युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणास्पद हैं: जमनालाल पुरस्कार प्राप्त श्री धूम सिंह नेगी

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    युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणास्पद हैं: जमनालाल पुरस्कार प्राप्त श्री धूम सिंह नेगी

    चौरासी वर्ष की उम्र मे भी है अभूतपूर्व चैतन्यता

    सामाजिक आंदोलनों के रहे हैं आधार स्तम्भ

    चंबा से सोमवारी लाल सकलानी ‘निशांत’ : युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणास्पद हैं: जमनालाल पुरस्कार प्राप्त श्री धूम सिंह नेगी। चौरासी वर्ष की उम्र मे भी अभूतपूर्व चैतन्यता है। सामाजिक आंदोलनों के आधार स्तम्भ रहे हैं। फुर्सत के क्षणों में प्रतिष्ठित पत्रिका ‘लोक-गंगा’ का 12 वर्ष पुराना ‘पहाड़ विशेषांक’ पढ़ रहा था। कई दिनों से अनेक प्रतिष्ठित साहित्यकारों, पर्यावरण विदों, समाज सुधारकों और रचना धर्मी लोगों के आलेखों को पढ़ा।

    अचानक पृष्ठ संख्या 246 पर “कश्मीर से कोहिमा पद यात्रा” डायरी के कुछ पन्ने- जो कि आदरणीय गुरुजी धूम सिंह नेगी के द्वारा लिखित हैं, पर नजर पड़ी। बस! फिर पढता चला गया और अनेकों बिम्ब मस्तिष्क में उभरने लगे।

    आदरणीय गुरु जी के व्यक्तित्व और कृतित्व के बारे में यूं तो सन 1980 से मै समझता हूं। उन्हे करीब से जानने का मौका मिला। इससे पूर्व भी 1972-73 में उन्हे जाजल जूनियर हाई स्कूल में देखा था। तब मैं छोटा बालक था और आदरणीय गुरुजी विद्यालय के प्रधानाध्यापक। मैं उनका स्कूली छात्र नहीं रहा लेकिन उन्हें फिर भी अपना गुरु मानता हूं। “कश्मीर से कोहिमा डायरी के कुछ पन्ने–” के बहाने आदरणीय धूम सिंह नेगी के बारे में लिखने को कुछ मन बना, जो कि पाठकों के लिए भी समीचीन है।

    प्रतिष्ठित जमुनालाल बजाज पुरस्कार से सम्मानित आदरणीय धूम सिंह नेगी का जन्म 30 दिसंबर 1939 को ग्राम पिपलेथ (कुजणी) टिहरी गढ़वाल में हुआ। आपके पिताजी का नाम बेलम सिंह और माता का नाम कौंसा देवी था। स्नातक की शिक्षा ग्रहण करने के बाद आपने राजकीय शिक्षा विद्यालय टिहरी से एच टी सी परीक्षण प्राप्त किया और प्राइमरी स्कूल मंज्याड़ी, पट्टी- दोगी, टिहरी गढ़वाल में सितंबर 1962 में अध्यापक के रूप में नियुक्ति प्राप्त की।

    इससे पूर्व भी आप चौंपा प्राइमरी स्कूल में 6 महीने तक का शिक्षण कार्य कर चुके थे। 21 दिसंबर 1963 से 4 जुलाई 1974 तक आप जूनियर हाई स्कूल जाजल के प्रधानाध्यापक रहे। अपने अध्यापन काल में उन्होंने प्रकृति और संस्कृति के विकास का भी कार्य किया। रचनात्मक कार्यों में सक्रिय भागीदारी निभाई और बाल पत्रिका “इंद्रधनुष” का प्रकाशन किया। शिक्षण कार्य के साथ-साथ अनेक फलदार वृक्ष रोपित किए और “युवक संघ” की स्थापना की।

    सर्वोदय विचारधारा से प्रेरित धूम सिंह नेगी सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। चिपको आंदोलन से लेकर शराबबंदी आंदोलन, खनन रोको आंदोलन,श्रमिकों व ग्रामीण श्रमिकों को संगठित करने हेतु श्रम संविदा सरकारी समितियों का गठन आपने किया। विभिन्न आंदोलनों के प्रचार- प्रसार के लिए और पर्वतीय समाज को जानने- समझने के लिए, उन्होंने अनेक पदयात्रायें की।

