बरगद (Ficus benghalensis) याने बट Bargad
मधुमेह क्या है? What is diabetes?
बलवीर्य वृद्धि के लिए भी बहुत लाभकारी है बरगद (Ficus benghalensis) {Bargad}
नपुंसकता दूर करता है बरगद (Ficus benghalensis) {Bargad}
बरगद (Ficus benghalensis) याने बट {Bargad} एक गुणकारी वृक्ष है। जिसका उपयोग विभिन्न रोंगों के उपचार में किया जाता है। बरगद (Ficus benghalensis) के पेड़ को हिन्दू धर्म में पवित्र माना जाता है। इसे पर्व या त्यौहार पर पूजा जाता है। इसका पेड़ बहुत ही बड़ा व विशाल होता है।
बरगद की शाखाओं से जटाएं लटककर जमीन तक पहुंचती हैं और तने का रूप ले लेती हैं जैसे-जैसे पेड़ पुराना होता जाता है, वैसे-वैसे इसका घेरा बढ़ता ही जाता है। यह भारत में हर जगहों पर मन्दिरों व कुओं के आस-पास पाया जाता है। इसके पत्ते कड़े, मोटे, अंडाकार, निचला भाग खुरदरा, ऊपरी भाग चिकनापन लिए होता है। इन्हें तोड़ने पर दूध निकलता है।
बरगद के पेड़ में फूल जाती हुई ठंड में और फल बारिश के महीनों में लगते हैं। फरवरी-मार्च के महीनों में बरगद की पत्तियां गिर जाती है और बाद में नए पत्ते निकलते हैं। पकने पर फलों का रंग लाल हो जाता है। पेड़ की शाखाओं से जटायें लटकने के कारण इसे आसानी से पहचाना जा सकता है।
बरगद (Bargad) को हिन्दी में बड़, in English Banyan Tree, संस्कृत में वट, रक्तफल, स्कन्धज, मराठी में बड़, गुजराती में बड़ली, बंगाली में बड़ गाछ, लैटिन में फाइकस इण्डिकस नाम से जाना जाता है।
बरगद (Ficus benghalensis) (Bargad) का सेवन गर्म स्वभाव वालों को हानिकारक है। इसके दोषों को दूर करने के लिए कतीरा का उपयोग किया जाता है। बरगद की तुलना दम्भुज अखवैन से की जा सकती है। इसे 6 ग्राम की मात्रा में सेवन करना चाहिए।
बरगद (Ficus benghalensis) एक गुणकारी वृक्ष है। इसका का पेड़ कषैला होता है, इसका उपयोग शीतल, मधुर, पाचन शक्तिवर्धक, भारी, पित्त, कफ (बलगम), व्रणों (जख्मों), धातु (वीर्य) विकार, जलन, योनि विकार, ज्वर (बुखार), वमन (उल्टी), विसर्प (छोटी-छोटी फुंसियों का दल) तथा दुर्बलता को खत्म करता है।
यह दांत के दर्द, स्तन की शिथिलता (स्तनों का ढीलापन), रक्तप्रदर, श्वेत प्रदर (स्त्रियों का रोग), स्वप्नदोष, कमर दर्द, जोड़ों का दर्द, बहुमूत्र (बार-बार पेशाब का आना), अतिसार (दस्त), बेहोशी, योनि दोष, गलित कुष्ठ (कोढ़), घाव, बिवाई (एड़ियों का फटना), सूजन, वीर्य का पतलापन, बवासीर, पेशाब में खून आना आदि रोगों में गुणकारी है। बरगद का उपयोग विभिन्न रोंगों के उपचार में किया जाता है।
चोट लगने पर बरगद (Ficus benghalensis) का दूध चोट, मोच और सूजन पर दिन में 2-3 बार लगाने और मालिश करने से फायदा होता है।
पैरों की बिवाई में बिवाई की फटी हुई दरारों पर बरगद का दूध भरकर मालिश करते रहने से कुछ ही दिनों में वह ठीक हो जाती है।
खूनी दस्त
दस्त के साथ या पहले खून निकलता है। उसे खूनी दस्त कहते हैं। इसे रोकने के लिए 20 ग्राम बरगद की कोपलें लेकर पीस लें और रात को पानी में भिगोकर सुबह छान लें, फिर इसमें 100 ग्राम घी मिलाकर पकायें, पकने पर घी बचने पर 20-25 ग्राम तक घी में शहद व शक्कर मिलाकर खाने से खूनी दस्त में लाभ होता है।
अतिसार (दस्त)
बरगद के दूध को नाभि के छेद में भरने और उसके आसपास लगाने से अतिसार (दस्त) में लाभ होता है।
6 ग्राम बरगद की कोंपलों को 100 मिलीलीटर पानी में घोटकर और छानकर उसमें थोड़ी मिश्री मिलाकर रोगी को पिलाने से और ऊपर से मट्ठा पिलाने से दस्त बंद हो जाते हैं।
