दादर एंड नगर हवेली (सिलवासा) की 10 दिवसीय यात्रा: आदिजातीय संग्रहालय ने किया सबसे अधिक प्रभावित

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आदिवासी विशाल भवन भी बना है लेकिन यह है आधुनिक शैली में

सिलवासा (दादरा और नगर हवेली) की दस दिवसीय यात्रा के दौरान मुझे सबसे अधिक प्रभावित किया है तो आदिजातीय संस्कृति ने।

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यद्यपि अब केवल म्यूजियम और असेवित क्षेत्र में ही इसकी झलक देखने को मिलती है। फिर भी कमोबेश कहीं न कहीं धरातल पर आज भी जातीय सभ्यता के कुछ न कुछ संकेत अवश्य मिल जाते हैं।

दादर एंड नगर हवेली (सिलवासा) की 10 दिवसीय यात्रा: आदिजातीय संग्रहालय ने किया सबसे अधिक प्रभावित

सिलवासा में विशाल और भव्य आदिवासी भवन भी है लेकिन इस में प्राचीन सभ्यता और संस्कृति की लेश मात्र भी झलक नहीं मिलती है। मैं लगातार दो दिन आदि जाति संग्रहालय के अवलोकन करने के लिए गया और प्रत्येक प्राचीन और कालांतर की सभ्यता के चित्र, शिल्प, वास्तु, परंपरागत परिधान, जीविकोपार्जन के साधन, आभूषण, वेशभूषा, जीवन शैली, आमोद- प्रमोद के साधन, प्रेम और वीरता के प्रसंग तथा तत्कालीन लोक जीवन की झलक इस संग्रहालय में देखने को मिलती है।

इतना ही नहीं मैंने अनेक आदिजातीय समूह के लोगों से बातचीत की। उन लोगों में कुछ मुझे ऐसे मिल गए, जिन्होंने अपनी उस प्राचीनतम संस्कृति के बारे में अवगत कराया।

दादरा एंड नगर हवेली लंबे समय तक पुर्तगालियों के अधीन रहा। सन 1952 में भारत संघ में इसके विलय होने के बाद इस केंद्र शासित क्षेत्र में त्वरित गति से विकास हुआ और इतना विकास हुआ कि आज एक उदाहरण के रूप में देखा जा सकता है।

सिलवासा में एक ऐसा गांव (माछिल) भी है जो किसी समय गुजरात के शासक ने किसी अनुकरणीय व्यक्ति को जागीर के रूप में दिया था, उस गांव का संचालन आज भी गुजरात सरकार के द्वारा ही होता है जबकि उसके दोनों तरफ संघीय क्षेत्र है और चमचमाती हुई बिजली के लाइट्स, चौड़ी सड़कों का जाल, ढांचागत सुविधाओं और औद्योगिक विकास की झलक देखने को मिलती है। इस क्षेत्र के अधिकांश लोग बड़े- बड़े उद्योगों में रोजगार से जुड़ चुके हैं।

जमीनों के अधिग्रहण होने के कारण इनके पास पैसा भी आ चुका है। कुछ लोग आदिवासी शब्द से चिढ़ते भी हैं। लेकिन फिर भी कुछ ऐसे लोग भी हैं जो कि आपनी संस्कृति को बचाए रखना अपना कर्तव्य मानते हैं।
इसी क्रम में दादरा एंड नगर हवेली “आदिवासी एकता परिषद” यहां मौजूद है, जो कि एक क्षेत्रीय आदिवासी संगठन है और आदिवासियों के सामाजिक उत्थान, सांस्कृतिक उत्थान एवं उनके सामाजिक अधिकारों की लड़ाई लड़ने के लिए अग्रिम भूमिका निभाता है। इसी क्रम में आदिवासी एकता परिषद ने महिला विंग को भी स्थापित कर दिया है और वर्तमान में महिला विंग अध्यक्ष मनी जयराम कुबरा हैं।

आदिवासी महिला एकता परिषद, आदिवासी समाज में महिलाओं को बराबर के सामाजिक अधिकार प्राप्त करवाना चाहती हैं। आदिवासियों के सम्मान की रक्षा करना उसका लक्ष्य है।