श्रीमद्भागवत महापुराण कथा गुरियाली (तपोवन)
श्रीमद्भागवत महापुराण कथा: हवन में आहुति देते समय क्यों कहते है स्वाहा? यह जानना आवश्यक है। कभी कभी इन विषयों को समझने का सुयोग बनता है, आज भी यह सुयोग है।
विद्वानों की काशी चंबा प्रखंड के सावली गांव के शीर्षस्थ भाग पर अवस्थित गुरियाली (तपोवन) में श्री हर्षमणि बहुगुणा जो स्वयं में व्यास और पूर्व प्रधानाचार्य हैं तथा उनके छोटे भाई डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद बहुगुणा द्वारा मां पुण्यासिनी के पावन क्षेत्र मे प्राकृतिक सौंदर्य के मध्य श्रीमद्भागवत महापुराण यज्ञ का आयोजन किया जा रहा है। व्यास पीठ पर आसीन प्रकांड विद्वान आचार्य पंडित प्रभुशरण बहुगुणा जी हैं।
श्रीमद्भागवत महापुराण कथा का छठवां दिन
श्रीमद्भागवत महापुराण के पाठ का दशांश हवन तथा याज्ञिक ब्राह्मणों के पाठ का दशांश हवन, इस हेतु यह जानना आवश्यक है कि यज्ञ में आहुति देते समय स्वाहा कहने का कारण क्या है?
यह जानना आवश्यक है कि हवन में आहुति देते समय क्यों कहते है ‘स्वाहा’, कभी कभी इन विषयों को समझने का सुयोग बनता है, आज भी यह सुयोग है।
अग्निदेव की दाहिकाशक्ति है ‘स्वाहा’
अग्निदेव में जो जलाने की तेजरूपा (दाहिका) शक्ति है, वह देवी स्वाहा का सूक्ष्मरूप है। हवन में आहुति में दिए गए पदार्थों का परिपाक (भस्म) कर देवी स्वाहा ही उसे देवताओं को आहार के रूप में पहुंचाती हैं, इसलिए इन्हें ‘परि पाककरी’ भी कहते हैं।
सृष्टिकाल में परब्रह्म परमात्मा स्वयं ‘प्रकृति’ और ‘पुरुष’ इन दो रूपों में प्रकट होते हैं। ये प्रकृतिदेवी ही मूलप्रकृति या पराम्बा कही जाती हैं। ये आदिशक्ति अनेक लीलारूप धारण करती हैं। इन्हीं के एक अंश से देवी स्वाहा का प्रादुर्भाव हुआ जो यज्ञभाग ग्रहणकर देवताओं का पोषण करती हैं।
“स्वाहा के बिना देवताओं को भोजन नहीं मिल सकता।”
सृष्टि के आरम्भ की बात है, उस समय ब्राह्मण लोग यज्ञ में देवताओं के लिए जो हवनीय सामग्री अर्पित करते थे, वह देवताओं तक नहीं पहुंच पाती थी। देवताओं को भोजन नहीं मिल पा रहा था इसलिए उन्होंने ब्रह्मलोक में जाकर अपने आहार के लिए ब्रह्माजी से प्रार्थना की। देवताओं की बात सुनकर ब्रह्माजी ने भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान किया। भगवान के आदेश पर ब्रह्माजी देवी मूलप्रकृति की उपासना करने लगी। इससे प्रसन्न होकर देवी मूलप्रकृति की कला से देवी ‘स्वाहा’ प्रकट हो गई और ब्रह्मा जी से वर मांगने को कहा।
ब्रह्माजी ने कहा–’आप अग्निदेव की दाहिकाशक्ति होने की कृपा करें। आपके बिना अग्नि आहुतियों को भस्म करने में असमर्थ हैं। आप अग्निदेव की गृह स्वामिनी बनकर लोक पर उपकार करें।’
ब्रह्माजी की बात सुनकर भगवान श्रीकृष्ण में अनुरक्त देवी स्वाहा उदास हो गयीं और बोली– ’परब्रह्म श्रीकृष्ण के अलावा संसार में जो कुछ भी है, सब भ्रम है। तुम जगत की रक्षा करते हो, शंकर ने मृत्यु पर विजय प्राप्त की है।शेषनाग सम्पूर्ण विश्व को धारण करते हैं। गणेश सभी देवताओं में अग्रपूज्य हैं। यह सब उन भगवान श्रीकृष्ण की उपासना का ही फल है।’
यह कहकर वे भगवान श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के लिए तपस्या करने चली गयीं और वर्षों तक एक पैर पर खड़ी होकर उन्होंने तप किया। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान श्रीकृष्ण प्रकट हो गए। देवी स्वाहा के तप के अभिप्राय को जानकर भगवान श्रीकृष्ण ने कहा– ’तुम वाराहकल्प में मेरी प्रिया बनोगी और तुम्हारा नाम ‘नाग्नजिती’ होगा। राजा नग्नजित् तुम्हारे पिता होंगे। इस समय तुम दाहिकाशक्ति से सम्पन्न होकर अग्निदेव की पत्नी बनो और देवताओं को संतृप्त करो। मेरे वरदान से तुम मन्त्रों का अंग बनकर पूजा प्राप्त करोगी। जो मानव मन्त्र के अंत में तुम्हारे नाम का उच्चारण करके देवताओं के लिए हवनीय-पदार्थ अर्पण करेंगे, वह देवताओं को सहज ही उपलब्ध हो जाएगा और वह देवी स्वाहा अग्निदेव की पत्नी बनी।
भगवान श्रीकृष्ण की आज्ञा से अग्निदेव का देवी स्वाहा के साथ विवाह-संस्कार हुआ। शक्ति और शक्तिमान के रूप में दोनों प्रतिष्ठित होकर जगत के कल्याण में लग गए। तब से ऋषि, मुनि और ब्राह्मण मन्त्रों के साथ ‘स्वाहा’ का उच्चारण करके अग्नि में आहुति देने लगे और वह हव्य पदार्थ देवताओं को आहार रूप में प्राप्त होने लगा।
जो मनुष्य स्वाहायुक्त मन्त्र का उच्चारण करता है, उसे मन्त्र पढ़ने मात्र से ही सिद्धि प्राप्त हो जाती है। स्वाहा हीन मन्त्र से किया हुआ हवन कोई फल नहीं देता है।
देवी स्वाहा के सिद्धिदायक सोलह नाम
स्वाहा, वह्निप्रिया, वह्निजाया, संतोषकारिणी, शक्ति, क्रिया, कालदात्री, परिपाककरी, ध्रुवा, गति, नरदाहिका, दहनक्षमा, संसारसाररूपा, घोर संसारतारिणी, देव जीवनरूपा, देव पोषणकारिणी।
इन नामों के पाठ करने वाले मनुष्य का कोई भी शुभ कार्य अधूरा नहीं रहता। वह समस्त सिद्धियों व मनोकामनाओं को प्राप्त कर लेता है।