छाया में सुखाई गई बरगद की 3 ग्राम छाल को लेकर पाउड़र बना लें और दिन मे 3 बार चावलों के पानी के साथ या ताजे पानी के साथ लेने से दस्तों में फायदा मिलता है।
बरगद (Ficus benghalensis) की 8-10 कोंपलों को दही के साथ खाने से दस्त बंद हो जाते हैं।
बरगद की 3 से 6 ग्राम कोमल प्ररोही को चावल के पानी के साथ पीसकर दिन में तीन बार रोगी को देने से दस्तों में आराम आता है। बरगद (बड़) के पेड़ की छाल को बारीक पीसकर 3 से 6 ग्राम की मात्रा में चीनी (शर्करा) और शहद के साथ सुबह और शाम पीने से दस्त में लाभ मिलता है।
बच्चों के हरे पीले दस्त में उमकी नाभि में बरगद़ का दूध लगाने और एक बताशे में 2-3 बूंद डालकर दिन में 2-3 बार रोगी को खिलाने से सभी प्रकार के दस्तों में लाभ होता है।
दस्त के साथ आंव
लगभग 5 ग्राम की मात्रा में बड़ के दूध को सुबह-सुबह पीने से आंव का दस्त समाप्त हो जाता है।
कमर दर्द
कमर दर्द में बरगद़ के दूध की मालिश दिन में 3 बार कुछ दिन करने से कमर दर्द में आराम आता है। बरगद का दूध अलसी के तेल में मिलाकर मालिश करने से कमर दर्द से छुटकारा मिलता है। कमर दर्द में बरगद का दूध लगाने से फायदा होता है।
बलवीर्य वृद्धि के लिए भी बहुत लाभकारी है बरगद
सूर्योदय से पहले बरगद (Ficus benghalensis) के पत्ते तोड़कर टपकने वाले दूध को एक बताशे में 3-4 बूंद टपकाकर खा लें। एक बार में ऐसा प्रयोग 2-3 बताशे खाकर पूरा करें। हर हफ्ते 2-2 बूंद की मात्रा बढ़ाते हुए 5-6 हफ्ते तक यह प्रयोग जारी रखें। इसके नियमित सेवन से शीघ्रपतन, वीर्य का पतलापन, स्वप्नदोष, प्रमेह, खूनी बवासीर, रक्त प्रदर आदि रोग ठीक हो जाते हैं।
बरगद की जटाओं के बारीक रेशों को पीसकर बने लेप को रोजाना सोते समय स्तनों पर मालिश करके लगाते रहने से कुछ हफ्तों में स्तनों का ढीलापन दूर हो जाता है। बरगद की जटा के बारीक अग्रभाग के पीले व लाल तन्तुओं को पीसकर लेप करने से स्तनों के ढीलेपन में फायदा होता है।
यौनशक्ति और स्तम्भन बढ़ाने हेतु बरगद के पके फल को छाया में सुखाकर पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को बराबर मात्रा की मिश्री के साथ मिलाकर पीस लें। इसे एक चम्मच की मात्रा में सुबह खाली पेट और सोने से पहले एक कप दूध से नियमित रूप से सेवन करते रहने से कुछ हफ्तों में यौन शक्ति में बहुत लाभ मिलता है।
नपुंसकता दूर करता है बरगद
बरगद के दूध की 5-10 बूंदे बताशे में डालकर रोजाना सुबह-शाम खाने से नपुंसकता दूर होती है। इसके अलावा बरगद के पत्तों से बना काढ़ा 50 मिलीलीटर की मात्रा में 2-3 बार सेवन करने से पेशाब की जलन दूर हो जाती है। यह काढ़ा सिर के भारीपन, नजला, जुकाम आदि में भी फायदा करता है।
आग से जल जाने पर दही के साथ बड़ को पीसकर बने लेप को जले हुए अंग पर लगाने से जलन दूर होती है। जले हुए स्थान पर बरगद की कोपल या कोमल पत्तों को गाय के दही में पीसकर लगाने से जलन कम हो जाती है।
पेशाब करने में परेशानी
9 ग्राम बरगद की जटा का बारीक चूर्ण, 2-2 ग्राम कलमी शीरा, श्वेतजीरा, छोटी इलायची के बीज का बारीक चूर्ण एक साथ मिलाकर पानी में घोटकर एक ही गोली बनाकर सुबह-शाम गाय ताजे दूध के साथ सेवन करने से मूत्रकृच्छ (पेशाब में जलन) व सुजाक रोग में लाभ होता है।
पेशाब बार-बार आने पर
बड़ की छाल के चूर्ण को आधा चम्मच की मात्रा में एक कप पानी के साथ दिन में 3-4 बार रोज खाने से बार-बार पेशाब आने के रोग में फायदा होता है। बरगद के बीज को बारीक पीसकर 1 या 2 ग्राम तक सुबह के समय गाय के दूध के साथ मिलाकर रोज खाने से बार-बार पेशाब आने की शिकायत दूर हो जाती है।
