डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन: भारतीय संस्कृति, समतावाद और दर्शन के पुरोधा

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    डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन: भारतीय संस्कृति, समतावाद और दर्शन के पुरोधा
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    डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन: भारतीय संस्कृति, समतावाद और दर्शन के पुरोधा

    डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक ऐसी विभूति, जो कभी विदेश में पढ़ने ही नहीं बल्कि पढ़ाने गए और भारतीय संस्कृति का नाम रोशन किया। भारतीय धर्म, राजनीति, दर्शन और ज्ञान का मसीहा जो एक सामान्य बालक से महान प्राध्यापक तथा आदर्श राष्ट्रपति के पद तक पंहुचा, भारतीयों के लिए गर्व की बात है। डॉ एस. राधाकृष्णन अनेकों महत्वपूर्ण पदों पर होते हुए भी सदैव अपने को एक शिक्षक ही माना। इसीलिए उनके जन्मदिवस को शिक्षक दिवस के रूप में माना जाता है।

    मद्रास शहर से 40 मील दूर जरूर तिरुत्तरि गांव जहां से कि उनके पूर्वज सर्वपल्लि गांव आकर बस गये थे, 05 सितंबर 1888 को डॉक्टर राधाकृष्णन जी का जन्म हुआ। 12 वर्ष की आयु तक आप अपने गांव में रहे और अपने विद्वान पिता के सानिध्य में अक्षरज्ञान तथा शास्त्रों का अध्ययन किया। वेल्लोर के बूरहीज कॉलेज मे एफ.ए. की शिक्षा प्राप्त की।

    तदोपरांत स्वामी विवेकानंद जी के विचारों से प्रभावित होकर बी.ए. मे दर्शन शास्त्र विषय चुना और एम.ए. में शोध विषय के रूप में दर्शन शास्त्र चुना। जब आपने एम.ए. पास किया तो उस समय मात्र आपकी उम्र 20 वर्ष की थी। उसी वर्ष आपकी नियुक्ति मद्रास प्रेसिडेंसी कॉलेज में हो गई। दर्शन शास्त्र के प्राध्यापक के रूप में आप छात्रों को पढ़ाने लगे। मद्रास प्रेसिडेंसी कॉलेज में डॉक्टर राधाकृष्ण ने एक ऐसी व्याख्यान शैली अपनाई के कक्षाओं को छोड़ देने देने वाले छात्र भी नियमित कक्षा में आने लगे और उनके व्याख्यान सुनकर लाभान्वित हुए।

    सन 1947 में राधा कृष्ण जी ने जब भागवत गीता पर अपनी एक टीका लिखी जो कि महात्मा गांधी को समर्पित थी। जब उन्होंने गांधीजी को यह भेंट की तो गांधीजी के शब्द थे,” मैं अर्जुन की भूमिका में हूं और आप मुझे कृष्ण की तरह दिखाई दे रहे हैं। इसलिए आप मेरी जिज्ञासाओं का समाधान कीजिए।” गांधी जी ने श्रीमद्भागवत गीता की टीका सहर्ष स्वीकार करते हुए नमन किया और एक दिन वही व्यक्ति देश और विदेशों में भारतीय दर्शन का प्रणेता के रूप में पूजा गया।

    डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन समता मूलक समाज के पक्षधर थे। दक्षिण भारत में हिंदी का जब विरोध हुआ तो उस विद्रोह को शांत करने में एस. राधाकृष्णन जी का सर्वोपरि योगदान रहा। डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी ने शिकागो के हक्सल कॉलेज से लेकर कैंब्रिज विश्वविद्यालय, ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के मैनचेस्टर कॉलेज आदि में अध्यापन कार्य किया। मैनचेस्टर कॉलेज में उन्हें धर्मों के तुलनात्मक अध्ययन करने के लिए विभागाध्यक्ष बनाने की भी पेशकश की गई थी।

    विभिन्न विश्वविद्यालयों में आप उच्च पदों पर आसीन रहे और कई वर्षों तक आंध्र विश्वविद्यालय के कुलपति रहे। 1931 में ही अंतर्राष्ट्रीय बौद्धिक सहयोग समिति के सदस्य बने और संयुक्त राष्ट्र संघ की अंतरराष्ट्रीय स्तर की समिति में आपने बौद्धिक सहयोग किया।

    —और जब स्टालिन की आंखों से आंसू टपकने लगे!