    कश्मीर से कोहिमा तक की ऐतिहासिक यात्रा इसमें सम्मिलित है। जिसके अंश आज भी उनकी डायरी में उल्लेखित हैं। इसके अलावा संपूर्ण हिमालयन राज्यों, नेपाल, भूटान की लगभग 5000 किलोमीटर की पदयात्रा आपने श्री सुंदरलाल बहुगुणा जी के साथ की। दक्षिण भारत और हिमाचल प्रदेश के चिपको आंदोलन में आप सहयोगी के रुप में स्व.बहुगुणा जी के साथ रहे।

    मुख्य रूप से कर्नाटक और हिमाचल के चंबा, कमला क्षेत्र में आपने स्वर्गीय बहुगुणा जी के साथ भ्रमण किया। बाद के वर्षों में टिहरी बांध विरोधी आंदोलन में सक्रिय रहे और बीज बचाओ आंदोलन में अपनी भागीदारी निभाई। आदरणीय गुरु जी के साथ मेरा वैचारिक संबंध इक्कीसवीं शताब्दी के आरंभिक दशक में हुआ। यद्यपि स्व.कुंवर प्रसून, स्व.प्रताप शिखर और विजय जड़धारी के साथ मेरा पुराना परिचय था।

    आदरणीय स्व.सुंदर लाल बहुगुणा जी आदरणीय गुरु जी को अपना हनुमान मानते थे क्योंकि प्रत्येक असंभव को संभव कराने की कला आपके पास जन्मजात थी और उसको धार देने में काम करते थे स्वर्गीय कुंवर प्रसून स्व. प्रताप शिखर और विजय जड़धारी, नवीन नौटियाल, सुदेशा बहन, स्व.गंगा प्रसाद बहुगुणा,कुंवर सिंह सज्वाण, साहब सिंह सज्वाण आदि। युवा रघुभाई जड़धारी भी आपके साथ सामाजिक कार्यों में संलग्न रहे।

    आदरणीय धूम सिंह नेगी एक समग्र पुस्तक हैं। उनको जितना अधिक बांचा जाए उतना कम ही कम है। हर समय डायरी में समसामयिक विषयों, यात्राओं, लोक समाज, लोकजीवन, प्रकृति और संस्कृति की बातें उद्धृत करते रहते हैं । मैं समझता हूं कि पहाड़ में डायरी लेखन में उनका कोई विकल्प नहीं है। कुछ समय पहले “युगवाणी” प्रकाशन ने पहाड़ी जीवन की लेख माला के अंतर्गत उनकी एक पुस्तक “मिट्टी, पानी और बयार” का प्रकाशन किया और देहरादून में भव्य कार्यक्रम में उसका विमोचन भी किया था जो कि पाठकों के लिए अत्यंत उपयुक्त है।

    युगवाणी के संपादक संजय कोठियाल ने युगवाणी के संस्थापक और अपने स्वर्गीय पिता आचार्य गोपेश्वर प्रसाद कोठियाल जी की जन्म शताब्दी पर “जनधारा” का प्रकाशन किया। उसमें भी आदरणीय धूम सिंह जी के लेख समाहित हैं। ‘जनधारा’ साहित्य, पर्यावरण और इतिहास की त्रिवेणी है और एक लब्ध -प्रतिष्ठित ग्रंथ है।

    यह पुस्तक आचार्य गोपेश्वर कोठियाल जी को समर्पित है। आदरणीय गुरु जी भी आचार्य जी से काफी प्रभावित थे। एक ही क्षेत्र विशेष के रहने वाले थे।हेंवल के तट पर एक ही परकोटे पर उनके गांव अवस्थित हैं। अभी कुछ दिन पूर्व मै आदरणीय धूम सिंह नेगी जी को मिलने के लिए उनके घर पिपलेथ कठ्या में गया था। आज भी उनकी जुबान पर सन 1958- 59 के संस्मरण मौजूद हैं। जिनको कि वह समय-समय पर बयां करते रहते हैं।