रक्तपित्त में 3 से 6 ग्राम बरगद के कोमल पत्तों को दूध में पीसकर दिन में तीन बार रोगी को देने से रक्त्तपित्त का रोग ठीक हो जाता है।
प्रदर रोग में बरगद के पेड़ का दूध 5-10 बूंद दिन में 4 बार देने से प्रदर की रोगी स्त्री को देने से आराम आता है। 100 ग्राम ताजे बड़ की छाल को छाया में सुखाकर पीसकर और छानकर 5-5 ग्राम कच्चे दूध के साथ सुबह-शाम सेवन करने से प्रदर रोग में लाभ मिलता है।
सुजाक रोग में छाया में सुखाई हुई बरगद की छाल के पाउडर को 3 ग्राम शर्बत बजूरी या साधारण पानी के साथ लेने से सुजाक रोग में लाभ होता है।
गंजापन व बालों के लिए गुणकारी बरगद
बरगद के पत्तों की 20 ग्राम राख को 100 मिलीलीटर अलसी के तेल में मिलाकर मालिश करते रहने से सिर के बाल उग आते हैं। बरगद के साफ कोमल पत्तों के रस में, बराबर मात्रा में सरसों के तेल को मिलाकर आग पर पकाकर गर्म कर लें, इस तेल को बालों में लगाने से बालों के सभी रोग दूर हो जाते हैं। इसके अलावा 25-25 ग्राम बरगद की जड़ और जटामांसी का चूर्ण, 400 मिलीलीटर तिल का तेल तथा 2 लीटर गिलोय का रस को एकसाथ मिलाकर धूप में रख दें, इसमें से पानी सूख जाने पर तेल को छान लें। इस तेल की मालिश से गंजापन दूर होकर बाल आ जाते हैं और बाल झड़ना बंद हो जाते हैं।
बाल घने और लम्बा करने हेतु
बरगद की जटा और काले तिल को बराबर मात्रा में लेकर खूब बारीक पीसकर सिर पर लगायें। इसके आधा घंटे बाद कंघी से बालों को साफ कर ऊपर से भांगरा और नारियल की गिरी दोनों को पीसकर लगाते रहने से बाल कुछ दिन में ही घने और लंबे हो जाते हैं।
नकसीर (नाक से खून बहना)
नाक में बरगद Ficus benghalensis के दूध की 2 बूंदें डालने से नकसीर (नाक से खून बहना) ठीक हो जाती है। 3 ग्राम बरगद की जटा के बारीक पाउडर को दूध की लस्सी के साथ पिलाने से नाक से खून बहना बंद हो जाता है।
नींद का अधिक आना
बरगद Ficus benghalensis के कड़े हरे शुष्क पत्तों के 10 ग्राम दरदरे चूर्ण को 1 लीटर पानी में पकायें, चौथाई बच जाने पर इसमें 1 ग्राम नमक मिलाकर सुबह-शाम पीने से हर समय आलस्य और नींद का आना कम हो जाता है।
जुकाम
बरगद (Ficus benghalensis) के लाल रंग के कोमल पत्तों को छाया में सुखाकर पीसकर रख लें। फिर आधा किलो पानी में इस पाउडर को 1 या आधा चम्मच डालकर पकायें, पकने के बाद थोड़ा सा बचने पर इसमें 3 चम्मच शक्कर मिलाकर सुबह-शाम चाय की तरह पीने से जुकाम और नजला आदि रोग दूर होते हैं और सिर की कमजोरी ठीक हो जाती है।
नेत्र रोग एवं गले की गांठ
बरगद के 10 मिलीलीटर दूध में 125 मिलीग्राम कपूर और 2 चम्मच शहद मिलाकर आंखों पर लगाने से आंखों का फूलना बंद हो जाता है।
बरगद के दूध को 2-2 बूंद आंख में डालने से आंख का जाला कटता है।
आंखों का जाला:- बड़ का दूध आंख में लगाने से आंखों का जाला कट जाता है।
कण्डमाला के रोग
बरगद के दूध का लेप करने से कण्ठमाला रोग (गले की गांठे) ठीक हो जाता है।
गले में गांठ होने पर बरगद के दूध का लेप करने से लाभ होता है।
हृदय के रोग
10 ग्राम बरगद (Ficus benghalensis) के कोमल हरे रंग के पत्तों को 150 मिलीलीटर पानी में खूब पीसकर छानकर उसमें थोड़ी मिश्री मिलाकर सुबह-शाम 15 दिन तक सेवन करने से दिल की घड़कन सामान्य हो जाती है। बरगद के दूध की 4-5 बूंदे बताशे में डालकर लगभग 40 दिन तक सेवन करने से दिल के रोग में लाभ मिलता है।
कफ (बलगम) की शिकायत होने पर
बरगद (Ficus benghalensis) की कोमल शाखाओं को ठंडे पानी या बर्फ के संग 10-20 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से कफ (बलगम) के रोग में फायदा होता है।
भगन्दर
