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नहीं रहे “मंगसीरू उत्तराखंड में” के लेखक डॉ. योगंबर सिंह वर्त्वाल ‘तुंगनाथी’

“मंगसीरू उत्तराखंड में” के लेखक साहित्य जगत के प्रकाशमान नक्षत्र डॉ. योगंबर सिंह वर्त्वाल ‘तुंगनाथी’ अब हमारे बीच में नहीं रहे। डेंगू की चपेट में आने से डॉक्टर साहब संसार से चले गए।

डॉ. योगम्बर सिंह वर्त्वाल ‘तुंगनाथी’ के साथ कुछ 19-06-2011 को बादशाहीथौल चंबा में अंतिम बार भेंट हुई थी और काफी समय तक उनसे बातचीत हुई। वे पुराना दरबार साहिब ट्रस्ट द्वारा प्रकाशिक पुस्तक जो पाण्डुलिपि पर आधारित है और कुंवर भवानी प्रताप शाह के प्रयास का परिणाम है, के विमोचन कार्यक्रम में वहां उपस्थित हुए थे।

डॉ. योगेंद्र सिंह वर्त्वाल चंद्रकुंवर वर्त्वाल शोध संस्थान, उत्तराखंड के सचिव थे। आपका जन्म 25 जुलाई 1948 को चमोली जनपद के रंंडुवा खदेड में हुआ था। पिताजी का नाम विजय सिंह वर्त्वाल और मां का नाम कस्तूरी देवी था। प्रारंभिक शिक्षा रंडुवा में हुई और हाईस्कूल और इंटरमीडिएट की शिक्षा नागनाथ और छिनका गमशाली से हुई। आपने पत्रकारिता में डिप्लोमा हासिल किया और उसके बाद श्रीनगर से एमए, एमएलबी की परीक्षा उत्तीर्ण की। पूर्व वरिष्ठ दृष्टि वैज्ञानिक के रूप में आप दून चिकित्सालय में कार्यरत रहे लेकिन स्वतंत्र लेखन के प्रति आपका रुझान आजीवन बना रहा।

ललित लेखन, यात्रा वृतांत, हिमवंत काव्य विषयक लेखन, पत्र विद्या में लेखन, दृष्टि विकास कला और संस्कृति पर लेखन के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आकाशवाणी से भी कई बार आपके आलेखों का प्रसारण हुआ। आपने अनेक पुस्तकों का प्रकाशन किया। लो विजन एड डिवाइसेज, रोल का ऑप्टिमिस्ट्रीज इन प्रिवेंशन ऑफ़ ब्लाइंडनेस, यायावर ययाति की चिट्ठियां, नेत्रदान आदि कुछ आपके प्रकाशित लेखन कार्य हैं।

आपकी पुस्तक “मंगसिरू उत्तराखंड में” जनमानस को उद्वेलित करने वाली एक संघर्ष पूर्ण गाथा है। नायक आम उत्तराखंड का प्रतीक है। मंगसिरू का चरित्र आम उत्तराखंडी व्यक्ति का चरित्र है जिसको अपनी लेखन शैली से डॉक्टर साहब ने उकेरा और एक सरल, सज्जन और भोले इंसान के रूप में वह आज भी पहाड में कायम है। हिमालय पर्वत की भांति सुदृढ़ और ज्ञानवान है। स्वर्गीय योगंबर सिंह वर्त्वाल जी ने अपनी यह पुस्तक मुझे भेंट की थी। जिसको मैंने अपने शब्दों में समीक्षा भी लिखी थी जो प्रकाशित है।

डॉ. योगंंबर सिंह वर्त्वाल ऐसे लेखक थे जो बिना भय और पक्षपात के अपनी कलम चलाते थे। आम आदमी के लिए मार्ग प्रशस्त करते थे। उनके लेखन में उत्तराखंड के आम जनमानस का भाग्य, मुंगेरीलाल के सपने, नेताओं की करनी और कथनी, आमजन मानस की मायूसी, उत्तराखंड के व्यक्ति की कर्म साधना, प्रकृति के प्रति आकर्षण, उत्तराखंड जनमानस का आदिकाल से रुझान, वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य आदि पर चिंतन परिलक्षित है।

@कवि: सोमवारी लाल सकलानी ‘निशांत’
(कवि कुटीर) सुमन कालोनी चंबा, टिहरी गढ़वाल।

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