    वह बताते हैं कि अपने गांव में वह एकमात्र आठवीं पास लड़के थे और वह पोस्टमैन -पैकर्ड की नौकरी के लिए लिखित परीक्षा हेतु गांधी इंटर कॉलेज देहरादून में गए तो लोगों ने गोपेश्वर प्रसाद कोठियाल जी के बारे में उन्हें बताया।आचार्य जी घोसी गली में रहते थे और युगवाणी पत्रिका के संपादक थे। तब से उनका आचार्य गोपेश्वर प्रसाद कोठियाल जी से नियमित संपर्क रहा और उन्हीं की प्रेरणा से उन्होंने प्राइमरी स्कूल के अध्यापक की नौकरी छोड़कर जाजल जूनियर हाई स्कूल जो कि व्यक्तिगत विद्यालय था, वहां प्रधानाध्यापक के रूप में जिम्मेदारी लेने की हामी भरी थी।

    उस समय आचार्य गोपेश्वर प्रसाद कोठियाल विद्यालय के प्रबंध समिति के अध्यक्ष थे। यह उनके अंतकरण की आवाज थी कि सरकारी नौकरी को छोड़कर, समाज सेवा और शिक्षा के क्षेत्र में कुछ नवाचार करने के लिए उन्होंने इतना बड़ा जोखिम लिया और लगभग एक दशक से भी ज्यादा उक्त विद्यालय को पल्लवित और पोषित करने में अपनी जिम्मेदारी निभाई।

    कालांतर में 1974 से हुए पूर्ण रूप से एक पर्यावरणविद के रूप में, एक आंदोलनकारी के रूप में, एक समाज सुधारक के रूप में, एक सच्चे सर्वोदयी की तरह समाज सेवा में लग गए। वे बताते हैं कि जब आचार्य गोपेश्वर प्रसाद जी ने उन्हे हेड मास्टर की जिम्मेदारी सौंपी तो वह बी.ए.एचटीसी थे जबकि उनके कुछ साथी M.A. B.Ed विद्यालय में नियुक्त थे। आचार्य जी का स्पष्ट निर्देश था कि उन्हें धूम सिंह नेगी के पूर्ण निर्देशन में कार्य करना होगा।

    आदरणीय गुरु जी 1971 में शराबबंदी आंदोलन में सक्रिय हुए और अपने क्षेत्र में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। गांधी सर्वोदय विचारधारा से प्रेरित होकर तथा आचार्य गोपेश्वर प्रसाद कोठियाल जी का सानिध्य पाकर गुरुजी युगवाणी में भी नियमित शराबबंदी व वन संरक्षण के आलेख लिखने लगे। महिला सशक्तिकरण तथा बाल संरक्षण के बारे में उन्होंने अनेकानेक लेख लिखे।

    वह बताते हैं कि आचार्य गोपेश्वर प्रसाद जी के प्रति उनका अंत तक संपर्क बना रहा। विद्यालय छोड़ने के बाद जब आंदोलनों के दौरान वे कभी युगवाणी प्रेस में जाते तो सदैव आचार्य जी ने मेरा और और मेरे परिवार का हालचाल अवश्य पूछा और आजीवन उनके बीच मित्रता की मिठास भरी रही। अनेकों बातों से आदरणीय धूम सिंह नेगी जी ने रू-ब-रू कराया। कभी-कभी वह वर्तमान परिस्थितियों के अनुरूप अपनी पीड़ा भी बयां कर देते हैं और बदलते हालातों में वह अपने को किस रूप से स्थापित करें, यह चिंता बनी रहती है।

    अस्सी से अधिक उम्र के श्री धूम सिंह नेगी जी कभी-कभी उम्र के हिसाब से विस्मृत हो जाते हैं लेकिन फिर याद आने पर बताते हैं कि गढ़वाल गुलामी की अवस्था में जी रहा है। पहली बात तो यह है कि शराब ने अपने गढ़वाल को गुलाम बना दिया है। शराब गुलामी की निशानी है। जिसे कोई इनकार नहीं कर सकता। मैं चाहता हूं कि हमारे सच्चे गांधीवादी ऐसा क्रांतिकारी कदम उठाएं कि जो सारे देश के लिए अनुकरणीय हो।

    दूसरी बात है गुलाम देश की जनता कर्ज से दबी हुई रहती है और निराशा तथा अंधकार में डूबी रहती है। वे बीते जमाने की युक्ति का स्मरण कराते हैं कि कर्जा हमारा माई- बाप है और कर्जा नहीं रहेगा तो हम जीवित नहीं रहेंगे! ऐसी कहावत उस समय प्रचलित थी। आगे कहते हैं कि चारों और बेरोजगारी, शोषण, उत्पीड़न का बोलबाला है। भले ही हमें अंग्रेजों से राजनीतिक आजादी मिली हो लेकिन आज जी हम आर्थिक रूप से गुलाम हैं।