बरगद के पत्ते, सौंठ, पुरानी ईंट के पाउडर, गिलोय तथा पुनर्नवा की जड़ का चूर्ण समान मात्रा में लेकर पानी के साथ पीसकर लेप करने से भगन्दर के रोग में फायदा होता है।
बरगद (Ficus benghalensis) {वटवृक्ष} की छाल, पाकर की छाल, अंबाड़ा की छाल, जलवेन्त की छाल, तुन की छाल, बेर की छाल, मुलहठी, चिरोंजी, लोध्र, गूलर की छाल, पीपल की छाल, महुए की छाल, पारस पिप्पली की छाल, आम की छाल, हरड़ की छाल, जामुन की छाल, सल्लकी की छाल, कदम्ब की छाल, अर्जुन की छाल और शुद्ध भल्लातक को बराबर मात्रा में लें और उसका काढ़ा बनाकर पीये।
इसका काढ़ा पीने से योनिदोष, जलन, प्रमेह, अस्थिभंग (हड्डी टूटना), मेदविकार (मोटापा) तथा विष दोष दूर होता है। यह काढ़ा रोगों को रोकने तथा जख्म को रोपने वाला होता है जो भगन्दर रोग को ठीक करता है।
बादी बवासीर
20 ग्राम बरगद (Ficus benghalensis) की छाल को 400 मिलीलीटर पानी में पकायें, पकने पर आधा पानी रहने पर छानकर उसमें 10-10 ग्राम गाय का घी और चीनी मिलाकर गर्म ही खाने से कुछ ही दिनों में बादी बवासीर में लाभ होता है।
खूनी बवासीर
बरगद के 25 ग्राम कोमल पत्तों को 200 मिलीलीटर पानी में घोटकर खूनी बवासीर के रोगी को पिलाने से 2-3 दिन में ही खून का बहना बंद होता है। बवासीर के मस्सों पर बरगद के पीले पत्तों की राख को बराबर मात्रा में सरसों के तेल में मिलाकर लेप करते रहने से कुछ ही समय में बवासीर ठीक हो जाती है।
10 ग्राम बरगद (Ficus benghalensis) की कोपलों को 100 मिलीलीटर बकरी के दूध में बराबर पानी मिलाकर पका लें। पकने पर जब सिर्फ दूध रह जायें तो इसे छानकर खाने से रक्तपित्त, खूनी बवासीर में लाभ होता है।
बरगद की सूखी लकड़ी को जलाकर इसके कोयलों को बारीक पीसकर सुबह-शाम 3 ग्राम की मात्रा में ताजे पानी के साथ रोगी को देते रहने से खूनी बवासीर में फायदा होता है। कोयलों के पाउडर को 21 बार धोये हुए मक्खन में मिलाकर मरहम बनाकर बवासीर के मस्सों पर लगाने से मस्से बिना किसी दर्द के दूर हो जाते हैं।
मधुमेह (Diabetes), मधुमेह क्या है? What is diabetes?
जब भी खाना खाते हैं तो वह अंदर जाकर टूटना शुरू करता हैं और इस दौरान उसमे मौजूद ग्लुगोज यानि मीठा या चीनी और शर्करा निकलना शुरू करता है। इसी दौरान दूसरी तरफ अग्न्याशय यानि पैंक्रियास इन्सुलिन (एक प्रकार का हार्मोन) छोड़ना शुरू करता है ताकि ग्लूकोज को शर्करा (ग्लुगोज) रक्त के माध्यम से पुरे शरीर में जाती है और पुरे शरीर में उर्जा का संचार कर सके जो कि वह बिना इन्सुलिन के नहीं कर सकता।
लेकिन जब पैंक्रियास से इन्सुलिन उचित मात्रा में या ठीक तरह से सक्रिय इंसुलिन (Active Insulin) न निकले तो इसकी वजह से रक्त में ग्लुगोज का स्तर बढ़ने लग जाता है और फिर इसी स्थिति को मधुमेह कहा जाता है। इन्सुलिन की मात्रा कम होने और कम सक्रिय होने के अलावा अगर व्यक्ति ज्यादा मात्रा में मीठे का सेवन करता हैं तो भी मधुमेह हो सकता है, क्योंकि पैंक्रियास की मात्रा ग्लुगोज की मात्रा के अनुपात में कम हो जाती है।
20 ग्राम बरगद की छाल और इसकी जटा को बारीक पीसकर बनाये गये चूर्ण को आधा किलो पानी में पकायें, पकने पर अष्टमांश से भी कम बचे रहने पर इसे उतारकर ठंडा होने पर छानकर खाने से मधुमेह के रोग में लाभ होता है।
लगभग 24 ग्राम बरगद के पेड़ की छाल लेकर जौकूट करें और उसे आधा लीटर पानी के साथ काढ़ा बना लें। जब चौथाई पानी शेष रह जाए तब उसे आग से उतारकर छाने और ठंडा होने पर पीयें। रोजाना 4-5 दिन तक सेवन से मधुमेह रोग कम हो जाता है। इसका प्रयोग सुबह-शाम करें।”
प्रमेह (Gonorrhea)