    जब एस. राधाकृष्णन रूस में भारत के राजदूत रहे तो स्टालिन जैसा व्यक्ति भी आपसे प्रभावित हुआ। सन 1952 में जब आप राजदूत के पद से रूस से विदा लेने लगे तो स्टालिन की आंखें भी सजल हो उठी थी। एस. राधाकृष्णन जी ने स्टालिन के गालों पर हाथ फेरा और पीठ थपथपाई। उस वक्त स्टालिन के शब्द थे,” आप पहले ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने मुझे मनुष्य समझकर व्यवहार किया। आप हम सब को छोड़कर जा रहे हैं। जिसका मुझे भारी दुख है।” यह कहते कहते कि स्टालिन की आंखों से आंसू टपकने लगे।

    एस. राधाकृष्णन निर्विरोध उपराष्ट्रपति चुने गए पुनः दोबारा उपराष्ट्रपति चुने गए और तदोपरांत राष्ट्रपति के पद पर आसीन हुए। आप के कार्यकाल में सन 1962 में चीनी आक्रमण हुआ जो कि आपकी एक अग्निपरीक्षा थी और इस विषम परिस्थितियों में आपने बड़े धैर्य से काम लिया। अफगानिस्तान, ईरान, अमेरिका, इंग्लैंड, सोवियत संघ और आयरलैंड की यात्राएं की और भारत का हित साधा।

    एस. राधाकृष्णन एक धर्म परायण व्यक्ति होते हुए भी समस्त धर्मों का सम्मान करते थे। हिंदू धर्म में आस्था का आशय यह नहीं कि अन्य धर्मों का अपमान किया जाए। इसलिए वह कई बार चर्च भी चले जाते थे और विदेशी भी उनका उतना ही सम्मान करते थे जितना कि भारतीय लोग।

    एस राधाकृष्णन संवेदना और सहानुभूति की प्रतिमूर्ति थे। जब वह राजदूत के रूप में सोवियत संघ के मास्को में रहते थे तब एक बार उन्होंने के स्टालिन से कहा, “भारत के महान सम्राट विजय पाकर भिक्षु बन गए थे। कौन जाने शायद आप भी उसी मार्ग पर चल पड़े।” स्टालिन ने उत्तर दिया था, “हां, कई बार चमत्कारी घटनाएं भी हो जाती है। ऐसा चमत्कार भी संभव तो है ही।”

    एस. राधाकृष्णन जी ने भारतीय दर्शनशास्त्र पर अनेकों पुस्तकें लिखी। उपनिषदों का सार, महिलाओं की शिक्षा, भारतीय तत्व दर्शन, द फिलोसोफी ऑफ रविंद्र नाथ टैगोर, द रीज़न ऑफ रिलीजन इन कंटेंपरेरी फिलोसोफी आदि आपकी विश्व प्रसिद्ध पुस्तकें हैं। विश्व के कोने-कोने में सम्मान सहित पढा और पढ़ाया जाता है।

    शिक्षक दिवस (डॉ एस. राधाकृष्णन जी के जन्मदिवस) पर समस्त शिक्षक भाइयों और बहनों को हार्दिक शुभकामनाएं देते हुए, ईश्वर से उनके मंगलमय भविष्य की कामना करता हूं तथा आशा करता हूं कि एक शिक्षक के रूप में राष्ट्र निर्माण, स्वस्थ धर्म और राजनीति तथा विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास के रूप में सेवाएं देते हुए, गरिमामय पद का हमेशा सम्मान बनाएं रखें।

    *कवि: सोमवारी लाल सकलानी, निशांत
    (सेवानिवृत्त शिक्षक)
    सुमन कॉलोनी चंबा, टिहरी गढ़वाल।

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