    यही कारण जो है पहाड़ों से पलायन एक प्रमुख समस्या बन गई है। वह महात्मा गांधी जी का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि गांधी का विचार था कि लघु उद्योग और कुटीर उद्योगों में भारत का मोक्ष छुपा है, ताकि हम अपने करोड़ों लोगों को रोजगार दे सकें। लेकिन वह गांधी मिशन आज के समय हाशिए पर चला गया है।

    बातचीत में गुरुजी ने अनेक बातें साझा की। वह बताते हैं कि महात्मा गांधी ने एक बार कहा था कि यदि वह एक दिन के लिए डिक्टेटर बना दिये जाएं तो सारे देश में पूर्ण मद्यनिषेध घोषित कर दूं और यदि वह सचमुच डक्टेटर बन जाते तो यह उनकी बहुत ही दूरदर्शिता पूर्ण योजना होती और समाज का भला होता। श्री धूम सिंह नेगी महात्मा गांधी के दर्शन से प्रभावित हैं। वे स्वामी विवेकानंद के दर्शन से भी काफी प्रभावित हैं। बताते हैं कि भारत के किसान, मजदूर, शोषित और पीड़ित वर्ग का जीवन दर्शन स्वामी विवेकानंद का जीवन दर्शन था।

    उन्होंने भारतीयों को गौरव तथा जातीय गौरव का अहसास करवाया। उनका भारत किसान, मजदूर, शोषित, पीड़ित वर्ग का जीवन दर्शन था। परवर्ती साहित्य, राजनीति एवं अन्य क्रियाकलापों में भी भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिक की विशद व्याख्या उन्होंने की। स्वामी विवेकानंद ने वैज्ञानिक दृष्टि से आधुनिक परिवेश का अवलोकन किया।

    जड़ता और रूढ़िवादिता के कारण भारतीय जनमानस में जो सड़न पैदा हो गई थी उन्होंने उसे दूर करने का प्रयास किया। श्री धूम सिंह नेगी बताते हैं कि वैज्ञानिक दोहन के नाम पर आज पहाड़ों में खुली लूट मची हुई है। उन्होंने कहा कि जनता के नाम चिपको-संदेश में कहा था कि ग्राम स्तर से लेकर राज्य स्तर तक किसी भी प्रकार के चुनाव में वह ऐसे लोगों को वोट ना दें जो वनों के व्यापारी व वन विभाग के कार्यों में किसी भी प्रकार से जुड़े हों।

    गुरुजी का ज्ञान बहुत विशद है। उन्होंने देश- काल और परिस्थितियों को देखा समझा। पद यात्राओं के द्वारा पारिस्थितिकी तंत्र को निहारा। लोगों के साथ संवाद किया और उस लक्ष्य तक पहुंचने की कोशिश की जो कि एक सर्वोदयी के लिए भी जरूरी था। एक चिंतक के लिए जरूरी था। एक पर्यावरणविद के लिए जरूरी था और एक सर्वोदयी के लिए भी जरूरी था।

    वृक्ष मानव सेंट बार बेकर के बारे में वे बताते हैं कि सेंट बार बेकर का चरित्र संत का था और बुद्धि उनकी वैज्ञानिक थी। भारत के प्रमुख चिंतकों में से वे एक थे। महात्मा गांधी, बिनोवा भावे और जवाहरलाल नेहरू तथा अन्य प्रतिष्ठित व्यक्तियों से उन्होंने भेंट की।

    टिहरी हेंवल घाटी में चिपको आंदोलन की सफलता का समाचार सुनकर वह इंग्लैंड से भारत आए और अपनी वृद्धावस्था के परवाह न किए हुए उन्होंने हेंवलघाटी के अद्वाणी जंगल में जाकर लोगों के साथ खुशी से वह नाच पड़े थे। सेंट बार बेकर एक वन सेवा के अधिकारी थे लेकिन बाद के वर्षों में उन्हें आभास हो गया था कि वन अधिकारी भी व्यापारी जैसा कार्य करते हैं। उन्होंने नौकरी छोड़ दी थी और मुक्त रूप से जंगलों को बचाने के लिए दुनिया भर में घूमने लगे।