प्रमेह रोग में बरगद के दूध की पहले दिन 1 बूंद 1 बतासे डालकर खायें, दूसरे दिन 2 बतासों पर 2 बूंदे, तीसरे दिन 3 बतासों पर 3 बूंद ऐसे 21 दिनों तक बढ़ाते हुए घटाना शुरू करें। इससे प्रमेह और स्वप्नदोष दूर होकर वीर्य बढ़ने लगता है।
प्रमेह रोग में बरगद की ताजी छाल के बारीक पाउडर में चीनी मिलाकर 4 ग्राम की मात्रा में ताजे पानी के साथ सेवन करने से लाभ होता है। बार-बार वीर्य के निकलने पर इसके अंदर चीनी न मिलायें।
400 ग्राम बरगद के कोमल पत्ते और 200 ग्राम बहुफली को खूब शर्बत की तरह घोट-छानकर कलईदार बर्तन में पकायें, पकने पर जब यह गाढ़ा हो जाये तो इसे नीचे उतारकर इसमें थोड़ा वंशलोचन या इमली के बीजों की गिरी मिलाकर 125 से 300 मिलीग्राम की गोलियां बना लें। रोजाना यह 1-2 गोली खाकर ऊपर से ताजा गाय का दूध पीने से प्रमेह, धातु (वीर्य) क्षीणता, स्वप्नदोष आदि रोग दूर होते हैं। मूत्रकृच्छ (पेशाब में जलन) में भी यह प्रयोग लाभकारी है।
लगभग ढाई किलो बरगद के पीले पके पत्ते लेकर, 15 लीटर पानी में 3-4 दिन भिगोने के बाद पका लें। पकने पर थोड़ा पानी बचने पर उसे मसलकर छान लें, पानी को दोबारा गाढ़ा होने तक पकायें। अब नीचे उतारकर इसमें 3 से 6 ग्राम गिलोय का सत व प्रवालपिष्टी तथा 2 ग्राम छोटी इलायची के बीज को पीसकर मिलायें। फिर इसकी 250 मिलीग्राम की गोली बनाकर सुबह-शाम 1-1 गोली गाय के दूध या पानी के साथ सेवन करने से प्रमेह रोग में लाभ होता है।
4 ग्राम बरगद की जटा के चूर्ण को सुबह-शाम ताजे पानी के साथ खाने से प्रमेह, पेशाब के धातु आना और स्वप्नदोष आदि रोग दूर हो जाते हैं।
10-20 ग्राम बरगद के पके फलों के चूर्ण को मिश्री मिलाये हुए दूध के साथ खाने से प्रमेह रोग में फायदा होता है। यह पौष्टिक व धातुवर्धक होता है।
रक्तप्रदर
20 ग्राम बरगद के कोमल पत्तों को 100 से 200 मिलीलीटर पानी में घोटकर रक्तप्रदर वाली स्त्री को सुबह-शाम पिलाने से लाभ होता है। स्त्री या पुरुष के पेशाब में खून आता हो तो वह भी बंद हो जाता है।
10 ग्राम बरगद की जटा के अंकुर को 100 मिलीलीटर गाय के दूध में पीसकर और छानकर दिन में 3 बार स्त्री को पिलाने से रक्तप्रदर में लाभ होता है।
3 से 5 ग्राम बरगद की कोपलों का काढ़ा बनाकर सुबह-शाम खाने से प्रमेह व प्रदर रोग खत्म होता है।
बरगद की 3 से 6 ग्राम छाल का चूर्ण चावल के पानी के साथ दिन में 3 बार सेवन करने से रक्तप्रदर का रोग कुछ ही समय में ठीक हो जाता है।
बरगद के दूध की 5-7 बूंदे बताशे में भरकर खाने से रक्तप्रदर मिट जाता है।
खून की उल्टी
बरगद की नर्म शाखाओं के फांट में शक्कर या बतासा मिलाकर खाने से खून की उल्टी बंद हो जाती है। बरगद की जटा के 6 ग्राम अकुंरों को पानी में घोटकर और छानकर पिलाने से खून की उल्टी नहीं होती है।
प्यास ज्यादा लगना
बरगद की कोंपलों के साथ दूब घास, लोध्र, अनार की फली और मुलेठी को बराबर मात्रा में लेकर एक साथ पीस कर शहद में मिलाकर चावलों के पानी के साथ सेवन करने से वमन (उल्टी) और प्यास शांत हो जाती है।
जी मिचलना
20 ग्राम बरगद के हरे पत्ते, 7 लौंग को पानी में घोंटकर रोगी की इच्छानुसार पिलाने से जी मिचलाना ठीक हो जाता है।
सिफलिस/ उपदंश (Syphilis)
बरगद की जटा के साथ अर्जुन की छाल, हरड़, लोध्र व हल्दी को समान मात्रा में लेकर पानी में पीसकर लेप लगाने से उपदंश के घाव भर जाते हैं।
बरगद का दूध उपदंश के फोड़े पर लगा देने से वह बैठ जाती है। बड़ के पत्तों की भस्म (राख) को पान में डालकर खाने से उपदंश रोग में लाभ होता है।
गर्भपात
4 ग्राम बरगद की छाया में सुखाई हुई छाल के चूर्ण को दूध की लस्सी के साथ खाने से गर्भपात नहीं होता है।
