काश ! यदि ऐसे ही सिकंदर हिंदुस्तान में पैदा होते रहते।

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    काश ! यदि ऐसे ही सिकंदर हिंदुस्तान में पैदा होते रहते

    काश ! यदि ऐसे ही सिकंदर हिंदुस्तान में पैदा होते रहते।इत्तेफाक से देहरादून से पौंधा रोड (प्रेम नगर) भ्रमण कर रहा था कि “हार्टफुल मेडिटेशन सेंटर” पर नजर पड़ी। उत्सुकता जागी और मैं जानकारी हासिल करने के लिए गेट के अंदर प्रविष्ट हुआ। गेट पर सिकंदर बैठा था। उनसे बातचीत हुई। “हार्टफुल मेडिटेशन सेंटर” के बारे में संक्षिप्त जानकारी प्राप्त की।

    कवि : सोमवारी लाल सकलानी ‘निशांत’

    यद्यपि सिकंदर पढ़ा- लिखा कम है लेकिन बहुत बड़ा तजुर्बा है। 2003 से वह स्वयं और उसकी पत्नी इस सेंटर में काम कर रहे हैं।
    पूरी जानकारी हासिल करने के बाद में एक विस्तृत हॉल में गया। जहां के प्रोजेक्टर के माध्यम से “प्रैक्टिकल नॉलेज” के बारे में जानकारी दी जा रही थी। मैं चुपचाप एक सीट पर बैठ गया।

    किसी का ध्यान मेरी तरफ नहीं गया बल्कि सब प्रोजेक्टर की तरफ ज्ञान और ध्यान में केंद्रित थे। ज्ञान तो ज्ञान होता है, भले ही किसी भी संस्था के द्वारा क्यों न दिया जाए। उसमें कुछ भी बुराई मैं नहीं देखता हूं। थोड़ा देर अवलोकन करने के बाद देखा कि बहुत व्यवहारिक बातें वहां बतलाई जा रही थी।

    पौंधा रोड पर घूमते वक्त विचार था कि जसपाल राणा के शूटिंग रेंज को देखने के लिए जाऊं। मन में आया कि पैट्रोलियम यूनिवर्सिटी के कैंपस में जाकर अपने परिचित एसोसिएट प्रोफेसर अनुपम भंडारी से मिलूं लेकिन ‘सहज ध्यान केंद्र’ ने इतना आकर्षित किया कि बाते सुनता गया। अवलोकन करता गया और जानकारी हासिल करता रहा।

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    हैदराबाद के “रामचंद्र मिशन” के द्वारा विश्व के 153 देशों में योग के प्रचार- प्रसार और उसके साथ ध्यान पर आधारित यह व्यवहारिक ज्ञान करवाया जाता है। योगाचार्य रामचंद्र के द्वारा सन 1945 में इस मिशन की स्थापना की गई। तदुपरांत मिशन अनेक मनीषियों के प्रबुद्ध ज्ञान के द्वारा आगे बढ़ रहा है, ऐसा मैंने देखा है।
    प्रवेश द्वार के थोड़ा ही दूर “ओपन लाइब्रेरी” है और अधिकांश पुस्तके अंग्रेजी में प्रकाशित है। हिंदी में भी पुस्तकें वहां पर मौजूद हैं। प्रथम चरण की योगशाला के समाप्ति के बाद मैंने संचालक महोदय को अपनी पुस्तक धरा के गीत और सुरकुुट निवासिनी की प्रति भेंट की। उन्होंने बताया कि श्री बी.एल. सेमवाल संस्था के कोऑर्डिनेटर हैं, आप उन्हें भेंट करें। श्री बी.एल सेमवाल सेना से निवृत होने के बाद इस मिशन से जुड़े हैं। बहुत ही खुश मिजाज और योग्य व्यक्ति हैं।