    कुछ समय पूर्व वृक्ष मानव स्वर्गीय विश्वेश्वर दत्त सकलानी जी की शताब्दी जयंती के अवसर पर वह सकलाना में आए थे। प्रतिष्ठित पर्यावरणविद जयंत बंदोपाध्याय, शशि भूषण जोशी, गांधी जी की पोती और अनेक विचारोकों के साथ उन्होंने अपने विचार साझा किए। स्वर्गीय विश्वेश्वर दत्त सकलानी जिन्होंने 50 लाख से ज्यादा बांज के वृक्ष रोपित किये और आज भी उनका स्मृति वन सौंग की उपत्यका में लहरा रहा है। गुरुजी उनसे काफी प्रभावित थे।

    आदरणीय धूम सिंह गुरु जी सदैव अपने छोटों का उचित मार्गदर्शन करते हैं और अपने अग्रजों से कुछ सीखते हैं। उन्होंने बीज बचाओ की चेतना जिसे की बहुराष्ट्रीय कंपनियां निकल रही थी, एक कार्यकर्ता के रूप में अपने को जोड़ा और 8 मई को अपने ही क्षेत्र खाडी टिहरी गढ़वाल में अपने दिवंगत साथी कुंवर प्रसून की स्मृति में एक निजी विचार गोष्ठी का आयोजन किया। कहा कि निजी कंपनियों द्वारा बीजों को खत्म किया जा रहा है। सबको चिंता जाहिर करनी चाहिए।

    इस गोष्ठी में अनेकों बुद्धिजीवी, समाजसेवियों तथा किसानों ने शिरकत की थी और गुरु जी के बातों को सुना जो कि बीज बचाओ आंदोलन को धार देने के लिए कार्य करते हैं।आदरणीय गुरुजी, कुंवर प्रसून के निधन के बाद कुछ समय तक टूट गए थे और सामाजिक मुद्दों को लेकर पत्रकारिता में जो कमी आ गई थी उसके बारे में कई बार अपने विचार करते रहें हैं।

    उन्होंने स्व. प्रसून के जन्मदिवस को एक संकल्प दिवस के रूप में मनाने का आह्वान किया तथा अपने सहयोगी विजय जडधारी के साथ एक कार्यकर्ता के रूप में सामाजिक आंदोलनों की संक्षिप्त जानकारी प्रस्तुत करते हुए बीज बचाओ आंदोलन को जन- जन तक पहुंचाने का आह्वान भी किया। हेंवलिका पत्रिका के प्रकाशन का जिम्मा बीज बचाओ आंदोलन को दिया।

    स्वर्गीय प्रसून ने इस पत्रिका के संपादन और प्रकाशन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस पत्रिका का पहला अंक 1977 में, दूसरा अंक 1981 में प्रकाशित हुआ। इसके लंबे अंतराल के बाद 2007 में यह अंक निकला लेकिन फिर कतिपय कारणों से प्रकाशन नहीं हो सका। श्री नेगी जी अपने पुराने साथियों को स्मरण करना कभी नहीं भूलते। चाहे बनवारी लाल शुक्ला हों या घनश्याम सैलानी, विश्वेश्वर दत्त सकलानी हों या नवीन नौटियाल। स्वर्गीय सुंदरलाल बहुगुणा जी के द्वारा की गई पर्यावरण के क्षेत्र में अभूतपूर्व सेवाओं का भी काफी जिक्र करते हैं।

    श्री धूम सिंह नेगी जी भले ही शारीरिक रूप से काफी कमजोर हो चुके हों, यह अवस्था का प्रभाव है लेकिन मानसिक रूप से आज भी वह समृद्ध हैं और सतत समाज की चिंता करते रहने वाले व्यक्ति हैं। भले ही वे अब पदयात्रा करने के लायक नहीं रहे लेकिन उनकी पद यात्राएं, उनके डायरी के अंश, उनके दिए गए सुझाव, उनके लिखे गए संस्मरण, अनंत काल तक युवा पीढ़ी को प्रेरणा देते रहेंगें।

    (कवि कुटीर)
    सुमन कालोनी चंबा,टिहरी गढ़वाल।

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