बरगद की छाल के काढ़े में 3 से 5 ग्राम लोध्र की लुगदी और थोड़ा सा शहद मिलाकर दिन में 2 बार सेवन करने से गर्भपात में जल्द ही लाभ होता है। योनि से रक्त का स्राव यदि अधिक हो तो बरगद की छाल के काढ़ा में छोटे कपड़े को भिगोकर योनि में रखें। इन दोनों प्रयोग से श्वेत प्रदर में भी फायदा होता है।
बरगद के 2 कोमल पत्तों को 250 मिलीलीटर गाय के दूध में डालकर उसमें बराबर मात्रा में थोड़ा पानी डालकर पकायें। पकने पर जब सिर्फ दूध ही रह जाये तो छानकर पीने से गर्भपात में लाभ होता है।
योनि शौथिल्य:
बरगद की कोपलों के रस में फोया भिगोकर योनि में रोज 1 से 15 दिन तक रखने से योनि का ढीलापन दूर होकर योनि टाईट हो जाती है।
गर्भधारण करने हेतु:
पुष्य नक्षत्र और शुक्ल पक्ष में लाये हुए बरगद की कोपलों का चूर्ण 6 ग्राम की मात्रा में मासिक-स्राव काल में प्रात: पानी के साथ 4-6 दिन खाने से स्त्री अवश्य गर्भधारण करती है, या बरगद की कोंपलों को पीसकर बेर के जितनी 21 गोलियां बनाकर 3 गोली रोज घी के साथ खाने से भी गर्भधारण करने में आसानी होती है।
शक्तिवर्द्धक है बरगद
बरगद के पेड़ के फल को सुखाकर बारीक पाउडर लेकर मिश्री के बारीक पाउडर मिला लें। रोजाना सुबह इस पाउडर को 6 ग्राम की मात्रा में दूध के साथ सेवन से वीर्य का पतलापन, शीघ्रपतन आदि रोग दूर होते हैं।
बरगद के पके हुए फल और पीपल के फल को सुखाकर बारीक चूर्ण बना लें इस 25 ग्राम चूर्ण को 25 ग्राम घी में भूनकर, हलवा बना लें इसे सुबह-शाम खाने से ऊपर से बछड़े वाली गाय का दूध पीने से विशेष बल वृद्धि होती है। अगर स्त्री-पुरुष दोनों खायें तो रस वीर्य शुद्ध होकर सुन्दर सन्तान जन्म लेती है।
बरगद की सूखी कोपलों के पाउडर में मिश्री मिलाकर 7 दिन तक रोज बिना खाना-खाये ही 7 से 10 ग्राम तक दूध की लस्सी के संग खायें इससे वीर्य का पतलापन मिटता है।
याददाश्त बढ़ाना
बरगद की छाल जो छाया में सुखाई गई हो उसके बारीक पाउडर में दुगनी चीनी या मिश्री मिला लें, इसे 6 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम खाने से याददाश्त शक्ति बढ़ती है। इस प्रयोग में खट्टे पदार्थों से परहेज रखें।
घाव एवं फोड़े फुंसियाँ
घाव में कीड़े हो गये हो, बदबू आती हो तो बरगद की छाल के काढ़े से घाव को रोज धोने से इसके दूध की कुछ बूंदे दिन में 3-4 बार डालने से कीड़े खत्म होकर घाव भर जाते हैं।
साधारण घाव पर बरगद के दूध को लगाने से घाव जल्दी अच्छे हो जाते हैं।
अगर घाव ऐसा हो जिसमें कि टांके लगाने की जरूरत पड़ जाती है। तो ऐसे में घाव के मुंह को पिचकाकर बरगद के पत्ते गर्म करके घाव पर रखकर ऊपर से कसकर पट्टी बांधे, इससे 3 दिन में घाव भर जायेगा, ध्यान रहे इस पट्टी को 3 दिन तक न खोलें।
फोड़े-फुन्सियों पर इसके पत्तों को गर्मकर बांधने से वे शीघ्र ही पककर फूट जाते हैं।
बरगद के पत्तों को जलाकर उसकी भस्म (राख) में मोम और घी मिला कर मलहम जैसा बनाकर घावों में लगाने से जल्दी आराम होता है।
बारिश के महीनों में पानी में ज्यादा रहने से अगुंलियों के बीच में जख्म से हो जाते हैं, उन पर बरगद का दूध लगाने से जख्म जल्दी अच्छे हो जाते हैं।
व्रण (घाव) की सूजन कम करने के लिए बरगद, गूलर, पीपल, पाकर, बेल, सफेद चंदन, लाल चंदन, मंजीठ, मुलहठी, गेरू और जमीकंद को बराबर मात्रा में लेकर पीसकर व छानकर सौ बार कांसे के बर्तन में धोएं फिर उस मिश्रण को घी में मिलाकर लेप बना लें। इस मिश्रण को घाव पर लगाने से घाव जल्दी ठीक होता है। घाव को ठीक करने के लिए बरगद के कोमल पत्तों को गाय के दूध की दही में पीसकर लगाने से रोगी का घाव ठीक हो जाता है।
