वीररस कविता: अजयवीरों की यही नियति है…!

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वीररस कविता: अजयवीरों की यही नियति है...!
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[su_highlight background=”#091688″ color=”#ffffff”]सरहद का साक्षी @कवि: सोमवारी लाल सकलानी, निशांत।[/su_highlight]

अजयवीरों की यही नियति है…!

उठो अजय! तुम आंखें खोलो !
देखो! कौन तुम्हें जगाने आए हैं !
भारत माता के हर कोने-कोने से,
तुम्हारा पराक्रम  देखने आए हैं !

उठो अजय ! एक बार तुम !
देखो! अपनी जननी जन्मभूमि को!
तुम्हें जगाने त्रिहरी भारत से
जन आज द्वार तुम्हारे आये हैं।

ऐ शौर्य के अग्रदूत अजय रौतेला !
तुम एक बार तो आंखें खोलो !
तड़फ रही है तुम्हारी कुजंणी खाड्डी,
रूठो मत मित्र ! कुछ तो बोलो !

उठो पराक्रम के परम पुरुष तुम!
क्यों इस चिर निंद्रा में लेटे हो ?
शौर्य वीर पराक्रमी साथी सैनिक,
सभी तुम्हें जगाने  को आए हैं !

उठो परमवीर अजय  तुम !
देखो हेंवल क्षेत्र सरिता कानन!
आज तुम्हारा रामपुर बन गया,
भारत माता का पावन आंचल।

उठो मित्र! तुम आंखें खोलो’
देखो! बाल  बृद्ध जन आए हैं !
माताएं बहने बेटियां बांधव,
सब तुम्हें मनाने यहाँ आए हैं !

बिलख रही है आज वसुंधरा !
जय -घोष अमरता नारों से।
लाज रखी तुमने मां दूध की,
इस महा वीरगति के पाने से !

ऐ विजयी वीर अजय रौतेला !
तुमने भारत माता का मान बढाया।
वीर हमारे अजय – अमर तुम ,
सर्वोच्च शौर्य बलिदान तुम्हें है भाया।

इतिहास अमरअमिट वीरों का,
नाम इसी का वीरगति है।
ऐ सिंह सपूत मातृभूमि के !
परमवीरों की यही नियति है।

    *कवि कुटीर, सुमन कॉलोनी चंबा, टिहरी गढ़वाल।