    उन्होंने इस मिशन के देहरादून स्थित हेड श्री दीनदयाल जोशी जो सेवानिवृत्त अधिकारी हैं, मेरा परिचय कराया। मिशन के बारे में संक्षिप्त जानकारी दी। तभी उनका ब्रेकफास्ट का समय हुआ। सब लोगों ने वहां पर ब्रेकफास्ट किया। उनके आग्रह करने पर मैंने भी वहां पर जलपान किया। स्वच्छता और शुद्धता का वहां पर विशेष ध्यान रखा जाता है। अधिकांश रिटायर्ड कर्मचारी और अफसर थे। बुजुर्ग महिलाएं और पुरुष अलग-अलग पंक्तियों में बढ़ते हैं। ध्यान मग्न होकर प्रवचन सुनते हैं। योगा करते हैं । मिशन के उद्देश्यों और आदर्शों के बारे में जानकारी हासिल करते हैं।

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    मेरा यह एक नया अनुभव था। कुछ समय बातचीत करने के बाद श्री बी.एल.सेमवाल से मिलकर हार्दिक प्रसन्नता हुई। कहा कि एक साहित्यकार के इस मिशन में आने पर हार्दिक स्वागत है। मैंने जब बारीकियां जाननी चाही तो श्री सेमवाल मुझे कम्युनिटी हॉल में ले गए। चुपचाप वहां पर योग और ध्यान की बातें मुझे समझाते रहे और उसके बाद लगभग एक घंटा ध्यानावस्था में बैठाकर वह मुझे गाइड करते रहे। असीम शांति की प्राप्ति हुई। लगातार 3:30 घंटे तक मैं उस “मिशन” की एक इकाई के रूप में वहां रहा। अच्छा लगा। मैंने उनसे चंबा, नई टिहरी आदि स्थानों में भी इस प्रकार के कार्यक्रमों को आयोजित करने के लिए अनुरोध किया, जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार किया।

    श्री दीनदयाल जोशी और श्री बी.एल. सेमवाल अन्य कार्यों में संलग्न हो गए और मैं भी अपना झोला उठाकर मुख्य सड़क पर आया कि किसी ने पीछे से आवाज लगाई, “सर ! थोड़ा रुकिए।” अरे, यह तो सिकंदर है। खरडिया जिला बिहार का रहने वाला। मेरे पीछे- पीछे दौड़ता हुआ आया और अनुरोध किया अपनी एक किताब मुझे भी दे दीजिए। मैंने आपकी किताब की एक प्रति सिकंदर भाई को भेंट की। उसने अनुरोध पूर्वक मेरी जेब में हाथ डाला और प्रणाम करते हुए वापस चला गया तो बाद में मैंने देखा कि ₹100 का एक नोट जेब में था। मुझे आश्चर्य हुआ। संतोष इस बात का था कि मिशन में बड़े-बड़े लोग जुड़े हैं। 153 देशों में शाखाएं हैं। निशुल्क वे लोगों को योग, ध्यान और ज्ञान की बातें बताते हैं और स्वैच्छिक दान प्राप्त करते हैं।

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    उसी मिशन का एक छोटा सा चौकीदार/ कार्यकर्ता मेरी किताब के कागज का मूल्य देने के लिए कितना उत्सुक था ! इस बात से मुझे वास्तव में अंदर तक झकझोर दिया कि जहां लोग आज पुस्तकों से बचते हैं, यहां तक कि अपने अध्यापक समाज के व्यक्ति भी इंटरनेट, डिजिटल एजुकेशन के प्रति समर्पित हैं।

    वहीं कम पढ़ा- लिखा व्यक्ति अपने बच्चों के लिए मुझसे एक किताब लेता है। किताब के कागज का मूल्य प्रदान करता है जो कि मेरे लिए करोड़ों रुपए की दौलत से भी बढ़कर है। काश ! अगर ऐसे ही सिकंदर हिंदुस्तान में पैदा होते जाएं तो हमारा सनातन अक्षुण्ण रहेगा और जैसा कि हम जानते हैं कि समन्वय की भावना और धार्मिक भाव की प्रचुरता भी कायम रह सकती है।
    (कवि कुटीर)
    सुमन कालोनी चंबा,टिहरी गढ़वाल।