प्रीति की व्यथा को सुनकर मन व्यथित था कि अंकिता भंडारी की नृशंस हत्या पर नि:शब्द हूं: कवि सोमवारी लाल सकलानी ‘निशांत’

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प्रीति की व्यथा को सुनकर मन व्यथित था कि अंकिता भंडारी की नृशंस हत्या पर नि:शब्द हूं: कवि सोमवारी लाल सकलानी 'निशांत'
प्रीति की व्यथा को सुनकर मन व्यथित था कि अंकिता भंडारी की नृशंस हत्या पर नि:शब्द हूं: कवि सोमवारी लाल सकलानी 'निशांत'
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प्रीति की व्यथा को सुनकर मन व्यथित था। कि अंकिता भंडारी की नृशंस हत्या पर नि:शब्द हूं ! यह कहना है सुविख्यात कवि सोमवारी लाल सकलानी ‘निशांत’ जी का।

अपने मन के की पीड़ा बयां करते वे कहते हैं कि उत्तराखंड का यह दुर्भाग्य है की कथित देवभूमि कलुषित और कलंकित होती जा रही है। कानून व्यवस्था का आदर और डर नही रहा है। भ्रष्टाचार का बोलबाला है। मुझे तो लगता है कि यहां बद्रीनाथ ही रूठ गया और केदारनाथ तो कोई महा आपदा लाने के लिए हैं इंतजार में बैठा है !

‘हमारे सपनों का उत्तराखंड’! अनेकों सपने संजोए थे हमने। उत्तराखंड राज्य निर्माण के समय से जिस देव भूमि पर हमें गर्व था, वह आज नर पिचाशों की भूमि बनती जा रही है। राजनीति, पैसा, अहंकार,सत्ता और माफियाओं का बोलबाला होता जा रहा है। लगता है कि गठजोड़ है ! जनता के बारे में तो क्या कहें, आश्चर्यजनक है। जो आंखों से देख कर भी चांदी के चंद टुकड़ों के लिए अपना जमीर बेच देती है और जब कथित राजनेता दरवाजे पर दस्तक देते हैं, तो धर्म- जाति- संप्रदाय- क्षेत्रवाद- शराब- ठेका- प्रलोभन और छुटभैये नेताओं की करतूतों के कारण हर समय जनता बेवकूफ बनती है।लेखन, साहित्य मीडिया सब प्रभावित हैं। बुरी खबरों के साथ सुबह होती है और रात आ जाती है।

बेटियां ! आज भी सुरक्षा की दृष्टि से महफूज नही हैं। देश के अन्य भागों में इस प्रकार की घटनाएं बहुत पहले से ही सुनी जाती रही हैं लेकिन हमारी यह भूमि जो कि पवित्र आत्माओं का स्थान मानी जाती रही है तथा महा पापी भी यहां आकर अपने पापों का प्रायश्चित कर अपने को धन्य मानते थे। आज यहीं के लोग हैवानियत की हदों को पार कर रहे हैं।

जनप्रतिनिधियों को हमने अपना नीति -नियामक बनाया। चुनकर उनको सत्ता के सिंहासन पर बैठाया।वे स्वयं के ऐश्वर्य में लीन हैं। यही नहीं बल्कि विधानसभा अध्यक्ष की सर्वोच्च कुर्सी पर आसीनों के कारनामें भी उजागर हैं ! भ्रष्टाचार की काली करतूतों के कारण उनका चेहरा भी काला पड़ गया है ! लेकिन भीड़ तंत्र है। जनता को बेवकूफ बनाना उनके शास्त्र के अंतर्गत आता है और नियम कानून तो उनकी मुट्ठी में होते हैं। जेल में बंद रहकर भी चुनाव जीत जाते हैं और भ्रष्टाचारियों, अपराधियों की विधानसभा और संसद रणास्थली बनकर, विशेषाधिकार प्राप्त कर लेती है। ये कलयुग देवराज कब क्या कुछ कर बैठें, किसी से छुपा हुआ नहीं है।

राजनीति तो षढयंत्रों की जननी है ही। और कहते हैं कि राजनीति में सब कुछ जायज है ! न जाने किस अधर्मी गुरु ने राजनीति की परिभाषा गढ़ी, जिसे हम नेताओं के मुख से सुनते रहे हैं।

खैर! सत्ता लोभी और धन पिपशुओं के बारे में तो क्या कहना ! कभी ना कभी जनता को समझ आएगी और अर्श से फर्श पर अवश्य करेगी, लेकिन बेचारी प्रीति जिसके मां -बाप ने क्यासोचा था कि बेटी देहरादून की वादी में सुख में जीवन व्यतीत करेगी। क्या पता था कि उसे गर्म तवे और उबलते पानी से जला- जला कर पीड़ित किया जाएगा ! और जिस प्रकार के यातनाएं उसे दी गई, उसे देखकर तालिबानियों, अलकायदियों का भी पसीना छूट जाएगा।

पढ़- लिख कर अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए जिस बेटी ने अपने कैरियर को संभालने के लिए होटल मैनेजमेंट किया, क्या पता था कि अंकिता भंडारी के साथ अपनी ही देवभूमि के अंदर इस प्रकार का बर्ताव होगा ? यद्यपि आज अंकिता नहीं रही है लेकिन अंकिता जीवित रहने पर उतनी मजबूत नहीं थी, जितने कि मरने के बाद होगी और वह नरपिचाशों और हरामजादों से बदला लेगी।

जब कानून और व्यवस्था से व्यक्ति का विश्वास हट जाएगा, तो समझो कि देश अराजकता के माहौल में चला गया। जनता के धैर्य की परीक्षा लेना उचित नही होगा। दरिंदों, हत्यारों, माफियाओं, भ्रष्टाचारियों, घोटाला बाजों, पाखंडी को ऐसी सजा मिले कि छठी का दूध याद आ जाए ! सैकड़ों वर्ष तक कोई इस प्रकार के घिनौने कृत्य करने से बाज आए।

लिखने के लिए तो बहुत कुछ है और करने के लिए भी बहुत कुछ है। उत्तराखंडी होने के नाते सहनशीलता की भी एक सीमा होती है। कब तक जनता के धैर्य की परीक्षा ली जाएगी ! कब तक मातृशक्ति के साथ अपने ही लोगों के द्वारा इस प्रकार का दुर्व्यवहार किया जाता रहेगा! यह सोचनी है प्रश्न है।

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