श्रीदेव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय के ऋषिकेश परिसर में हिंदी विभाग के द्वारा एक दिवसीय सेमिनार का आयोजन

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श्रीदेव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय के ऋषिकेश परिसर में हिंदी विभाग के द्वारा एक दिवसीय सेमिनार का आयोजन
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श्रीदेव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय के ऋषिकेश 

ऋषिकेश: श्रीदेव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय के पंडित ललित मोहन शर्मा परिसर ऋषिकेश में हिंदी विभाग के द्वारा एक दिवसीय सेमिनार का आयोजन किया गया।

सेमिनार का विषय राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के संदर्भ में भारतीय ज्ञान परंपरा, भाषाई हिस्सेदारी और समावेशिता था। सेमिनार में आईआईटी चेन्नई के प्रोफेसर राजेश कुमार, आईआईटी पटना के प्रोफेसर नलिन भारती और गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय नोएडा के प्रोफेसर ओमप्रकाश मुख्य वक्ता थे।

कार्यक्रम के संयोजक हिंदी विभाग के प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष डॉक्टर मुक्तिनाथ यादव और कार्यक्रम सचिव प्रोफेसर अधीर कुमार थे। कार्यक्रम के आरंभ में ललित मोहन शर्मा परिसर के प्राचार्य प्रोफेसर महावीर रावत ने सभी आगंतुकों व प्रतिभागियों का स्वागत और अभिनंदन किया।

श्री देव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर एनके जोशी मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे। प्रोफेसर जोशी ने अपने उद्बोधन में कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा में क्या-क्या विज्ञान छुपा है उसको जानना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि मैनेजमेंट के लोग गीता और रामचरितमानस के आदर्शो और मूल्यों को अपनाकर प्रगति कर सकते हैं।

प्रोफेसर जोशी ने कहा कि भौतिकी रसायन चिकित्सा शास्त्र गणित विमान शास्त्र आदि कई विषयों का ज्ञान वेदों से आया है। यह ज्ञान कहीं विलुप्त ना हो जाए इसलिए कक्षा में छात्रों को अवश्य पढ़ाया जाए। उन्होंने इंटर डिसीप्लिनरी रिसर्च कराने की आवश्यकता पर भी बल दिया। उन्होंने वेदों और भारतीय भाषा के लिए उच्च अध्ययन केंद्र की स्थापना की आवश्यकता पर भी बल दिया।

इस अवसर पर मुख्य अतिथि प्रोफेसर एनके जोशी व अन्य अतिथियों द्वारा प्रोफेसर सुमिता श्रीवास्तव व प्रोफेसर मुक्तिनाथ यादव द्वारा संयुक्त रूप से लिखित पुस्तक एनवायरनमेंट स्टडीज एंड वैल्यू एजुकेशन का विमोचन किया गया।

प्रोफेसर राजेश कुमार ने कहा कि दुनिया में भाषाओं में समानता अधिक और असमानता कम है। उन्होंने बताया कि संस्कृत भाषा का विज्ञान है और लोगों को चाहिए कि संस्कृत की मौलिक कृतियों का अध्ययन करें। उन्होंने इस बात की आवश्यकता जताया की भारत की समृद्ध ज्ञान परंपरा विलुप्त क्यों हो गई इसका अध्ययन किया जाना चाहिए।

प्रोफेसर ओमप्रकाश ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा पाश्चात्य सभ्यता से भी पहले आई। ऋग्वेद मनुष्य के अस्तित्व का पहला प्रमाणिक ग्रंथ है।।
उन्होंने भाषिक विविधता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हिमालय घाटी में 160 भाषाएं विलुप्त होने की कगार पर है। जब एक भाषा मरती है तो एक संस्कृति एक पहचान एक साझी विरासत मरती है।

प्रोफेसर नलिन भारती ने बदलते भारत में डिजिटल शिक्षा की स्थिति पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने यह भी कहा कि शिक्षा में निजी निवेश बढ़ रहा है डिजिटल शिक्षा से डिजिटल भारत बन चुका है। आजादी के बाद भारत दूसरी आजादी की ओर बढ़ रहा है। कार्यक्रम के अंत में समाजशास्त्र के प्रोफेसर आनंद प्रकाश सिंह ने सभी आगंतुकों और प्रतिभागियों का आभार प्रकट किया।

कार्यक्रम में प्रोफेसर कल्पना पंत, प्रोफेसर डीएन तिवारी डॉक्टर नूर हसन डॉ सुमिता श्रीवास्तव डॉ प्रशांत कुमार सिंह डॉक्टर कंचन लता सिन्हा डॉ हेमंत कुमार शुक्ला डॉ डीसी गोस्वामी , डॉ योगेश कुमार शर्मा, डॉ दिनेश शर्मा, डॉक्टर दुर्गा कांत चौधरी, डॉ शिखा ममगाई, डॉ अंजनी कुमार दुबे , डॉक्टर पूनम पाठक डॉक्टर हेमलता मिश्रा डॉक्टर संगीता मिश्रा डॉक्टर पारूल मिश्रा प्राची सेमवाल एकता मौर्या आदि उपस्थित रहे।

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