बरगद के पेड़ के दूध को फोड़े पर लगाने से फोड़ा पककर फूट जाता है।
बरगद के नये पत्तों को आग के ऊपर से ही हल्का-सा गर्म करके उसके ऊपर थोड़ा-सा तेल लगाकर बांधने से फोड़े- फुंसियां ठीक हो जाती हैं।
रक्तपित्त
बरगद की कोपलों या पत्तों को 10 से 20 ग्राम तक पीसकर लुगदी बना लें, फिर इसमें शहद और शक्कर मिलाकर खाने से रक्त पित्त में फायदा होता है।
नाड़ी में घाव
बरगद की कोपलें (नई पत्तियां) तथा कोमल पत्तों को पीसकर पानी में छान लें फिर पानी में तिल का तेल मिलाकर तेल को गर्म कर लें। इस तेल को दिन में 2-3 बार जख्म पर लगाने से फायदा होता है।
बरगद के दूध में सांप की केंचुली की भस्म (राख) मिलाकर उसमें पतले कपड़े या रूई की बत्ती को भिगोकर नाड़ी के घाव में रखने से उन्हें 10 दिन में लाभ होता है। रसौली की शुरुआत अवस्था में इसके लेप से जल्द लाभ होता है।
कुष्ठ (कोढ़)
रात के समय बरगद के दूध का लेप करने तथा कोढ़ पर बरगद की छाल का चूर्ण बांधने से 7 दिन में ही कोढ़ और रोमक शांत हो जाता है।
रसौली
कूठ व सेंधानमक को बरगद के दूध में मिलाकर लेप करें, तथा ऊपर से छाल का पतला टुकड़ा बांध दें, इसे 7 दिन तक 2 बार उपचार करने से बढ़ी हुआ गांठ दूर हो जाती है। गठिया, चोट व मोच पर बरगद का दूध लगाने से दर्द जल्दी कम होता है।
तालु कंटक
तालु कंटक या तालु के नीचे की ओर धंस जाने पर इसके दूध को मिट्टी की टिकिया पर लगाकर तालु पर बांधने से या लेप करने से तालू उसी जगह पर आ जाती है।
सूजन
बरगद के पत्तों पर घी चुपड़कर बांधने से शोथ (सूजन) दूर हो जाती है।
खुजली
बरगद के आधा किलो पत्तों को पीसकर, 4 किलो पानी में रात के समय भिगोकर सुबह ही पका लें। एक किलो पानी बचने पर इसमें आधा किलो सरसों का तेल डालकर दोबारा पकायें, तेल बचने पर छानकर रख लें, इस तेल की मालिश करने से गीली और खुश्क दोनों प्रकार की खुजली दूर होती है।
चेचक (शीतला) मसूरिका रोग
बरगद, गूलर, पीपल, पाकर और मौलश्री को मिलाकर और पीसकर घावों या चेचक के दानों (मसूरिका) पर लगाने से शीतला (मसूरिका) का ज्वर दूर हो जाता है।
दाँतों की मजबूती
बरगद की पेड़ की टहनी या इसकी शाखाओं से निकलने वाली जड़ की दातुन करने से दांत मजबूत होते हैं।
दांत में कीड़े लगना
कीड़े लगे या सड़े हुए दांतों में बरगद का दूध लगाने से कीड़े तथा पीड़ा दूर हो जाती है।
जीभ की जलन और सूजन
बरगद की छाल को 1 लीटर पानी में उबाल लें। रोजाना सुबह-शाम इस काढ़े से गरारे करने पर जीभ की सूजन व जलन खत्म हो जाती है।
दांत का दर्द
10 ग्राम बरगद की छाल, कत्था और 2 ग्राम कालीमिर्च इन तीनों को खूब बारीक पाउडर बनाकर मंजन करने से दांतों का हिलना, मैल, बदबू आदि रोग दूर होकर दांत साफ हो जाते हैं।
दांत के दर्द पर बरगद का दूध लगाने से दर्द दूर हो जाता है। इसके दूध में एक रूई की फुरेरी भिगोकर दांत के छेद में रख देने से दांत की बदबू दूर होकर दांत ठीक हो जाते हैं तथा दांत के कीड़े भी दूर हो जाते हैं।
अगर किसी दांत को निकालना हो तो उस दांत पर बरगद का दूध लगाकर दांत को आसानी से निकाला जा सकता है।
बरगद के पेड़ की जटा से मंजन करने से दांतों के कीड़े खत्म हो जाते हैं। बरगद की कोमल लकड़ी की दातुन से पायरिया खत्म हो जाता है।
बरगद का दूध दांतों में लगाने, मसूढ़ों पर मलने से उनका दर्द दूर हो जाता है। बरगद की छाल के काढ़े से कुछ समय तक रोजाना गरारे करने से दांत मजबूत हो जाते हैं।
बरगद के पेड़ का दूध निकालकर दांतों लगाने से दांतों का दर्द खत्म हो जाता है।
