विवाह संस्कार मौज मस्ती के लिए नहीं अपितु जीवन को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए है

    महत्वपूर्ण शिष्टाचार, जो हमें बताते हैं मानव जीवन का सार, अकाल कलवित होने से बचाव हेतु ऐसे करें भोजन
    play icon Listen to this article

    विवाह संस्कार मौज मस्ती के लिए नहीं अपितु जीवन को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए है, दो पथिकों को एक सूत्र में पिरोने के लिए है।  शादियों का मुहुर्त प्रारम्भ हो गया है तो विवाह में क्या करें क्या न करें। यह आवश्यक है, विचारणीय।

    सरहद का साक्षी, आचार्य हर्षमणि बहुगुणा 

    क्या नाचने गाने को विवाह कहते हैं? क्या दारू पीकर हुल्लड़ मचाने को विवाह कहते हैं? क्या रिश्तेदारों और दोस्तों को इकट्ठा करके दारु की पार्टी करने को विवाह कहते हैं? डीजे बजाने को विवाह कहते हैं? नाचते हुए लोगों पर पैसा लुटाने को विवाह कहते हैं? दारू की 20-25 पेटी लग जाएं उसको विवाह कहते हैं? नहीं।

    विवाह उसे कहते हैं जो वेदी के ऊपर मंडप पर पंडित जी मंत्रोच्चारण के साथ देवताओं का आवाहन करके विवाह की वैदिक रस्मों को करते हैं! उसी को तो विवाह कहते हैं।

    लोग कहते हैं कि हम आठ दस महीने से विवाह की तैयारी कर रहे हैं और पंडित जी जब सुपारी मांगते हैं, तो कहते हैं अरे वह तो भूल गए, जो सबसे जरूरी काम था वह आप भूल गए विवाह की सामग्री भूल गए और वैसे तुम 10 महीने से विवाह की तैयारी कर रहे थे। कौन सी ?

    आज आप दिखावा करना चाहते हो करो खूब करो मगर जो असली काम है जिसे सही मायने में विवाह कहते हैं वह काम गौण ना करें, 6 घंटे नाचने में लगा देंगे, 4 घंटे मेहमानों से मिलने में लगा देंगें, 3 घंटे जयमाला में लगा देंगें, 4 घंटे फोटो खींचने में लगा देंगें और पंडित जी के सामने आते ही कहेंगे पंडित जी जल्दी करो, जल्दी करो। पंडित जी भी बेचारे क्या करें वह भी कहते है सब स्वाहा, सब स्वाहा जब तुम खुद ही बर्बाद होना चाहते हो तो पूरी रात जगना पंडित जी के लिए जरूरी है क्या ? उन्हें भी अपना कोई दूसरा काम ढूंढना है उन्हें भी अपनी जीविका चलानी है, मतलब असली काम के लिए आपके पास समय नहीं है। मेरा कहना यह है कि आप अपने सभी नाते, रिश्तेदारों, दोस्त, भाई-बंधुओं को कहो कि आप जो यह फेरों का काम है वह किसी मंदिर, गौशाला, आश्रम या धार्मिक स्थल पर किसी पवित्र स्थान पर ही करें।
    जहां दारू पी गई हों जहां हड्डियां फेंकी गई हों, क्या उस वैवाहिक स्थल उस पैलेस कांपलेक्स में देवता आशीर्वाद देने के लिए आयेंगे? शायद नहीं।

    आपको नाचना कूदना, खाना-पीना जो भी करना है वह विवाह वाले दिन से पहले या बाद में करें मगर विवाह का कोई एक मुहूर्त निश्चित करके उस दिन सिर्फ और सिर्फ विवाह से संबंधित रीति रिवाज होने चाहिए और यह शुभ कार्य किसी पवित्र स्थान पर करें। जिस में गुरु जन आयें, घर के बड़े बुजुर्गों का जिसमें आशीर्वाद मिले। आप खुद विचार करिए हमारे घर में कोई मांगलिक कार्य है जिसमें सब आएं और आप अपने भगवान को ही भूल जाएं अपने कुल देवताओं को ही भूल जाएं।

    विवाह नामकरण या अन्य जो भी धार्मिक उत्सव है वह शराब के साथ संपन्न ना हो उन में उन विषय वस्तुओं को शामिल न करें जो धार्मिक कार्यों में निषेध है। आजकल विवाह के नाम पर दिखावा चल रहा है और कुछ नहीं …! अवश्य विचार कीजिए और अपने कुल पुरोहित / पण्डित जी की बात मानिए। विवाह संस्कार मौज मस्ती के लिए नहीं अपितु जीवन को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए है, दो पथिकों को एक सूत्र में पिरोने के लिए है।

    LEAVE A REPLY

    Please enter your comment!
    Please enter your name here