पुराने अखबार की एक कतरन: व्यंग्यबाण हैं या साधारण

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    अदु:ख (दु:ख हरण) नवमी पर आज करें ये उपाय! सँवर जायेगा दु:खी जीवन
    Shri Harshmani Bahuguna
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    प्रस्तुति: हर्षमणि बहुगुणा

    पुराने अखबार की एक कतरन मिली जिसमें ललित शौर्य की यह रचना छपी थी ।

    व्यंग्यबाण हैं या साधारण आप स्वयं तय कीजिए। 
    ” *हमने सुबह-सुबह नेता जी को*
    *टहलते हुए देखा*
    *उनके माथे में उभरी थी*
    *चिन्ता की रेखा ।*
    *हमसे रहा नहीं गया*
    *यह दृश्य देखकर सहा नहीं गया*
    *हमने नेता जी से पूछा*
    *माथे पर चिंता की लकीरें क्यों ?*
    *खींच ली हैं*
    *चलते हुए अचानक ये आंखें क्यों ?*
    *मीच ली हैं* ।
    *वो बोले*।
    *क्या बताएं भैय्या*।
    *इस पेट ने परेशान किया है*
    *उसनेे ही दौड़ने का आदेश दिया है*
    *हमने कहा*
    *पेट नहीं यह पिटारा हो चुका है*
    *आसमान का ध्रुवतारा हो चुका है* ।
    ‘ *वे बोले* ‘
    *बताओ कुछ उपाय*
    *जिससे यह हो जाए कम*
    *और मिट जाए मेरे गम*
    ‘ *मैं बोल पड़ा* ‘
    *इसके अन्दर छुपे हैं*
    *पुल, बांध, रास्ते, सड़क और हाइवे*,
    *अब करनी का फल उठाइए*
    *इसको कम करने के लिए*
    *खाने की आदत में लगाइए विराम*
    *तभी मिलेगा बड़ी तोन्द से आराम* । ”
    “‘ *मंगलमय भविष्य की शुभकामनाओं सहित ,। स्वर्णिम प्रभात ।*। “‘