टिहरी सामंतसाही के विरुद्ध आग उगलने वाले क्रांतिकारी कवि स्व.मनोहर लाल उनियाल ‘श्रीमन्’ जी की “मनोहर कुटी”

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टिहरी सामंतसाही के विरुद्ध आग उगलने वाले क्रांतिकारी कवि स्व.मनोहर लाल उनियाल 'श्रीमन्' जी की
टिहरी सामंतसाही के विरुद्ध आग उगलने वाले क्रांतिकारी कवि स्व.मनोहर लाल उनियाल 'श्रीमन्' जी की "मनोहर कुटी"
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टिहरी सामंतसाही के विरुद्ध आग उगलने वाले क्रांतिकारी कवि स्व.मनोहर लाल उनियाल ‘श्रीमन्’ जी की “मनोहर कुटी” किसी स्मारक से कम नहीं 

सरहद का साक्षी @कवि:सोमवारी लाल सकलानी ‘निशांत’

टिहरी सामंतसाही के विरुद्ध आग उगलने वाले क्रांतिकारी कवि स्व.मनोहर लाल उनियाल ‘श्रीमन्’ आजादी के समय और स्वतंत्रतोत्तर काल के महान कवि हुए हैं। क्रांति भूमि सकलाना में जन्मे श्रीमन् जी की आरंभिक शिक्षा सकलाना में हुई। तदोपरांत उन्होंने देहरादून जा कर अध्ययन किया। वहीं स्वाधीनता संग्राम सेनानियों के संपर्क में आने के बाद, उनके अंदर स्वतंत्रता की ज्वाला भड़कने लगी।

यूं तो स्व.मनोहर लाल उनियाल श्रीमन् जी ने तत्कालीन परिस्थितियों के अनुकूल अनेकों विधाओं में रसयुक्त कविताएं रची हैं लेकिन उनकी वीर रस की कविताएं सर्वोपरि हैं।

“रक्त रंजित पथ हमारा/ हम पथिक हैं आग वाले”, फांसी के फंदे पर झूले, निर्माण सृजन के प्रहरों में आदि उनकी कुछ ऐसे रचनाएं हैं जो कि चिरकाल से लोगों के मानस पटल पर स्थान बनाए हुए हैं।

स्वर्गीय मनोहर लाल उनियाल ‘श्रीमन्’ ने सर्वप्रथम सकलाना मुआफीदारी के विरुद्ध बाल-सभा का गठन कर आंदोलन चलाया। कालांतर में जिसकी परिणति मुआफीदारी के अंत के साथ-साथ राजशाही का भी अंत होना इसी कड़ी में एक है।

यूं तो सकलाना में अनेकों क्रांतिकारी, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, कामरेड नागेंद्र सकलानी जैसे अमर बलिदानी हुए हैं, जिनके बलिदान और त्याग को कोई नकार नहीं सकता। उनके किए गए उत्सर्ग को पीढ़ियां याद रखेंगी और उनको नमन करते रहेंगे।

साहित्यिक क्षेत्र में वीर रस के योद्धा कवि श्रीमन् जी का अपना विशिष्ट स्थान है। जिन्होंने कलम से ही नहीं बल्कि अपने रक्त की बूंदों से कविताएं रची और टिहरी जेल की काल कोठरी में बंद रहते हुए भी क्रांतिकारी रचनाओं के द्वारा लोगों को स्वतंत्रता के प्रति प्रेरित किया। स्वर्गीय मनोहर लाल उनियाल ‘श्रीमन्’ जौनपुर प्रखंड के उनियाल गांव (सकलाना) के मूल निवासी थे। आजादी के बाद वह देहरादून में ही रहने लगे।वहीं उनका देहावसान भी हुआ लेकिन अपने गांव और क्षेत्र से आजीवन उनका नाता जुड़ा रहा।

उनके भतीजे वरिष्ठ पत्रकार और प्रख्यात साहित्यकार सोमवारी लाल उनियाल ‘प्रदीप’ जी ने अपनी संस्था हरीतिमा के माध्यम से अनेकों बार उनकी जयंती के अवसर पर साहित्यकारों का सम्मेलन आहूत किया। इसके अलावा सकलाना के सांस्कृतिक केंद्र सत्यों (रा.इ.का.पुजार गांव) में भी श्रीमान जी की जयंती के अवसर पर कार्यक्रमों का आयोजन किया।

उम्र बढ़ने के साथ-साथ श्रीमन् जी को जानने की जिज्ञासा भी बलवती होती गई। उनकी कविताओं का रसास्वादन करता रहता हूं और अनेकों कविताएं उनकी मुझे कंठस्थ याद हैं। जिन्हें मैं प्रसंगवश समय- समय पर उद्धृत भी करता रहता हूं।

श्रीमन् जी की यह कुटी जो कि एक ध्वन्सावशेष है, आज भी उस गौरवमयी इतिहास की याद दिलाती है, जिसने कि स्वाधीनता की खुली हवा में सांस लेने के लिए पीढ़ी को नव जीवन प्रदान किया। एक धरोहर है।

ऐतिहासिक धरोहर से कम महत्वपूर्ण नहीं है उनियाल गांव के मध्य भाग में अवस्थित “मनोहर कुटी”

ग्राम पंचायत उनियाल गांव के केंद्र भाग में अवस्थित “मनोहर कुटी” किसी स्मारक/ किसी मंदिर और किसी ऐतिहासिक धरोहर से कम महत्वपूर्ण नहीं है क्योंकि इस कुटी की चार दीवारों के अंदर एक महान आत्मा ने अनेकों वर्षों तक साधना की थी। अपनी साहित्यिक प्रतिभा, ओजस्वी व्यक्तित्व, क्रांतिकारी विचारधारा और गांधीवादी विचारों का सृजन किया।

श्री मनोहर लाल उनियाल ‘श्रीमन्’ क्षेत्र के लिए एक अनुकरणीय उदाहरण है और उनका व्यक्तित्व और कृतित्व बेमिसाल है।

मेरे घर का रास्ता उनियाल गांव के मध्य, उनकी कुटी के पीछे से गुजरता है। इसे मैं सौभाग्य मानता हूं कि समयानुसार इस महान साहित्यिक प्रतिभा को स्मरण करने का अवसर मिल जाता है। कुटी के समीपस्थ भैरव देवता का मंदिर है। जो कि उनियाल गांववासियों का ईष्ट देवता/ ग्राम देवता और कुल देवता है। मेरा मानना है कि देवता प्रत्येक का रक्षक होता है। बस बात श्रद्धा और विश्वास की है।

मेरा ग्राम सभा के निवासियों, श्रीमन् जी के परिवार जनों से अनुरोध भी है कि इस कुटिया को एक स्मारक के रूप में संरक्षित करें, ताकि आने वाली पीढ़ी बहुमुखी प्रतिभा के धनी,महान क्रांतिकारी, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और साहित्य के पुरोधा कवि से सतत प्रेरणा मिलती रहे।

(कवि कुटीर)
सुमन कालोनी चंबा, टिहरी गढ़वाल।

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