जाता है, ऐसे में सटीक जानकारी होनी आवश्यक है। आशा है इस सामान्य चर्चा से कुछ न कुछ सही मार्गदर्शन एवं सकारात्मकता का बोध हो सकता है।