बरगद की छाल को पीसकर दांतों के नीचे रखें। इससे दांतों का दर्द खत्म हो जाता है।
वमन (उल्टी)
लगभग 3 ग्राम से 6 ग्राम बरगद की जटा का सेवन करने से उल्टी आने का रोग दूर हो जाता है।
मुंह के छाले
30 ग्राम वट की छाल को 1 लीटर पानी में उबालकर गरारे करने से मुंह के छाले खत्म हो जाते हैं।
कान का दर्द
बरगद के पत्तों के दूध की थोड़ी-सी बूंदे कान में डालने से कान के कीड़े मर जाते हैं और कान का दर्द दूर हो जाता है।
गर्भवती स्त्री की उल्टी
बड़ की जटा के अंकुर को घोटकर गर्भवती स्त्री को पिलाने से सभी प्रकार की उल्टी बंद हो जाती है।
गर्भवती स्त्री का अतिसार
बट की कोंपलों (मुलायम पत्तियां) बकरी के दूध में पीसकर रोगी को पिलाने से गर्भवती स्त्री का अतिसार (दस्त) बंद हो जाता है।
आमातिसार
आमातिसार के रोगी को 3 से 6 ग्राम बरगद की छाल का काढ़ा बनाकर 50 से 100 मिलीलीटर काढ़ा रोजाना सुबह-शाम पिलाने से लाभ होता है।
दर्द व सूजन
चोट, मोच की दर्द में बरगद का दूध अलसी के तेल में मिलाकर मालिश करने से दर्द कम होता है। यह दूध एक अच्छी औषधि का काम करती है जो दर्द को दूर करती है।
गर्भवती की पीड़ा और दर्द
बरगद की कोपल (मुलायम पत्तियां) और छाल पीसकर चूर्ण बनाकर और दूध में घोलकर पिलाने से भी लाभ होता है। यह योग पांचवे माह में गर्भ की रक्षा, गर्भिणी की पीड़ा का नष्ट करना तथा स्राव को रोकने वाले होते हैं।
नवें महीने के गर्भ के विकार
बरगद के पेड़ की जड़ और काकोली को पीसकर ताजे पानी के साथ पिलाने से नवें महीने में होने वाली गर्भ सम्बन्धी सभी समस्याएं समाप्त हो जाती हैं।
गिल्टी (ट्यूमर)
बरगद का दूध लगाने से गिल्टी बिल्कुल नष्ट हो जाती है।
वीर्य रोग
बरगद के फल छाया में सुखाकर चूर्ण बना लें। गाय के दूध के साथ यह 1 चम्मच चूर्ण खाने से वीर्य गाढ़ा व बलवान बनता है।
1 भाग बरगद की कोंपल (मुलायम पत्तियां), 1 भाग गूलर की छाल और 2 भाग चीनी मिलाकर चूर्ण बना लें। 21 दिन तक 10 ग्राम चूर्ण रोजाना दूध के साथ खाने से वीर्य गाढ़ा होता है।
25 ग्राम बरगद की कोपलें (मुलायम पत्तियां) लेकर 250 मिलीलीटर पानी में पकायें। जब एक चौथाई पानी बचे तो इसे छानकर आधा किलो दूध में डालकर पकायें। इसमें 6 ग्राम ईसबगोल की भूसी और 6 ग्राम चीनी मिलाकर सिर्फ 7 दिन तक पीने से वीर्य गाढ़ा हो जाता है।
बरगद के दूध की 5-7 बूंदे बताशे में भरकर खाने से वीर्य के शुक्राणु बढ़ते है।
स्तन रोग
बरगद और पीपल के पेड़ की हरी छाल को उतार कर पीसकर गुनगुना ही स्तनों पर लगाने से स्तनों के रोग ठीक हो जाते हैं।
स्तनों का कठोर होना
बरगद की नई कोमल बरोहें को पानी में पीसकर स्तनों पर लेप करने से स्तन कठोर हो जाते हैं।
मूत्ररोग
बरगद के दो नये कोमल पत्तों के छोटे-छोटे टुकड़े करके 1 कप पानी में उबालें। पानी जब आधा कप बचा रह जाये, तो उसे उतारकर छान लें। इसमें थोड़ी-सी चीनी डालकर पी जायें। सात दिन तक यह करने से मूत्ररोग ठीक हो जाता है।
गठिया रोग
गठिया के दर्द में बरगद के दूध में अलसी का तेल मिलाकर मालिश करने से लाभ मिलता है।
नहरूआ (स्यानु)
बरगद की कोमल टहनी में गुड़ बराबर मात्रा में मिलाकर पीस लें। इसकी टिकिया बनाकर बांधने से नहरूआ रोग नष्ट हो जाता है।
नासूर (पुराना घाव)
बरगद के दूध में सांप की केंचुली की राख मिलाकर और उसमें रूई भिगोकर नासूर पर रखें। दस दिन तक इसी प्रकार करने से नासूर में लाभ मिलता है।
सिर का दर्द
बरगद के चूर्ण का लेप करने से शंखक नामक सिर का रोग ठीक हो जाता है।
दमा
दमा के रोगी को बड़ के पत्ते जलाकर उसकी राख 240 मिलीग्राम पान में रखकर खाने से लाभ मिलता है।
******