बंदरों के आतंक का स्थायी समाधान निकाले सरकार, पिंजरा लगाकर पकड़ना वैकल्पिक

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बंदरों के आतंक का स्थायी समाधान निकाले सरकार, पिंजरा लगाकर पकड़ना वैकल्पिक
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उत्तराखण्ड के ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में बंदरों का आतंक चरमसीमा पर पहुंच गया है। बंदर जहां एक ओर ग्रामीण कास्तकारों की खड़ी फसलों को तबाह कर रहे हैं वहीं अब ये बानर इतने शातिर हो चुके हैं कि किसी पर भी हमला कर बैठते हैं। सरकार को बंदरों के आतंक का स्थानीय समाधान निकालना चाहिए, पिंजरा लगाकर एक स्थान से पकड़कर दूसरे स्थान पर छोड़ना बंदरों के आतंक का स्थायी समाधान नहीं हैं।

गत दिवस चम्बा प्रखण्ड के नकोट मखलोगी गांव में कलमदास पर बंदरों ने हमला कर चोटिल कर दिया। इससे पूर्व गजा क्षेत्र में कई लोगों एवं स्कूल बच्चों पर बंदर हमला कर चुके हैं। गांवों के निकटवर्ती अस्पतालों में रैवीज की वैक्सीन भी उपलब्ध नहीं हो पाती।

नकोट गांव का गरीब कलमदास आज अपनी माली हालत के चलते वैक्सीनेशन को लेकर मदद की दरकार कर रहा है। वन विभाग क्या उसे कुछ मदद कर पायेगा? यह तो विभागीय प्रणाली ही बता पायेगी। यदि कोई सक्षम व्यक्ति इस प्रकार की घटना का शिकार होता तो उसे तात्कालिक राहत प्राप्त हो जाती। मगर रोना तो इस बात का है कि गरीब का शायद ही कोई सुनने वाला हो। यहां एक नहीं इस प्रकार कई कलमदास होंगे। जो आज भी आस लगाये बैठे होंगे।

विषय से हटकर हालिया उदाहरण यह भी है कि मखलोगी के ही माणदा गांव में श्रीमती गैणी देवी का आवासीय भवन आग की भेंट चढ़ गया था। उन्हें अभी तक आवास प्राप्त न हो सका। विभागीय कार्यवाही लम्बी चौड़ी चल रही होगी। इसी प्रकार एक गरीब अनुजाति कोठी मल्ली निवासी मुकेश दास की पत्नी व आठ वर्षीय बच्ची को भगा ले गया। नामजद रिपोर्ट दर्ज की गई। महीना पूरा होने वाला है। अभी तक टिहरी जिला प्रशासन उसकी सुरागरसी नहीं का पाया है। इसी प्रकार यदि किसी राजनेता या अधिकारी या सत्ता पर पकड़ रखने वाले की बहू बेटी कोई भगा ले जाता तो प्रशासन दिन-रात एक कर बैठता, गैणी देवी का मकान भी बन जाता और मुकेश की पत्नी व बेटी भी अब तक मिल गई होती। इस प्रकार के उदाहरण मखलोगी के निकट ही मिल जायेंगे। मगर गरीब मुकेश की सुनवाई को समय का अभाव प्रतीत होता है।

आज वन विभाग द्वारा नकोट गांव में बंदरों को पकड़ने के लिए पिंजरे लगाये जा रहे हैं। जबकि नकोट गांव ही नहीं आस-पास के अन्य गांवों एवं नकोट कस्बे में ही बंदरों की कई टोलियां बेखौफ भ्रमण कर रही हैं, खड़ी फसलें चौपट कर चुके हैं। स्कूली बच्चों व महिलाओं पर हमला कर रहे हैं। इन पिंजरों में कितने वानर पकड़े जायेंगे। जो पकड़ में आयेंगे, उन्हें यहां से अन्यत्र शिफ्ट हो जायेंगे और निकटवर्ती दूसरी टोली नकोट या अन्य गांवों में धावा बोल देगी। तब इन ग्रामीणों की सुरक्षा का क्या होगा? सोचनीय विषय है। इसलिए जब तक स्थायी समाधान नहीं ढूंढ लिया जाता तक तक वैकल्पिक व्यवस्थाओं के नाम पर ग्रामीणों को राहत मिलने वाली नहीं। निष्कर्ष यही बोलता है।

वन क्षेत्राधिकारी आशीष डिमरी एवं उपवन क्षेत्राधिकारी जसवंत सिंह पंवार वन बीट अधिकारी सुमन पुण्डीर विकास बहुगुणा सहायक वन बीट अधिकारी के नेतृत्व में ग्रामीणों की शिकायत पर ग्राम पंचायत नकोट में उत्पाती हमलावर बंदरों को पकड़ने के लिए ग्रामीणों के सहयोग से पिंजरा लगाया गया हएै जिसमें ग्राम पंचायत के दिलबीर मखलोगा, व्यापार सभा के अध्यक्ष कुलदीप मखलोगा, अनिल मखलोगा, सौरभ मखलोगा आदि मौजूद रहे।

खैर! अब देखने वाली बात यह है कि वन विभाग द्वारा लगाये जा रहे पिंजरों से कितनी राहत मिलती है। यह भविष्य के आगोश में है। नकोट गांव में पिंजरों की व्यवस्था करवाने व गरीब कलमदास को राहत प्रदान करवाने हेतु पूर्व प्रधान दौलत सिंह का जो योगदान दिखाई दिया वह बेशकीमती व सराहनीय है।

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