पलायन पर कविता: फिर क्यों पहाड पलायन है?
@कवि:सो.ला.सकलानी ‘निशांत’
देखो, गांव कितने सुंदर हैं!
कुछ दिन रहकर देखो तो।
गांव पर्वत कैसे लगते हैं!
कुुछ दिन आकर देखो तो।
गांव हमे क्या कुछ देते हैं!
कुुछ खेती करके देखो तो।
गांव कभी क्यों अब रोते हैं!
दशा यहां की तुम देखो तो।
सुंदरता का आलम पसरा,
फिर क्यों पहाड पलायन है?
गुलदार सुअर बानर टोली,
क्या घर- घर देहरा होली है?
क्यों अब गांधी के गांव नहीं?
क्या पुरखों का भी नाम नहीं?
क्यों गांव पहाड के खाली हैं!
क्यों बानर -सुअर अब माली हैं?
कुछ दिन गांव आ कर देखो,
नमक-रोटी खाकर देखो तो!
यथासमय अपने घर को लौटो,
खेती-बाडी कर के देखो तो।
पता चलेगा गांव लोग अब कैसे हैं?
कुछ शहरी कठमाली देहाती भोले हैं!
बर्फ पड़ रही पड़ाड में, ठिठुरन ज्यादा है,
आग घरों मे गायब हैं,कंबल लेकर तो!
(कवि कुटीर)
सुमन कालोनी चंबा,टिहरी गढ़वाल