नागदेव पत्थल्ड के बाल वैज्ञानिकों ने ग्रामीणों से जाना कि जंगली जानवरों द्वारा किस प्रकार पहुंचाई जा रही है फसलों को क्षति

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नागदेव पत्थल्ड के बाल वैज्ञानिकों ने ग्रामीणों से जाना कि जंगली जानवरों द्वारा किस प्रकार पहुंचाई जा रही है फसलों को क्षति
नागदेव पत्थल्ड के बाल वैज्ञानिकों ने ग्रामीणों से जाना कि जंगली जानवरों द्वारा किस प्रकार पहुंचाई जा रही है फसलों को क्षति
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नागदेव पत्थल्ड के बाल वैज्ञानिकों ने ग्रामीणों से जाना कि जंगली जानवरों द्वारा किस प्रकार पहुंचाई जा रही है फसलों को क्षति

नागदेव पत्थल्ड के बाल वैज्ञानिकों ने विभिन्न गांवों का भ्रमण कर ग्रामीणों से जाना कि जंगली जानवरों द्वारा किस प्रकार फसलों को क्षति पहुंचाई जा रही है और उसकी रोकथाम किस प्रकार हो सकती है। यह जानकारी शहीद सोहनलाल राजकीय इंटर कॉलेज नागदेव पत्थल्ड के बाल वैज्ञानिकों ने विभिन्न गांवों का भ्रमण कर ग्रामीणों से ली।

प्रखंड चंबा के अंतर्गत शहीद सोहनलाल सेमवाल राजकीय इंटर कॉलेज नागदेव पत्थल्ड के बाल वैज्ञानिकों ने बाल विज्ञान कांग्रेस के अंतर्गत स्वाड़ी, कोटी, इंडवाल गांव, कुमार गांव का भ्रमण किया। उन्होंने ग्रामीणों से बातचीत कर जाना कि बंदर, सूअर, भालू आदि जंगली जानवरों से फसलों का किस तरह नुकसान हो रहा है और उनकी रोकथाम के क्या उपाय किए जा रहे हैं।

नागदेव पत्थल्ड के बाल वैज्ञानिकों ने ग्रामीणों से जाना कि जंगली जानवरों द्वारा किस प्रकार पहुंचाई जा रही है फसलों को क्षति
नागदेव पत्थल्ड के बाल वैज्ञानिकों ने ग्रामीणों से जाना कि जंगली जानवरों द्वारा किस प्रकार पहुंचाई जा रही है फसलों को क्षति

उन्होंने यह भी जाना कि मानव व वन्य जीव संघर्ष की क्या स्थिति है। बाल वैज्ञानिक शिवांग सकलानी, मानसी नकोटी, संजना सुयाल, शिवानी सुयाल ने ग्रामीणों के साथ बातचीत की और उन्हें जंगली जानवरों की रोकथाम के उपाय भी सुझाए। इस मौके पर उन्होंने फसलों और जंगली जानवरों से जुड़े आंकड़े भी जुटाए।

इस मौके पर परियोजना के मार्गदर्शक शिक्षक डॉ विजय किशोर बहुगुणा ने बताया कि बाल वैज्ञानिकों द्वारा उक्त अध्ययन राष्ट्रीय बाल विज्ञान कांग्रेस 2022-23 के अंतर्गत अपने पारितंत्र को स्वास्थ्य एवं समृद्धि के लिए समझना नामक मुख्य शीर्षक के अंतर्गत मानव पशु संघर्ष से स्थानीय पारितंत्र की छति एवं उसके उपाय उप शीर्षक के अंतर्गत किया जा रहा है।

उन्होंने बताया कि पलायन के कारण गांव खाली होते जा रहे हैं। वन्य जीवों के आवास नष्ट होने के कारण उनका रुख गांव की ओर हो रहा है। जिस कारण स्थानीय पारितंत्र की छति को रोकना आवश्यक है। ताकि खेती के साथ मानव भी सुरछित रह सकें।

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